Friday, June 24, 2011

दक्षिण दिशा में क्या हो, क्या न हो....?


दक्षिण दिशा पर मुख्यत: मंगल देव का अधिपत्य है उनके साथ ही इस स्थान पर यम तथा राहु - केतु का भी प्रभाव व नियंत्रण वास्तुशास्त्र में माना गया है | यदि यह स्थान जादा खुला हो तो राहु केतु तथा यम का प्रकोप परिवार पर ज्यादा बढ़ जाता है जिसके प्रभाव से जीवन में पग पग विघ्न - बाधा का सामना करना पड़ता है |

क्या हो-
- किसी भी व्यक्ति के जीवन में इस्थाय्त्व के लिए इस स्थान का घर में सबसे ऊँचा व भारी होना अनिवार्य है | 
- घर के वृद्ध व वरिस्थ सदस्यों का कमरा यहाँ बनाये |
- घर में या व्यापारिक स्थान में मालिक की जगह यहाँ लाभ देती है व उपयुक्त होती है |
- घर की सभी बड़ी व भारी वस्तु यहाँ रखे | 
- यह स्थान स्टोर व शौचालय के लिए भी उपयुक्त माना गया है | 
- यह स्थान धन रखने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है |

क्या न हो- 
- यह स्थान ज्यादा खुला नहीं होना चाहिए |
- दक्षिण क्षेत्र का बढ़ा होना भी अशुभ होता है |
- इस स्थान में घर के छोटे बच्चो को कमरा न दे, उनका स्वाभाव व प्रकर्ति जिद्दी हो जाती है | 
- पूजा स्थान यहाँ न बनाये |
- किरायेदारो व मेहमानों को यहाँ कभी भी स्थान न दे | 

ईशान कोण में क्या हो, क्या न हो.....?

वास्तु शास्त्र में ईशान कोण का वृहद् महत्व्य बताया गया है | यह वह स्थान है जिस पर गुरु ग्रह व्र्हस्पति का अधिपत्य है | साथ ही यहाँ वास्तु पुरुष का मस्तक भी है जिसे महादेव शिव का शीश होने की संज्ञा भी दी जाती है | शायद ऐसा इसलिए है क्यूंकि उत्तर और पूर्व दोनों ही शुभ उर्जा के विशेष महत्व्यपूर्ण स्रोत है | इसलिए इसका शुद्ध, साफ़ सुथरा होना आवश्यक है | यदि ईशान में दोष हो जाये तो उस घर के सभी सदस्यों का विकास अवरुद्ध हो जाता है, विवाह योग्य कन्या हो तो विवाह में बाधा आती है | सामाजिक अपयश, गंभीर रोग आदि घर कर जाते है | हर प्रकार की समृद्धि के लिए इस स्थान का जागृत होना बेहद अनिवार्य है | यदि ईशान कोण में मंदिर, साधना कक्ष, अध्यन कक्ष, भूगर्भ जल स्थान घर के अन्य स्थान से अधिक खुला स्थान नहीं है तो यह दोष है | वही अक्सर लोग यहाँ जैसे शौचालय, स्टोर आदि बना कर इस स्थान को दूषित, अपवित्र अनदेखा कर देते है | यह क्षेत्र जलकुंड, कुआं अथवा पेयजल के किसी अन्य स्रोत हेतु सर्वोत्तम स्थान है।


क्या हो-

- यहाँ तुलसी का पौधा लगा कर, सालिगराम व शिव को रख कर पूजा करने से सम्पन्नता आती है |
- इस स्थान पर यदि प्रवेश द्वार हो तो माँ लक्ष्मी की निरंतर कृपा बनी रहती है |
- इस स्थान को साफ़ सुथरा रखना घर के हर सदस्य की नैतिक ज़िम्मेदारी है |
- इस स्थान पर जल क्षेत्र होना बेहद लाभ देता है |
- यह स्थान पूजा पाठ का सबसे उपयुक्त स्थान है |
- इस स्थान को कभी भूल से भी बंद न करे |

क्या न हो-
- यहाँ कभी गन्दगी न करे |
- इस स्थान को बंद न करे और न ही रखे |
-  यहाँ कभी अग्नि का स्थान न रखे |
- यहाँ कभी भी शौचालय न बनाये |
- यहाँ पर भारी सामान व विद्युत् उपकरण न रखे |
- यहाँ किसी भी परिस्थति में गंदे कपडे, जूठे बर्तन, जूते, न हो |
- यदि जब तक अनिवार्य न हो तब तक घर के बड़े बुजुर्गो का स्थान यहाँ न बनाये |

पूर्व दिशा में क्या हो, क्या ना हो

वास्तु शास्त्र का आधार क्या : हमारे महान ऋषि-मुनियों ने बिना तोड़-फोड़ किए गंभीर वास्तु दोषों को दूर करने के लिए कुछ सरल व अत्यंत चमत्कारिक उपाय बताए हैं जो पूर्णत: प्राकर्तिक, ब्रह्मांडीय व पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति तथा सृष्टि की अनमोल धरोहर सूर्य की प्राणदायक किरणों, वायु आदि पर आधारित है। आज से हम अगले कुछ एपिसोदेस में यह जानकारी देगें की किस दिशा में क्या होना चाहिए और क्या नहीं |


क्या हो-
- घर में पूर्व दिशा का शुद्ध होना घर, परवारिक तनाव, विवाद निवारण हेतु व परिवार, सदस्यों की वृद्धि हेतु बहुत ही अनिवार्य है | 
- प्रत्येक कक्ष के पूर्व में प्रातःकालीन सूर्य की प्रथम किरणों के प्रवेश हेतु खुला स्थान या खिड़की अवश्य होनी चाहिए। 
- पूर्व में लाल, हरे, सुनहरे और पीले रंग का प्रयोग करें। 
- पूर्वी क्षेत्र में जलस्थान, बोरिंग, भूमिगत टेंक बनाएं |
- इस स्थान में घर के बच्चो कमरा एवं अध्यन कक्ष या घर के बड़े बेटे का कमरा उचित है |
- यह स्थान पूजा के कमरे के लिए उपयुक्त होता है |
- इस स्थान पर अधिक से अधिक जल स्थान, बोरिंग बनाये |
- पूर्व दिशा की तरफ अधिक से अधिक खुला स्थान व ढाल होनी चाहिए |

क्या ना हो-
- पूर्व दिशा का कटना अशुभ माना जाता है को भाग्य में कमी का सूचक है, 
- इस स्थान पर स्टोर, शौचालय, गन्दगी कदापि ना हो |
- इस स्थान पर घर के वरिष्ट सदस्य का कमरा ना बनाये, उससे घर की वृद्धि प्रभावित होगी |
- इस स्थान को बंद व ऊँचा किसी भी परिस्थति में ना करे |  
- इस स्थान को सीढ़ीयां बनाकर भारी ना करे |

Monday, June 20, 2011

क्या फल देगा राहु - केतु का राशी परिवर्तन...?

विगत 6 जुन 2011को राहु और केतु ने अपना स्थान बदला जिसे राशी परिवर्तन कहते है | राहु और केतु किसी भी राशी में 18 महीने तक रहते है | यह दोनों ग्रह वक्री अवस्था में चलते है और दोनों अपनी नीच राशी से निकल कर राहु धनु से वृश्चिक में व केतु मिथुन से वृषभ में आये | यही कुछ लोगो ने इसे 18 वर्ष बाद हुए एक विशेष खगोलीय व ज्योतिषीय घटना का नाम दिया किन्तु ऐसा नहीं है, ग्रहों का यह राशी संक्रमण एक अनवरत प्रक्रिया है | मैं उनलोगों से पूछना चाहता हूँ जिन्होंने ने इसे 18 वर्ष बाद हुए एक विशेष खगोलीय व ज्योतिषीय घटना का नाम दिया की क्या 18 वर्ष तक राहु केतु एक ही राशी में रहे ? ऐसा संभव ही नहीं और ऐसा सृष्टि के विनाश का सूचक है | यदि वह यह कहे की राहु 18 वर्ष बाद पुन: वृश्चिक में आया तो यह बात मानी जा सकती है व न्याय सूचक व तर्क संगत है | अत: समस्त ज्योतिषी व ज्योतिष कार्य में संलग्न बंधुओ से अनुरोध है के ऐसी भ्रामक बातो का प्रचार न करे या कही सुने तो जनता का भ्रम दूर कर सत्य ज्ञान का बोध कराये |

आइये अब जानते है की इस परिवर्तन का राशियो पर क्या प्रभाव होगा ?


मेष - यह समय धननाश करने वाला होगा अत: निवेश बहुत ही सोच समझ कर करे |
क्या करे- हनुमद आराधना से लाभ संभव |
क्या न करे- निवेश न करे |


वृषभ - राजभय की स्थति बनती दिखाई देती है | किसी के कहे में आकर गलती से भी गलत कार्य में संलग्न न हो न ही सहियोग करे |
क्या करे- शिव आराधना करे |
क्या न करे- किसी के विवाद में न पड़े |


मिथुन - महासुख की प्राप्ति व परिवार का पूरा सहियोग व सानिध्य प्राप्त होगा |
क्या करे- श्री राम की अर्धना करे |
क्या न करे- परिश्रम से पीछे न हटे |


कर्क - धननाश के योग है तो व्यापार वृद्धि व निवेश में सतर्क रहे |
क्या करे- माँ दुर्गा की आराधना से लाभ होगा |
क्या न करे- लालच में न पड़े |


सिंह - सामाजिक प्रतिष्ठा की हानि व अपमान के योग बनते है, सैयम रखे |
क्या करे- विष्णु आराधना फलित होगी |
क्या न करे- कोर्ट कचहरी के विवाद से बचे |


कन्या - सौभाग्य में वृद्धि व धन की प्राप्ति होगी |
क्या करे- माँ लक्ष्मी किया आराधना लाभ देगी |
क्या न करे- निवेश से बचे |


तुला - तुला राशी वालो के लिए यह संक्रमण कलह की परिस्थति ले कर आया है | अत: पारिवारिक विवाद या अन्य किसी भी विवाद से स्वयं को दूर रखे |
क्या करे- वाणी पर नियंत्रण रखे |
क्या न करे- आपा न खोये |


वृश्चिक - अनजाने भय की स्थति बनी रहेगी |
क्या करे- ऐसी परिस्थति में माँ दुर्गा, भैरव की आराधना फलित होगी |
क्या न करे- सोचे बिना कार्य न करे |


धनु - स्वास्थ्य समस्या व भरी कष्ट की स्थति बनती है |
क्या करे- महामृतुन्जय मंत्र का जाप करे |
क्या न करे- स्वास्थ्य की अनदेखी न करे |


मकर - धनलाभ के विशेष योग है | आर्थिक पक्ष मजबूत होगा |
क्या करे- निवेश हेतु उत्तम समय |
क्या न करे- समय व्यर्थ न करे |


कुम्भ - कलहपूर्ण वातावरण बना रहेगा अत: क्रोध व तनाव पर नियंत्रण रखे |
क्या करे- माँ संकठा की आराधना से उत्तम फल मिलेगा |
क्या न करे- विवाद को बढ़ावा न दे |


मीन - दुःख व कष्ट की परिस्थति का सामना हो सकता है |
क्या करे- धीरज से काम ले |
क्या न करे- जल्दीबाजी न करे |

Sunday, June 19, 2011

आग्नेय कोण के दोष का सरल निवारण


भवन की आग्नेय दिशा अर्थात पूर्व दक्षिण का कोना अग्नि का स्थान है जिसके स्वामी दैत्य गुरु श्री शुक्राचार्य है परन्तु अग्नि का स्थान होने से मंगल देव का भी समान आधिपत्य है | यह स्थान भवन में रसोई, विद्युत उपकरण आदि का सबसे उपयुक्त स्थान है | यह स्थान भवन में ईशान और वायव्य से ऊंचा लेकिन नैऋत्य से नीचा रहना चाहिए | आग्नेय कोण का किसी भी दिशा में बढ़ना शुभ नहीं होता इसलिए इसे संशोधित कर वर्गाकार या आयताकार कर लेना चाहिए | 

- यहाँ कभी भी जलस्थान या सेप्टिक टेंक, बोरिंग नहीं होनी चाहिए | ऐसा होने पर यह स्थान बेहद मारक प्रभाव देने लगता है |  

- यदि आपकी रसोई या बिजली का मीटर आग्नेय में न हो और यहाँ कोई अन्य गंभीर दोष हो तो इस दिशा में लाल रंग का बल्ब या सरसों के तेल एक दीपक अग्नि देवता के सम्मान में चालीस दिन कम से कम एक प्रहर (तीन घंटे) तक अवश्य जलाए | 
- यदि आग्नेय दूषित है तो मंगल देवता व शुक्र देव के निमित्त दान, जाप तथा मंगल यन्त्र, शुक्र यंत्र की आराधना, हनुमद आराधना से शांति व लाभ मिलता है |

- आग्नेय का स्वामी ग्रह शुक्र दाम्पत्य संबंधों का कारक है। अतः इस दिशा के दोषों को दूर करने के लिए अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम और आदर भाव रखें। 

- घर की स्त्रियों को व सुहागन ब्रह्मणि को शुक्रवार को अन्न, वस्त्र, सौंदर्य प्रसाधन, श्रृंगार सामग्री, आभूषण आदि भेट करे |

- ऋग्वेद में उल्लिखित अग्नि देव की पवित्र स्तुति से भी विशेष लाभ होता है |

- विघ्नहर्ता विनायक की तस्वीर या मूर्ति रखने से भी उक्त दोष दूर होता है। 

- प्रत्येक शुक्रवार को ब्रह्मण को दही, चीनी, चावल व श्वेत वस्त्र का दान करे |

-  गाय को रोटी पर देसी घी लगाकर गुड के साथ अवश्य दे |

ईशान को जागृत व शुभ बनाकर पाए जीवन अनंत लाभ.....


वास्तुशास्त्र में ईशान कोण का वृहद् महत्व्य बताया गया है | यह वह स्थान है जिस पर गुरु ग्रह बृहस्पति का अधिपत्य है | साथ ही यहाँ वास्तु पुरुष का मस्तक भी है जिसे महादेव शिव का शीश होने की संज्ञा भी दी जाती है क्यूंकि वास्तु देवता भगवान शिव के ही अंश है और शायद ऐसा इसलिए है क्यूंकि उत्तर और पूर्व दोनों ही शुभ उर्जा के विशेष महत्व्यपूर्ण स्रोत है | इसलिए इसका शुद्ध, साफ़ सुथरा होना आवश्यक है |  यदि ईशान में दोष हो जाये तो उस घर के सभी सदस्यों का विकास अवरुद्ध हो जाता है, विवाह योग्य कन्या हो तो विवाह में बाधा आती है | सामाजिक अपयश, गंभीर रोग आदि घर कर जाते है | हर प्रकार की समृद्धि के लिए इस स्थान का जागृत होना बेहद अनिवार्य है | यदि ईशान कोण में मंदिर, साधना कक्ष, अध्यन कक्ष, भूगर्भ जल स्थान घर के अन्य स्थान से अधिक खुला स्थान नहीं है तो यह दोष है | वही अक्सर लोग यहाँ जैसे शौचालय, स्टोर आदि बना कर इस स्थान को दूषित, अपवित्र अनदेखा कर देते है |  यह क्षेत्र जलकुंड, कुआं अथवा पेयजल के किसी अन्य स्रोत हेतु सर्वोत्तम स्थान है। 

- यदि यहाँ  शौचालय, स्टोर आदि बना है तो अपने गुरु की सवा करना, ब्रह्मण बटुक अर्थात विद्यार्थी को अध्यन सामग्री उपलब्ध करना, साधू - संतो को अन्न - वस्त्र देना, माता - पिता की सेवा करना, अलग अलग माध्यम से बृहस्पति देव की पूजा, आराधना जैसे मंत्र जाप, दान आदि तथा प्राण प्रतिष्ठित बृहस्पति यन्त्र की नियमित पूजा आराधना लाभ देती है |


- यदि ईशान कोण में जलस्थान न हो या किसी भी प्रकार का दोष हो, तो पीतल के एक पात्र में जल भरकर उसमे हल्दी चूर्ण दाल कर कुछ दाने केसर व तुलसीदल डाले, पञ्च धातु जिसे पञ्च रत्नी भी कहते है वह डाल कर ईशान कोण में रखे और शुभ फल की प्राप्ति हेतु इस जल को नित्य प्रति बदलते रहें।

- यहाँ तुलसी का एक पौधा रख कर उसमे नित्य जल देना, देसी घी का दीपक जलाकर आरती करना, शिव परिवार व विष्णु आराधना करना इस स्थान को दोषमुक्त कर शीघ्र ही जागृत कर देता है और परिवार को शुभ फल प्राप्त होता है |     

- यदि ईशान क्षेत्र की उत्तरी या पूर्वी दीवार कटी हो, तो उस कटे हुए भाग पर एक वृहद् शीशा लगाएं। इससे भवन का ईशान क्षेत्र प्रतीकात्मक रूप से बढ़ जाता है। वही ईशान कोण का प्राकर्तिक रूप से बढ़ना शुभ है | जो और किसी उपदिशा दिशा के साथ नहीं है |

कही पश्चिम दिशा का वास्तु दोष तो आप की उन्नति में बाधक नहीं...


कही पश्चिम दिशा का वास्तु दोष तो आप की उन्नति में बाधक नहीं...?
हानिकारक है पश्चिम दिशा का बढ़ना या खुला होना...?

यदि भवन में पश्चिम दिशा जादा खुल या हलकी होगी तो घर में रहनेवालो को शारीरिक, मानसिक तथा आर्थिक समस्या बनी रहेगी क्यूंकि यह दिशा शनि देव तथा वरुण देव की दिशा है और सूर्य देव यहाँ अस्त होते है जिस अवस्था में सूर्य से सबसे जादा नकारात्मक उर्जा उत्सर्जित होती है और इसलिए इस दिशा को बंद व भरी रखने का विधान है | जितना इस दिशा का खुला होना नुक्सान दायक है उतना ही घटना या बढ़ना भी | 

- यदि पश्चिम दिशा बढ़ी हुई हो, तो उसे संशोधित कर अथवा काटकर वर्गाकार या आयताकार बनाएं।
- क्यूंकि यह स्थान वरुण देवता का भी है तो यहाँ ओवरहेड रखने का स्थान बनाये | 
- इसके आलावा यहाँ स्टोर, भोजन कक्ष, अन्न भंडार, वहां रखने का स्थान आदि भी उत्तम है |
- पद्म पुराण में उल्लिखित नील शनि स्तोत्र, शनि से सम्बंधित दान, शनि देव के अन्य स्तोत्र अथवा शनि के मंत्र जाप और दिशाधिपति वरुण की आराधना करें।
- यदि इस दिशा में दोष हो तो वरुण यन्त्र तथा शनि यन्त्र को प्राण प्रतिष्ठित कर पूजा स्थान में रख कर नियमित पूजा करने से लाभ होता है और दोषों से मुक्ति मिलती है |
- संध्याकाळ में सूर्यास्त के समय सूर्यदेव की आराधना या उनके निमित्त एक सरसों के तेल का दीपक प्रजवलित करे |

Thursday, June 16, 2011

पशु पक्षी और वास्तु दोष....?

प्राणियों और पक्षियों में अनिष्ट तत्वों को पहचान  कर उन्हें समाप्त करने की अद्भुत शक्तियाँ व क्षमता होती हैं। इस ब्रह्मांड में व्याप्त नकारात्मक शक्तियों को निष्क्रिय बनाने की ताकत इन पालतू प्राणियों में होती है। हमारे शास्त्रों में गाय के संबंध में अनेक बातें लिखी हुई हैं जैसे- शुक्र की तुलना सुंदर स्त्री से की जाती है। इसे गाय के साथ भी जोड़ते हैं। अतः शुक्र के अनिष्ट से बचने के लिए गौदान का प्रावधान है।यदि वास्तु में उत्तर पश्चिम में कोई विशेष दोष हो और ऐसा दोष हो जिसे ठीक न किया जा सकता हो तो गौ सेवा लाभ देती है | जिस भू-भाग पर मकान बनाना हो तो पंद्रह दिन तक गाय-बछड़ा बाँधने से वह जगह पवित्र हो जाती है। भू-भाग से बहुत सी आसुरी शक्तियों का नाश हो जाता है। मछलियों को पालने व आटे की गोलियाँ खिलाने से अनेक दोष दूर होते हैं। इसके लिए सात प्रकार के अनाज के आटे का पिंड बना लें।फिर अपनी आयु जितनी गोलियाँ बनाकर मछलियों को खिलाएँ। घर में फिश-पॉट (मछली पात्र) रखना भी लाभकारी जो सुख-समृद्धिदायक है। जब घर में मछली रखे तो आठ सुनहेरी और एक काली ही रखे | मछली पलना वास्तु के इशान कोण के दोष को दूर करता है | तोते का हरा रंग बुध ग्रह के साथ जोड़कर देखा जाता है। अतः घर में तोता पालने से बुध की कुदृष्टि का प्रभाव दूर होता है। यदि घर की उत्तर दिशा में दोष हो तो भी तोता पलना लाभ देता है | घोड़ा पालना भी शुभ है। सभी लोग घोड़ा पाल नहीं सकते फिर काले घोड़े की नाल को घर में रखने से शनि के कोप से बचा जा सकता है। शनि को प्रसन्न करना हो तो कौवों को भोजन कराना चाहिए। तद्नुसार काले कौवे को भोजन कराने से अनिष्ट व शत्रु का नाश होता हैतथा वास्तु में दक्षिण पश्चिम के वास्तु दोषों में भी रहत मिलती है | मनुष्य का सबसे वफादार माना जाने वाला मित्र कुत्ता भी नकारात्मक शक्तियों को नियंत्रित कर सकता है। उसमें भी काला कुत्ता सबसे ज्यादा उपयोगी सिद्ध होता है। 

कैसी हो अध्ययन टेबल की व्यस्था व संयोजना कुछ प्रमुख सूत्र


1- अध्यन की टेबल पर अपने आराध्य देव, गुरु या जिस किसी देवी देवता को आप मानते हो अथवा विद्या के अधिपति देवी व देवता जैसे माँ सरस्वती, गणेश जी को अपने सामने उनकी निरंतर कृपा प्राप्ति हेतु रख सकते है |

2- टेबल हमेशा आयताकार होना चाहिए, गोलाकार या अंडाकार नहीं होना चाहिए।

3- टेबल के कोने कटे न हो और वह टूटी न हो, कर्कश आवाज़ न करती हो यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए |

4- टेबल का रंग सफेद, पीला या उससे सम्बंधित रंग उत्तम होता है।

5- कम्प्यूटर टेबल पूर्व मध्य या उत्तर मध्य में रखें। ईशान में न रखें। पश्चिम दिशा में भी रख सकते है |

6- अध्ययन टेबल व कुर्सी के ऊपर सीढ़ियाँ, बीम, कॉलम ना हों।

7- अध्यन टेबल सदैव साफ़ सुथरी हो, धुल धूसरित कभी भी ना हो उससे पढाई में मनं नहीं लगता और एकाग्रता भंग होती है |

वास्तु सिद्धांत से ले उत्तम विद्या का लाभ

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12 राशियों के स्वभाव, प्रकृति व् लक्षण ....|


मेष 
 मेष राशी के जातक की आखे गोल, घुटने कमजोर, उग्र प्रकृति किन्तु जल से डरने वाले होते है | ऐसे व्यक्ति चपल, चालक, घुमने फिरने के शौकीन और कामी होते है |

वृषभ 
वृषभ राशि के जातक का चेहरा व् जांघे बड़ी होती है | जातक कृषि कर्म करने वाले होते है | यदि उसके जीवन को तीन भागो में बांटा जाये तो अंतिम दो भाग सुख देने वाले होते है | ऐसा व्यक्ति प्रमदा प्रिय (स्त्रियों का शौक़ीन), त्यागी, क्षमावान, क्लेश सहने वाले, शांतिप्रिय और परिश्रमी होते है |

मिथुन 
मिथुन राशी के जातको के नेत्र काले और बाल घुंघराले होले होते है | ऐसे जातक तीव्र व विलक्षण बुद्धि से युक्त और विलक्षण प्रतिभा से परिपूर्ण होते है तथा स्त्री विलास प्रिय होते है | इनकी नाक ऊँची होती है और नाच गाना इनको प्रिय होता है | ऐसे लोग एकांत में रहना पसंद करते है | ऐसे लोग दुसरे की मंशा को जल्दी ही समझ लेते है | जादा घुमने फिरने में यकीन नहीं रखते |


कर्क 
कर्क राशी के जातक स्वयं में स्थूल गले वाला, कमर मोटी व कम कद वाला होता है तथा बहु मित्रो का धनि होता है | ऐसे जातक के कई भवनों से परिपूर्ण व धनाढ्य होता है | ऐसे जातक बुद्धिमान व जलविहार का शौक़ीन होता है और तीव्र चाल से अर्थात तेज़ चलने वाला होता है | 

सिंह 
सिंह राशी वालो के नेत्र पीले और ठोड़ी मोटी व चेहरा बड़ा होता है | ऐसे व्यक्ति अभिमानी, पराक्रमी, स्थिर बुद्धि वाले और माता के विशेष प्रिय होते है |ऐसे जातक वनों व पहाड़ो में बर्मन के शौक़ीन परन्तु क्रोधी होते है |

कन्या 
कन्या राशी वाले जातक सत्य का पालन करने वाला प्रिय वचन बोलने वाला होता है | ऐसे जातक के इतरो में लज्जा और प्रिय सूरत वाले होते है | जातक शास्त्रों के ज्ञाता होते है | दुसरे को द्रव्य व भवनों का लाभ मिलता है | इनके कंधे व बहु ढीले होते है और पुत्र संतति भी थोड़ी होती है |

तुला 
तुला राशी वाले जातक चंचल व कृष शारीर वाले व देवताओं के भक्त होते है | ऐसे जातक लम्बे, धेर्यवान, न्यायप्रिय, खरीद फ़रोख्त में होशियार होते है | ऐसे जातको के प्राय: दो नाम होते है, संतान थोड़ी व घुमने के शौक़ीन होते है | इनका भाग्योदय विलम्ब से होता है |


वृश्चिक 
वृश्चिक राशी के जातको के छाती व नेत्र विशाल होते है, जांघ व पिंडलिया गोल होती है | ऐसे जातक बाल्यावस्था में बीमार होते है | यह क्रूर, पराक्रमी, संघर्षशील स्वभाव के होते है |  इनको पितः व गुरु का साथ जादा नहीं मिलता | ऐसे लोग राजकुल में उच्चाधिकारी अर्थात ऊँची पदवी प्राप्त होते है |

धनु 
धनु राशी वाले जातको का नाक, कान व चेहरा और कंठ बड़ा होता है | ऐसे व्यक्ति बोलने में चतुर, ज्ञानी व त्यागी और माध्यम कर के होते है | यह साहसी, विद्वान् व रजा के प्रिय होते है  | ऐसे लोगो को समझा कर ही अपने वश में किया जा सकता है | इनको तर्क से नहीं जीता जा सकता | 

मकर 
इनके शरीर से से नीचे का भाग अर्थात कमर से पैर तक का भाग कृश होता है | किन्तु ऐसे व्यक्ति में सत्व ( शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक शक्ति) काफी होती है | ऐसे व्यक्ति दुसरो की बात मानते है किन्तु स्वभाव से आलसी होते है | ऐसे लोगो का सम्बन्ध किसी अधिक व्यय वाली स्त्री से होता है | ऐसे व्यक्ति को धर्म ध्वज अर्थात बाहरी आवरण धार्मिक किन्तु लज्जाहीन होता है | ऐसे लोग भाग्यवान होते है |

कुम्भ 
कुम्भ राशी के जातक लोभी, छिप कर पाप करने वाले, दुसरे के धन के इछुक व दुसरो को चोट पहुचाने में दक्ष होते है | इनका शारीर घड़े के आकर का होता है | पुष्पों और सुगन्धित द्रवों के प्रिय होते है | कभी क्षय को प्राप्त होते है तो कभी वृद्धि को अर्थात इनके आर्थिक पक्ष में उतार चढ़ाव आता रहता है |

मीन 
इनके शरीर के अंग बराबर व सुंदर होते है | ऐसे व्यक्ति की दृष्टि बहुत सुंदर होती है | ये लोग विद्वान्, कृतज्ञ, अपनी स्त्री से संतुष्ट, भाग्यवान होते है | जल से उत्पन पदार्थो से इन्हें धन लाभ होता है | ऐसे जातक शत्रु पर विजय प्राप्त करने वाले होते है | 

गृह निर्माण की उत्तम व निषिद्ध तिथिया, नक्षत्र , मॉस व योग


जब गृह निर्माण की बात आती है तो सबसे पहले यह प्रश्न उठता है के घर बनाना कब प्रारंभ करें? 


हमारे शास्त्रानुसार शुक्ल पक्ष में गृह निर्माण से जुड़ा कार्यारम्भ करना सदैव लाभकारी होता है | उसमे भी कुछ समय विशेष बताया गया है |  
सूर्य हर मॉस में राशी परिवर्तन करता है, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव मानव जीवन या उसके द्वारा किये गए कर्मो पर पड़ता है | इसी प्रकार वास्तु शास्त्र में हमारे प्राचीन ऋषि मनीषियों ने सूर्य के विविध राशियों पर भ्रमण के आधार पर उस माह में घर निर्माण प्रारंभ करने के फलों की ‍विवेचना की है। 

1. मेष राशि में सूर्य होने पर घर बनाना प्रारंभ करना अति लाभदायक होता है। 
2. वृषभ र‍ाशि में सूर्य : संपत्ति बढ़ना, आर्थिक लाभ 
3. मिथुन राशि में सूर्य : गृह स्वामी को कष्ट
4. कर्क राशि में सूर्य : धन-धान्य में वृद्धि
5. सिंह राशि का सूर्य : यश, सेवकों का सुख 
6. कन्या राशि का सूर्य : रोग, बीमारी आना
7. तुला राशि का सूर्य : सौख्‍य, सुखदायक
8. वृश्चिक राशि का सूर्य : धन लाभ
9. धनु राशि का सूर्य : भरपूर हानि, विनाश
10. मकर राशि का सूर्य : धन, संपत्ति वृद्धि
11. कुंभ राशि का सूर्य : रत्न, धातु लाभ
12. मीन राशि का सूर्य : चौतरफा नुकसान

विश्वकर्मा प्रकाश के मतानुसार गृह निर्माण सदैव शुक्ल पक्ष में प्रारंभ करना चाहिए। फाल्गुन, वैशाख, माघ, श्रवण और ‍कार्तिक माहों में शुरू किया गया गृह निर्माण सदैव उत्तम फल देता है।  |
इनमे कुछ निषिद्ध तिथियाँ, योग, नक्षत्र और वार भी है जिनका  गृह निर्माण अथवा जीर्णोद्धार में सदैव त्याग करना चाइये जैसे  : मंगलवार व रविवार, प्रतिपदा, चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या तिथियाँ, जेष्ठा रेवती, मूल नक्षत्र, वज्र, व्याघात, शूल, व्यतिपात, गंड, विषकुंभ, परिध, अतिगंड, योग - इनमें घर का निर्माण या कोई जीर्णोद्धार भूलकर भी नहीं करना चाहिए अन्यथा निर्माण शुभ फलदायक नहीं होता।
विशेष लाभकारी व श्रेष्ठ, अति शुभ योग : शनिवार, स्वाति, नक्षत्र सिंह लग्न, शुक्ल पक्ष, सप्तमी तिथि, शुभ योग और श्रावण मास ये सभी यदि एक ही दिन उपलब्ध हो सके, तो ऐसा घर दिव्य आनंद व हर प्रकार के सुखों की अनुभूति कराने वाला होता है।

क्या आपने भवन निर्माण के दौरान कोई भी वैदिक वास्तु शांति की प्रक्रिया नहीं की....???


क्या आपने भवन निर्माण के दौरान कोई भी वैदिक वास्तु शांति की प्रक्रिया नहीं की....
जिसके फलस्वरूप आपके परिवार में तनाव रहता है....
क्या उपाय करे मकान निर्माण के बाद...
क्या है वास्तु शांति के सरल उपाय....?

नया घर बनाने के पश्चात जब उसमें रहने हेतु प्रवेश किया जाता है तो उसे नूतन गृह प्रवेश कहते हैं। नूतन गृह प्रवेश करते समय शुभ नक्षत्र, वार, तिथि और लग्न का विशेष ध्यान रखना चाहिए और ऐसे समय में जातक सकुटुम्ब वास्तु शांति की प्रक्रिया योग्य ब्राह्मणों द्वारा संपन्न करवाए  तो उसे सम्पूर्ण लाभ मिलता है |

शुभ नक्षत्र- उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा एवं रेवती नक्षत्र नूतन गृह प्रवेश के लिए शुभ हैं।

शुभ तिथि- शुक्लपक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्टी, सप्तमी, दशमी, एकादशी व त्रयोदशी तिथियां भी नूतन गृह प्रवेश के लिए शुभ फलदायक मानी गई  हैं।

शुभ वार- गृह प्रवेश के लिए सोमवार, बुधवार, गुरुवार व शुक्रवार, शनिवार शुभ हैं। 

शुभ लग्न- वृष, सिंह, वृश्चिक व कुंभ राशि का लग्न उत्तम है। मिथुन, कन्या, धनु व मीन राशि का लग्न मध्यम है। लग्नेश बली, केंद्र-त्रिकोण में शुभ ग्रह और 3, 6, 10 व 11वें भाव में पाप ग्रह होने चाहिए।  

अन्य विचार- चंद्रबल, लग्न शुद्धि एवं भद्रादि, पंचक, राहुकाल का विचार कर लेना चाहिए।

जब आप घर का निर्माण पूर्ण कर ले तो प्रवेश के समय वास्तु शांति की वैदिक प्रक्रिया अवश्य करनी चहिये और फिर उसके बाद 5 ब्रह्मण,9 कन्या और तीन वृद्ध को आमंत्रित कर उनका स्वागत सत्कार करे | नवीन भवन में तुलसी का पौधा स्थापित करना शुभ होता है। बिना द्वार व छत रहित, वास्तु शांति के बिना व ब्राह्मण भोजन कराए बिना गृह प्रवेश पूर्णत: वर्जित माना गया है। शुभ मुहूर्त में सपरिवार व परिजनों के साथ मंगलगान करते हुए और मंगल वाध्य यंत्रो शंख आदि की मंगल ध्वनि तथा वेड मंत्रो के उच्चारण के साथ प्रवेश करना चहिये | आप को सभी कष्टों से मुक्ति मिलेगी |

वास्तु में लगाएँ राशि अनुसार लाभकारी वृक्ष....


वृक्षारोपण सदैव ही सनातन परम्परा का एक अभिन्न अंग रहे है | चाहे वह यज्ञ में प्रयुक्त होने वाले वृक्ष हो या धार्मिक मान्यता से जुड़े वनस्पति हो | हमारी भारतीय संस्कृति में वनस्पतियों को देवता के रूप में पूजने की परंपरा शुरु से रही है। ऐसी भी मान्यता है कि प्रत्येक व्यक्ति की राशि, नक्षत्र से जुडी कोई विशेष दिशा होती है और उसका एक प्रतिनिधि वृक्ष अथवा सम्बंधित वनस्पति होता है। इसके सान्निध्य, सेवा और रोपण से शुभफल मिलता है। 

राशि अनुसार लाभकारी वृक्ष :-

मेष - लाल चंदन 
वृष-  सप्तपर्णी 
मिथुन - कटहल 
कर्क  - पलास 
सिंह  - पाकड
कन्या  - आम 
तुला  - मौलसिरी 
वृश्चिक - खैर 
धनु - पीपल 
मकर - शीशम 
कुंभ-  खैर 
मीन - बरगद