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Saturday, July 16, 2011

कलियुग में अमोघ, विलक्षण तथा राम बाण है बजरंग बाण का नित्य प्रयोग...!!!

कलियुग के प्रत्यक्ष व साक्षात् देवता श्री हनुमान जी के चमत्कार से कौन परिचित नहीं है | जीवन के समस्त दुःख, संताप को मिटाने के लिए यूँ तो हनुमान जी के कई सारे प्रयोग प्रचलित है लेकिन कुछ ऐसे अनुभूत अनुष्ठान है जिनका प्रयोग आज तक कभी भी खाली नहीं गया, बजरंग बाण भी उन्ही में से एक है | मनुष्य जीवन के समस्त भौतिक मनोकामनाओं की पूर्ति के लिये, दुखो, कष्टों, बाधाओ के निवारण हेतु बजरंग बाण का प्रयोग अमोघ व विलक्षण प्रभाव से युक्त पाया गया है जो समय समय पर आजमाया और अनुभूत है | जिस भी घर, परिवार में बजरंग बाण का नियमित पाठ, अनुष्ठान होता है वहाँ दुर्भाग्य, दारिद्रय, भूत-प्रेत का प्रकोप और असाध्य रोग, शारीरिक कष्ट कभी नहीं सताते | समयाभाव में जो व्यक्ति नित्य पाठ करने में असमर्थ हो, उन्हें कम से कम प्रत्येक मंगलवार को यह पाठ अवश्य करना चाहिए। बजरंग बाण का नियमित सम्पूर्ण पाठ किसी भी जातक के जीवन में व्याप्त सम्पूर्ण कष्ट, घोर संताप को हरने में सक्षम है जो लोग समयाभाव के कारण सम्पूर्ण पाठ ना कर सके उनके लिए बजरंग बाण का शुक्ष्म अमोघ, विलक्षण व महाकल्याणकारी प्रयोग प्रस्तुत है | ध्यान रहे की अनुष्ठान के लिये शुद्ध स्थान तथा शान्त वातावरण परम आवश्यक है जहाँ कोई आपको टोके ना और आपकी साधना निर्बाध्य, अखंड रूप से पूरी हो जाये | यदि घर में यह संभव और सुलभ न हो तो कहीं एकान्त स्थान अथवा आस पास स्थित हनुमानजी के मन्दिर के एकांत, सुरम्य प्रागड़ का प्रयोग करें।

अनुष्ठान प्रक्रिया-
किसी भी अभीष्ट कार्य की सिद्धि हेतु शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार से प्रारंभ कर चालीस दिन इसका अनुष्ठान कर सकते है | साधना काल में कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करे व स्वयं धारण हेतु लाल वस्त्र तथा बैठने हेतु ऊनी अथवा कुशासन प्रयोग करें | सर्वप्रथम हनुमानजी व श्रीसीता राम दरबार का एक चित्र या मूर्ति लाल वस्त्र पर अपने समक्ष स्थापित करे | महावीर हनुमान जी के किसी भी अनुष्ठान मे अथवा पूजा आदि में अखंड दीप और दीपदान का विशेष महत्त्व होता है। इसके लिए पांच प्रकार के अनाज अर्थात - गेहूँ, चावल, मूँग, उड़द और काले तिल को अनुष्ठान से पूर्व एक-एक मुट्ठी प्रमाण में लेकर शुद्ध गंगाजल में भिगो दें, जिसका प्रयोग अनुष्ठान हेतु अखंड दीप बनाने में करेंगे | अनुष्ठान वाले दिन इन अनाजों को पीसकर उस का एक बड़ा दीया बनाएँ | दिए की बत्ती के लिए साधक लाल कच्चे सूत का कलावा प्रयोग करे | उस कलावे को अपने सर से लेकर पाँव तक की लम्बाई के बराबर पाँच बार नाप ले और फिर इसकी बत्ती बना कर दीपक में प्रयुक्त करे | अखंड दीप हेतु तिल का तेल या चमेली के तेल का प्रयोग कर सकते है | हनुमानजी के अनुष्ठान के लिये गूगुल की सुगन्धित धुनी या धुप भी एक आवश्यक अवयव है अत: गूगुल की धूनी या धुप की भी व्यवस्था रखें। 

सम्पूर्ण साधना के चालीस दिन में हनुमान जी को गुड चने, मधु - मुनक्का, बेसन के मोदक, केले आदि का भोग अर्पित करे और साधना उपरांत प्रसाद वितरण कर स्वयं ग्रहण करे तथा आपका प्रयास यह होना चाहिए की आप एक समय गुड और गेहू से बने पदार्थ ही ग्रहण करे और एक समय फलाहार करे | जप के प्रारम्भ में यह संकल्प अवश्य लें कि हनुमान जी की कृपा से आपका कार्य जब भी होगा, उससे जो भी धन लाभ होगा उसमे से हनुमानजी के निमित्त कुछ नियमित अंश दान, अनुष्ठान, पूजा पाठ आदि आप अवश्य करते रहेंगे। अब शुद्ध उच्चारण के साथ ह्रदय में हनुमान जी व सीता राम जी की दिव्य छवि का ध्यान कर बजरंग बाण का सम्पूर्ण पाठ प्रारम्भ करें। यदि सम्पूर्ण पाठ संभव ना हो तो बजरंग बाण के निम्न दोहे का जाप निरंतर करते रहे |

|| चरण शरण कर जोरी मानवों | एहि अवसर अब केही गोहरावो ||
|| उठु-उठु चल तोहि राम दुहाई। पाँय परौं कर जोरि मनाई ||

कैसे और क्यूँ करें श्रावण में सोमवार व्रत, पूजा व कथा.....?


परम पुण्य श्रावण मॉस में सोमवार के व्रत का विशेष महात्यम है | पुराणों व प्राचीन शास्त्रों के अनुसार सोमवार के व्रत तीन प्रकार के बताये गए है। पहला तो है की सिर्फ सावन में जितने भी सोमवार पड़े उन समस्त सोमवार पर व्रत कर उमा - महेश्वर की आराधना करना, दूसरा सोलह सोमवार का सांकल ले कर सावन के सोमवार से प्रारंभ कर सोलह सोमवार व्रत करना तथा तीसरा है सोम प्रदोष, प्रदोष तिथि मॉस में दो बार आनेवाली तिथि है जो भगवान् शिव को अतिप्रिय है और जब वह तिथि सोमवार को आ जाये तो फिर क्या कहना, इस कारण सोम प्रदोष को व्रत का भी विशेष महात्यम वर्णित है । तीनो में से किसी भी तरह के सोमवार व्रत की विधि सभी व्रतों में समान होती है। जिनमे उमा - महेश्वर अर्थात भगवान शिव तथा देवी माँ पार्वती की विशेष पूजा आराधना की जाती है। और यदि इनमे से किसी भी व्रत को श्रावण मॉस में प्रारंभ करे तो और भी शुभ है | सभी सोमवार व्रत विशेषकर श्रावण में किये जाने वाले सोमवार व्रत सूर्योदय से प्रारंभ कर तीसरे प्रहर तक अर्थात संध्याकाळ, गोधुली बेला तक किया जाता है उसके उपरांत सविधि शिव - पार्वती पूजन पश्चात सोमवार व्रत की कथा सुननी आवश्यक है। व्रत करने वाले साधक को दिन में एक समय ही भोजन करना चाहिए।

कैसे करे सावन व्रत व पूजा -
व्रत की पूर्व रात्रि को हल्का व सात्विक भोजन करे तत्पचात ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पूरे घर की सफाई कर्म व स्नानादि से निवृत्त हो यदि गंगाजल हो तो गंगा जल या किसी पवित्र तीर्थ के जल का पूरे घर में छिडकाव व सिंचन करे जिससे स्थान शुद्धि हो जाये। पूजा स्थान पर लाल वस्त्र बिछाकर शिव परिवार का चित्र या मूर्ति स्थापित करें।

निम्न मंत्र से संकल्प लें- 
'मम क्षेमस्थैर्यविजयारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमव्रतं करिष्ये'

शिव का ध्यान मंत्र - 
'ध्यायेन्नित्यंमहेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्‌।
पद्मासीनं समंतात्स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्ववंद्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्‌॥


ध्यान के पश्चात पूजा के मंत्र -
'ऊँ नमः शिवाय' से शिवजी का तथा 'ऊँ नमः शिवायै' से पार्वतीजी का षोडशोपचार पूजन करें। पूजन के पश्चात व्रत कथा अवश्य सुनें। तत्पश्चात सपरिवार आरती कर प्रसाद वितरण करें। इसकें बाद भोजन या फलाहार ग्रहण करें।

श्रावण मॉस में सोमवार व्रत - कथा करने के फल- 
सोमवार व्रत नियमित रूप से करने पर भगवान शिव तथा माँ पार्वती की कृपा, अनुकम्पा बनी रहती है तथा सभी अनिष्टों, अकाल मृत्यु व बाधाओ से न ही सिर्फ मुक्ति मिलती है बल्कि अपने भक्तो पर आने वाले किसी भी कष्ट को स्वयं महाकाल शिव हर लेते है तथा जीवन - कुटुंब धन-धान्य, समस्त सुख - समृद्धि, ऐश्वर्य से परिपूर्ण रहता है।