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Thursday, September 1, 2011

महान तपोनिष्ट ऋषियो के प्रति हमारी श्रद्धा, कृतज्ञता और समर्पण आदर का पर्व ऋषि पंचमी


भाद्रपद की शुक्ल पक्ष पर पड़ने वाली पंचमी ऋषि पंचमी कहलाती है। इस दिन किये जाने वाला व्रत ऋषि पंचमी व्रत कहलाता है। यह व्रत और यह पूजा, आरती, अर्घ्य, तर्पण की प्रक्रिया हमारे महान तपोनिष्ट ऋषियो के प्रति हमारी श्रद्धा, कृतज्ञता और समर्पण आदर की भावना को प्रदर्शित करता है की हम जिनके वंश परम्परा से आते है और जिसने ने स्वयं को तिल तिल जलाकर ताप कर हमारी सुंदर, सुरक्षित भविष्य हेतु हमें सक्षम ग्रन्थ दिए, उपदेश दिए, मंत्र, दान, पूजा, जाप आदि की प्रक्रिया बताकर हमारा साक्षात्कार ईश्वर से करवाया, इस प्रकार यह पर्व हमारा आभार है इन महान विद्वानों और उनकी साधना तपस्चर्या व हमारे लिए किये गए मार्गदर्शन के लिए | यह व्रत जाने-अनजाने किसी भी प्रकार किये गये पापों से मुक्ति के लिये किया जाता है। इसलिये यह व्रत स्त्री-पुरुष दोनों ही के लिये समान विधि और समान फ़ल वाला बताया गया है। इस व्रत में सप्तऋषियों सहित अरुन्धती (महर्षि वसिष्ठ की पत्नी) का पूजन होता है। इसीलिये इसे ऋषि पंचमी कहते हैं।

व्रत विधि-
इस दिन किसी नदी या तालाब पर ही जाकर स्नान करना चाहिये। यदि ऐसा करना सम्भव ना हो तो वहाँ का जल घर पर ही लाकर स्नान करें। घर पर ही किसी स्वच्छ जगह चौकोर में पूजा के स्थान को लीपना चाहिये। अनेक रंगों से सर्वतोभद्र मण्डल बनाकर उस पर मिट्टी अथवा ताँबे का धट स्थापित करके उसे वस्त्र से वेष्टित कर उसके ऊपर ताँबे अथवा मिट्टी के बर्तन में जौ भरकर रखना चाहिये। पंचरत्न, फ़ूल, गन्ध और अक्षत आदि से पूजन करना चाहिये। कलश के पास ही आठ पत्तियों वाला कमल बनाकर उसकी पत्तियों में कश्यप, अत्रि, भरद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि तथा वशिष्ठ - इन सप्तर्षियों और वसिष्ठ की पत्नी देवी अरुन्धती की प्रतिष्ठा करनी चाहिये। इसके बाद सप्तऋषियों तथा अरुन्धती का षोडशोपचार पूजन करना चाहिये।

निम्न मंत्र द्वारा अर्घ्य दें -
''कश्यपोऽत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोऽथ गौतमः। जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः। दहन्तु पापं मे सर्वं गृह्णन्त्वर्घ्यं नमो नमः।’’ 

इस दिन प्रायः लोग दही और साठी का चावल खाते हैं। नमक का प्रयोग वर्जित है। हल से जुते हुए खेत का अन्न खाना वर्ज्य है। दिन में केवल एक ही बार भोजन करना चाहिये। इस प्रकार विधि-विधान से, श्रद्धा पूर्वक यह व्रत करने से जाने-अनजाने किये पापों से मुक्ति मिलती है।