Sunday, August 14, 2011

बहुला चतुर्थी व्रत, संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत

भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्ट चतुर्थी या विनायक चतुर्थी का व्रत किया जाता है। इस दिन चन्द्रमा के उदय होने तक संकष्ट चतुर्थी का व्रत करने का महत्व है। महिलाएं इस दिन सुबह स्नान कर पवित्रता के साथ भगवान गणेश की आराधना आरंभ करें। भगवान गणेश की प्रतिमा के समक्ष व्रत का संकल्प लें। इसके बाद धूप, दीप, गंध, पुष्प, प्रसाद आदि सोलह उपचारों से श्री गणेश का पूजन संपन्न करें।

इसके बाद सायं चन्द्र उदय होने तक मौन व्रत रखें। इसके बाद शाम होने पर फिर से स्नान कर इसी पूजा विधि से भगवान गणेश की उपासना करें। इसके बाद चन्द्रमा के उदय होने पर शंख में दूध, दुर्वा, सुपारी, गंध, अक्षत रख कर भगवान श्री गणेश, चन्द्रदेव और चतुर्थी तिथि को अघ्र्य दें। चतुर्थी के दिन एक समय रात्री को चंद्र उदय होने के पश्च्यात चंद्र दर्शन करके भोजन करे तो अति उत्तम रेहता हैं। इस प्रकार संकष्ट चतुर्थी व्रत के पालन से सभी मनोकामनाएं पूरी होने के साथ ही व्रती के व्यावहारिक, मानसिक जीवन से जुड़े सभी संकट, विघ्न और बाधाएं समूल नष्ट हो जाते हैं। 

अर्घ्य के समय गणेश, चन्द्र व चतुर्थी प्रार्थना :-
हे सब सिद्धियों के प्रदाता श्रीगणेश जी ! आपको मेरा नमस्कार है। संकटों का हरण करने वाले देव! आप मेरे द्वारा अ‌र्घ्यग्रहण कीजिए, आपको मेरा नमस्कार है। कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चन्द्रोदय होने पर पूजित देवेश! आप मेरे द्वारा अ‌र्घ्य ग्रहण कीजिए, आपको मेरे नमस्कार है। तिथियों में गणेश जी को सर्वाधिक प्रिय देवि! आपको मेरा नमस्कार है। आप मेरे समस्त संकटों को नष्ट करने के लिए अ‌र्घ्य स्विकार करें। 

श्रीगणेश चतुर्थी व्रत के क्या है लाभ और क्या करे.....क्या न करे....
भगवान श्रीगणेश जी को प्रसन्न करने का साधन बहुत ही सरल और सुगम है। इसे गरीब या अमीर मनुष्य कर सकता है। इसमें न विशेष व्यय की, न विशेष दान-पुण्य की, न विशेष योग्यता की और न विशेष समय की ही आवश्यकता है। भगवान श्रीगणेशजी की पूजा करते समय इन बातों पर विशेष ध्यान दें। भगवान श्रीगणेशजी की प्रतिदिन पूजा करे और प्रात:काल उठकर सबसे पहले इनके चित्र या मूर्ति के दर्शन करे। किसी काम के प्रारम्भ से पहले भगवान श्रीगणेशजी का स्मरण करना कभी न भूलो। अपने निवास, मकान, महल बनाते समय द्वार पर आले में भगवान श्रीगणेशजी की सुंदर मूर्ति लगाना न भूलो। इससे आपको हर समय दर्शन-स्मरण करने का सौभाग्य मिलेगा। भगवान श्रीगणेशजी को प्रसन्न करने के लिए स्वयं भी सात्विक बनो। तामसिक वस्तुओं का सेवन मत करो। पूज्य ब्राह्मणों द्वारा श्रीगणेश पुराण की कथा का श्रवण करे। मंदिर में श्री गणेशजी का दर्शन-पूजा करो। गणेशजी के मंत्र का जप तथा इनके नाम का संकीर्तन करे। भगवान श्रीगणेशजी प्रसन्न होंगे और आपकी विघ्न-बाधाओं को दूर कर देंगे |

बहुला व्रत का महत्व 
इस व्रत को स्त्रियाँ अपने पुत्रों की रक्षा के लिए मनाती हैं. इस व्रत को रखने से संतान का सुख बढ़ता है. संतान की लम्बी आयु की कामना की जाती है.  इस दिन गाय माता की पूजा की जाती है. इस व्रत में गेंहू चावल से निर्मित वस्तुयें तथा दूध व दूध से बने पदार्थों का उपयोग नहीं किया जाता है. इस दिन गाय के दूध पर केवल उसके बछडे़ का अधिकार माना जाता है.,गाय और शेर की प्रतिमा मिट्टी से बनाकर उनका पूजन किया जाता है,गाय जमीन जायदाद और घर की महिलाओं से सम्बन्धित है, और शेर परिवार की शक्ति और रक्षा का प्रतीक माना जाता है।

व्रत रखने की विधि 
इस दिन सुबह सवेरे स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र पहने जाते है. पूरा दिन निराहार रहते हैं. संध्या समय में गाय माता तथा उसके बछडे़ की पूजा की जाती है. भोजन में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं. जिन खाद्य पदार्थों को बनाया जाता है उन्हीं का संध्या समय में गाय माता को भोग लगाया जाता है. देश के कुछ भागों में जौ तथा सत्तू का भी भोग लगाया जाता है. बाद में इसी भोग लगे भोजन को स्त्रियाँ ग्रहण करती हैं. इस दिन गाय तथा सिंह की मिट्टी की मूर्ति का पूजन किया जाता है.

बहुला चतुर्थी व्रत कथा
द्वापरयुग में भगवान्‌ श्रीकृष्ण द्वारा जंगल में सिंह के रुप में कामधेनु के अंश से उत्पन्‍न गाय, जो नन्दकुल की सभी गायों में सर्वश्रेष्ठ गाय थी.जिसका नाम बहुला था, की परीक्षा ली और बहुला द्वारा बछडे को दूध पिलाकर सिंह के पास वापस लौट कर आने का वचन निभाना और अपने वचन एवं सत्य धर्म का पालन करने की कथा है। जिसकी वचन निष्ठा देख कृष्ण भगवान ने कहा कि बहुला तुम्हारे प्रभाव से और सत्य के कारण कलयुग में घर-घर में तुम्हारा पूजन किया जाएगा. इसलिए आज भी गायों की पूजा की जाती है और गौ मता के नाम से पुकारी जाती हैं. इस दिन श्री विघ्नेश्वर गणेश जी की पूजा-अर्चना और व्रत करने से व्यक्ति के समस्त संकट दूर होते हैं, इस लिये इसे संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है।