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Tuesday, December 20, 2011

वार्षिक राशिफल 2012 | Annual Prediction 2012

मेष
बीते वर्ष में काफी उतार चढ़ाव के बाद अब बुरा व कठिन संघर्ष का समय बीत चुका है | पुराने व लम्बे समय से बाधित अथवा रुके हुए कार्यों से लाभ मिलना प्रारंभ होगा | नया भवन की प्राप्ति तथा पुराने जीर्ण भवन के पुनर्निर्माण का योग बन सकता है | कारोबार व्यापार सामान्य गति से वृद्धि करेगा, परन्तु कुछ विशेष परिश्रम से बड़ा लाभ भी हो सकता है | राजनीतिक लाभ व राजनितिक क्षेत्र में आपको कुछ विशेष उपलब्धि प्राप्त होगी | आपके विरोधी लाख प्रयास के बाद भी परस्त होंगे | नौकरी पेशा व्यक्तियों को स्थान परिवर्तन, स्थान्नान्तरण का योग बनेगा जो आपके हित में होगा | शिक्षा प्रतियोगिता में विद्यार्थियों - छात्रों के लिए भी समय अनुकूल तथा नतीजे आशानुरूप रहेंगे | पुरानी चली आ रही स्वस्थ्य की समस्या से मुक्ति मिलने का योग है | आर्थिक, व्यापारिक लेन देन में सचेत रहे, किसी को उधार देने से बचें, उसे वापस पाने में मुश्किल पैदा हो सकती है |


वृषभ
यह नया साल आपके लिए कुछ खास उपलब्धियों भरा रहने वाला है, सभी रुके हुए तथा इक्षित कार्य सिद्ध होंगे | व्यापार में लाभ एवम उन्नति के अवसर प्राप्त होंगे | व्यापारिक प्रतिद्वंदिता व प्रतियोगिता में सफलता मिलेगी, साहित्य संगीत में रूचि बढ़ेगी तथा लाभ मिलेगा | स्वयं की कला को निखारने का अवसर भी मिलेगा | जिससे कीर्ति, प्रसिद्धि प्राप्त होगी | कार्य - व्यापार, परिवार तथा समाज में सहयोगियों के साथ तालमेल स्थापित करने की आवश्यकता है | जिससे आप सभी को उचित समय दे सकेंगे | नए लाभकारी संबंध व अनुबंध प्राप्त होंगे | वैवाहिक जीवन में कुछ तनाव तथा कुछ उतर चढाव हो सकता है | वाहन प्रयोग में सावधानी रखे | विदेश यात्रा व प्रवास के भी योग बनेंगे तथा विदेश से सम्बंधित किसी कार्य में सफलता भी संभव है परन्तु धन के अपव्यय से बचें | प्रेम संबंध प्रगाढ़ होंगे | विद्यार्थी वर्ग के लिए कुछ कठिन समय अवश्य होगा अत: एकाग्रचित होने के साथ-साथ कड़ी मेहनत की आवश्यकता है |


मिथुन
नए वर्ष का आरंभ तो उत्तम होगा परन्तु वर्ष के पूर्वार्ध में समय कुछ मुश्किल भरा हो सकता है | कठोर परिश्रम तथा मेहनत के बावजूद उचित फल तथा लाभ ना मिल पाने से हताशा मानसिक दबाव और चिंता हावी होगी | ऐसे समय में किसी पर अतिविश्वास भी आपको भरी पड़ सकता है, इससे सिर्फ धोखा ही मिलेगा, अत: बचे | वर्ष मध्य में शुभ समाचार प्राप्त होंगे हर प्रकार के लाभ में वृद्धि होगी | एकाग्रचित्त होकर प्रयासरत रहें, सफलता निश्चित मिलेगी | आय के नए साधन मिलेंगे, परन्तु संपत्ति अथवा भूमि में निवेश करने से बचें | परिवार में सुख-शांति रहेगी | घर गृहस्थी सुचारू रूप से चलेगी | सामाजिक पड़ प्रतिष्ठा, मान-सम्मान, यश कीर्ति में वृद्धि होगी |


कर्क
राजकीय पक्ष में रुके हुए तथा बाधित कार्य सिद्ध होंगे | कार्य क्षेत्र में प्रभाव बढेगा तथा सहियोगी कर्मचारियों से सहियोग व प्रेमभाव भी बढ़ेगा | नौकरीपेशा लोगो को स्थान परिवर्तान, पदोन्नति अथवा नई नौकरी के योग बनेंगे |पिछले समय में जो भी आर्थिक, व्यापारिक तथा संबंधो की क्षति हुई उसकी पूर्ति इस वर्ष संभव है | आर्थिक पक्ष सुध्रिड होगा तथा स्वास्थ्य उत्तम रहेगा | धार्मिक क्रियाकलाप व धर्म के प्रति रुझान बढ़ेगा | कोई भी बड़ा आर्थिक निर्णय तथा पूंजी निवेश करने से पहले किसी योग्य अथवा अनुभवी व्यक्ति से सलाह अवश्य कर लें | विद्यार्थी वर्ग को पढ़ाई में एकग्रता की कमी रहेगी, मन में भटकाव की इस्थाती बनेगी, अत: अध्यन में ध्यान देने की आवश्यकता है | भवन, भूमि, वाहन सुख प्राप्ति का उत्तम समय है, इनमे निवेश भी शुभ फलदाई होगा |


सिंह
नए वर्ष की शुरुआत अच्छी होगी, किन्तु कोई नया काम अथवा कोई निवेश करने से बचें, अन्यथा कठनाइयों तथा क्षति का सामना करना पड़ सकता है | अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें, सोच समझ कर नपा तुला संवाद करे | लंबी यात्राएं नुक्सानदायक होंगी, तो ऐसी यात्रायें बचने का प्रयास करे | समाज में लोगो से मिलने जुलने में संकोच न करे, आत्मविश्वास बनाये रखे | प्रतियोगिता से घबराएं नहीं, उनका सामना करे तथा सफलता का आनंद उठाएं | वर्ष के मध्य में भाग्य का पूरा साथ मिलेगा | जीवनसाथी, परिजन व मित्रो का रवैया सहयोगात्मक रहेगा | धार्मिक कार्यों के प्रति आपकी आस्था व रुचि बढ़ेगी | समाज में यश वृद्धि और कार्यक्षेत्र में प्रगति होगी | मानसिक तनाव से मुक्ति मिलेगी व रोगों में शांति मिलेगी |


कन्या
वर्ष के प्रारंभ में जीवन व दिनचर्या में काफी उथल-पुथल रह सकती है | भाग्य का समर्थन थोडा बाधित हो कर मिलेगा परन्तु मित्रो, संतान, जीवनसाथी, परिजनों का पूरा समर्थन होगा | कानूनी अथवा न्यायिक मामलों का निदान मिलेगा | नौकरीपेशा लोगों का कुछ वाद विवाद अपने उच्चाधिकारी से हो सकता है जिसे आपको बचाना चाहिए जो आपके हित में कतई नहीं है | समय का सदुपयोग करे, युही व्यर्थ न जाने दे | कार्य, व्यापार अथवा परिवार के छोटे बच्चो की गतिविधियों पर ध्यान देने की आवश्यककता है | विद्यार्थियों के लिए शैक्षिक सफलता प्राप्त करने का उत्तम समय है | परिवार की खुशियों में वृद्धि के योग है | वर्ष के मध्य में विदेश यात्रा का योग है जो आपके हित में होगी जिससे आय के कई और नए स्रोत खुलेंगे | वर्ष के अंत तक कही रुका या फंसा हुआ धन वापस आएगा |


तुला
इस नये वर्ष में जीवन तथा व्यापार में आगे बढ़ने के लिए आपको सहयोग की आवश्यकता होगी, किसी निष्ठावान सहियोगी का साथ आपको लाभ दे सकता है | कार्य, व्यापार में सफलता के नये मार्ग प्रशस्त होंगे | परंतु ऐसे अवसरों के लिए आपको सजग तथा समर्पित रहना पड़ेगा | आर्थिक स्थिति में सुधार होगा | विशेष तौर से लोहा, पेट्रोलियम तथा वाहन से जुड़े व्यंवसायियों के लिए समय उत्तम है | जीवनसाथी प्रसन्न और संतान संतुष्ट रहेगी, तथा संतान के क्रिया कलाप, व्यहार, आचरण से हर्ष व संतुष्टि प्राप्त होगी | परिवार में कोई बड़ा मांगलिक आयोजन भी संभव है | वर्ष के मध्य में धार्मिक कार्यों में समय देने से लाभ होगा | स्वयं तथा किसी दुसरे के वाद विवाद, कोर्ट कचहरी तथा मुकद्दमेबाजी से दूर रहें | जीवन में नया उमंग और उत्साह बना रहेगा | आत्मविश्वास के साथ सम्पूर्ण निष्ठां से आगे बढ़ते रहें |


वृश्चिक
नए साल की शुरुआत सकारात्माक व शुभ होगी | परिवार में माता-पिता, बड़े बुजुर्गो का सम्मान करे तथा उनके सुझाव का पालन करे तो कभी भी दुखी नहीं होंगे, कामयाबी अवश्य मिलेगी तथा उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख-शांति बनी रहेगी | उच्चाधिकारी के साथ कटु संबंधों में सुधार होगा | संतान की ओर से सुखद समाचार मिल सकता है | विद्यार्थियों के लिए समय अनुकूल है | वर्ष के मध्य में समय ठीक नहीं रहेगा, अनेक प्रयास के बाद भी कार्य बाधित होगा व लाभ में कमी आएगी, शत्रु प्रभावी होंगे साथ ही मन भी अशांत व चिंतित रहेगा | वर्ष के अंत से समय फिर से आपके पक्ष में होने लगेगा, जो आपको दीर्घकालिक लाभ देगा | शत्रु शांत रहेंगे |


धनु
नव वर्ष उत्साह, खुशियों, नई उर्जा से परिपूर्ण होगा | शत्रुओं पर विजय प्राप्त होगी | व्यापारी वर्ग को व्यापार विस्तार से लाभ अथवा कोई नई योजना फलीभूत होगी | नौकरीपेशा लोगों को लाभ मिलेगा | शेयर में निवेश से लाभ होगा | पुराने समय से चल रहे न्यायिक मामलो में राहत मिलेगी | वैवाहिक जीवन सुखद रहेगा तथा जीवनसाथी का पूर्ण सहयोग आपको मिलता रहेगा | विद्यार्थियों के लिए समय उत्तम है | थोड़े परिश्रम से शिक्षा प्रतियोगिता में उत्तम लाभ प्राप्त होगा | किन्तु आलस्य से बचें | राजनीतिक संबंधों का भरपूर लाभ प्राप्त हो सकता है |


मकर
नए वर्ष की शुरुआत पिछले वर्ष की तुलना में बेहतर होगी | परिश्रम का उचित लाभ व शुभ फल प्राप्त होगा | पुराने कर्जों व आर्थिक हानि से मुक्ति मिलेगी, परन्तु पुराने मुकद्दमे समस्या पैदा कर सकते हैं, तो बेहतर होगा की उन्हें न उठाया जाए | शिक्षा - प्रतियोगिता तथा प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों - छात्रों के लिए यह सफलता प्राप्त करने का सुनहरा समय है | कुछ स्वस्थ्य सम्बन्धी समस्या, शारीरिक कष्ट हो सकता है, दिनचर्या का ख़ास ध्यान रखें | सहकर्मियों से मतभेद व वाद विवाद होंगे लेकिन आपके प्रयास व हस्तक्षेप से नियंत्रित हो जायेंगे | परिवार में मांगलिक अथवा वैवाहिक आयोजन संभव है |


कुम्भ
नये वर्ष का प्रारंभ कुछ तनाव भरा, उथल पुथल से परिपूर्ण कुछ निराशाजनक हो सकता है | किन्तु ज़रा सा भी घबराने या विचलित होने की आवश्यकता नहीं | धीरज व सूझ बूझ से काम लेंगे तो सब ठीक हो जायेगा | आय में उतार-चढ़ाव आता रहेगा, जिसे आप अपने परिश्रम व प्रभु की आराधना से दूर कर सकते है | जब आप यह जानते हो की भाग्य पूरी तरह आपके साथ नहीं है, तो ऐसे में आपको कड़ी मेहनत व अपने ईश्वर में निष्ठां तथा श्रद्धा रखनी होगी | साहित्यिक क्षेत्र के लोगों के लिए समय उत्तम है, सामाजिक मान - सम्मान, यश - कीर्ति, पद प्रतिष्ठा प्राप्त होगी | नौकरी में प्रगति तथा कोई विशेष उपलब्धि के योग हैं | साल के मध्य में परिस्थिति आपके नियंत्रण में होगी, शुभ समाचार मिलने लगेंगे, रुके कार्य सिद्ध होंगे तथा बकाया व अटका हुआ धन वापस आएगा | स्वयं अपना व परिवार के वरिष्ट सदस्यों के स्वास्थ्य का ध्यान रखना अनिवार्य होगा | विदेश यात्रा व प्रवास के प्रबल योग है | उत्तम संतान सुख प्राप्ति के योग हैं |


मीन
साल के प्रारंभ में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है | किसी भी नए काम को करने से पहले या किसी बड़े निवेश से पूर्व उसके हर पहलू पर विचार कर लें, तथा अनुभवी व्यक्ति से सलाह अवश्य करे | निवेश से आशानुरूप आय व लाभ न होने से मानसिक अशांति, चिंता में वृद्धि होगी | सौम्य व्यवहार, मृदु वाणी, प्रेमभाव आपको निश्चित लाभ देगा, इसे नज़रअंदाज़ न करें, इससे आपके बिगड़े कार्य सिद्ध होंगे | आप नई ऊंचाइयों की तरफ बढ़ेंगे, नई जिम्मेदारियां मिल सकती हैं मतलब पदोन्नति के संकेत हैं | वर्ष का उत्तरार्ध कार्यक्षेत्र और व्यापार के लिहाज से सर्वोत्तम काल साबित हो सकता है | आय के स्रोत बढ़ेंगे |

Sunday, August 14, 2011

बहुला चतुर्थी व्रत, संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत

भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्ट चतुर्थी या विनायक चतुर्थी का व्रत किया जाता है। इस दिन चन्द्रमा के उदय होने तक संकष्ट चतुर्थी का व्रत करने का महत्व है। महिलाएं इस दिन सुबह स्नान कर पवित्रता के साथ भगवान गणेश की आराधना आरंभ करें। भगवान गणेश की प्रतिमा के समक्ष व्रत का संकल्प लें। इसके बाद धूप, दीप, गंध, पुष्प, प्रसाद आदि सोलह उपचारों से श्री गणेश का पूजन संपन्न करें।

इसके बाद सायं चन्द्र उदय होने तक मौन व्रत रखें। इसके बाद शाम होने पर फिर से स्नान कर इसी पूजा विधि से भगवान गणेश की उपासना करें। इसके बाद चन्द्रमा के उदय होने पर शंख में दूध, दुर्वा, सुपारी, गंध, अक्षत रख कर भगवान श्री गणेश, चन्द्रदेव और चतुर्थी तिथि को अघ्र्य दें। चतुर्थी के दिन एक समय रात्री को चंद्र उदय होने के पश्च्यात चंद्र दर्शन करके भोजन करे तो अति उत्तम रेहता हैं। इस प्रकार संकष्ट चतुर्थी व्रत के पालन से सभी मनोकामनाएं पूरी होने के साथ ही व्रती के व्यावहारिक, मानसिक जीवन से जुड़े सभी संकट, विघ्न और बाधाएं समूल नष्ट हो जाते हैं। 

अर्घ्य के समय गणेश, चन्द्र व चतुर्थी प्रार्थना :-
हे सब सिद्धियों के प्रदाता श्रीगणेश जी ! आपको मेरा नमस्कार है। संकटों का हरण करने वाले देव! आप मेरे द्वारा अ‌र्घ्यग्रहण कीजिए, आपको मेरा नमस्कार है। कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चन्द्रोदय होने पर पूजित देवेश! आप मेरे द्वारा अ‌र्घ्य ग्रहण कीजिए, आपको मेरे नमस्कार है। तिथियों में गणेश जी को सर्वाधिक प्रिय देवि! आपको मेरा नमस्कार है। आप मेरे समस्त संकटों को नष्ट करने के लिए अ‌र्घ्य स्विकार करें। 

श्रीगणेश चतुर्थी व्रत के क्या है लाभ और क्या करे.....क्या न करे....
भगवान श्रीगणेश जी को प्रसन्न करने का साधन बहुत ही सरल और सुगम है। इसे गरीब या अमीर मनुष्य कर सकता है। इसमें न विशेष व्यय की, न विशेष दान-पुण्य की, न विशेष योग्यता की और न विशेष समय की ही आवश्यकता है। भगवान श्रीगणेशजी की पूजा करते समय इन बातों पर विशेष ध्यान दें। भगवान श्रीगणेशजी की प्रतिदिन पूजा करे और प्रात:काल उठकर सबसे पहले इनके चित्र या मूर्ति के दर्शन करे। किसी काम के प्रारम्भ से पहले भगवान श्रीगणेशजी का स्मरण करना कभी न भूलो। अपने निवास, मकान, महल बनाते समय द्वार पर आले में भगवान श्रीगणेशजी की सुंदर मूर्ति लगाना न भूलो। इससे आपको हर समय दर्शन-स्मरण करने का सौभाग्य मिलेगा। भगवान श्रीगणेशजी को प्रसन्न करने के लिए स्वयं भी सात्विक बनो। तामसिक वस्तुओं का सेवन मत करो। पूज्य ब्राह्मणों द्वारा श्रीगणेश पुराण की कथा का श्रवण करे। मंदिर में श्री गणेशजी का दर्शन-पूजा करो। गणेशजी के मंत्र का जप तथा इनके नाम का संकीर्तन करे। भगवान श्रीगणेशजी प्रसन्न होंगे और आपकी विघ्न-बाधाओं को दूर कर देंगे |

बहुला व्रत का महत्व 
इस व्रत को स्त्रियाँ अपने पुत्रों की रक्षा के लिए मनाती हैं. इस व्रत को रखने से संतान का सुख बढ़ता है. संतान की लम्बी आयु की कामना की जाती है.  इस दिन गाय माता की पूजा की जाती है. इस व्रत में गेंहू चावल से निर्मित वस्तुयें तथा दूध व दूध से बने पदार्थों का उपयोग नहीं किया जाता है. इस दिन गाय के दूध पर केवल उसके बछडे़ का अधिकार माना जाता है.,गाय और शेर की प्रतिमा मिट्टी से बनाकर उनका पूजन किया जाता है,गाय जमीन जायदाद और घर की महिलाओं से सम्बन्धित है, और शेर परिवार की शक्ति और रक्षा का प्रतीक माना जाता है।

व्रत रखने की विधि 
इस दिन सुबह सवेरे स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र पहने जाते है. पूरा दिन निराहार रहते हैं. संध्या समय में गाय माता तथा उसके बछडे़ की पूजा की जाती है. भोजन में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं. जिन खाद्य पदार्थों को बनाया जाता है उन्हीं का संध्या समय में गाय माता को भोग लगाया जाता है. देश के कुछ भागों में जौ तथा सत्तू का भी भोग लगाया जाता है. बाद में इसी भोग लगे भोजन को स्त्रियाँ ग्रहण करती हैं. इस दिन गाय तथा सिंह की मिट्टी की मूर्ति का पूजन किया जाता है.

बहुला चतुर्थी व्रत कथा
द्वापरयुग में भगवान्‌ श्रीकृष्ण द्वारा जंगल में सिंह के रुप में कामधेनु के अंश से उत्पन्‍न गाय, जो नन्दकुल की सभी गायों में सर्वश्रेष्ठ गाय थी.जिसका नाम बहुला था, की परीक्षा ली और बहुला द्वारा बछडे को दूध पिलाकर सिंह के पास वापस लौट कर आने का वचन निभाना और अपने वचन एवं सत्य धर्म का पालन करने की कथा है। जिसकी वचन निष्ठा देख कृष्ण भगवान ने कहा कि बहुला तुम्हारे प्रभाव से और सत्य के कारण कलयुग में घर-घर में तुम्हारा पूजन किया जाएगा. इसलिए आज भी गायों की पूजा की जाती है और गौ मता के नाम से पुकारी जाती हैं. इस दिन श्री विघ्नेश्वर गणेश जी की पूजा-अर्चना और व्रत करने से व्यक्ति के समस्त संकट दूर होते हैं, इस लिये इसे संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। 

Saturday, July 16, 2011

कलियुग में अमोघ, विलक्षण तथा राम बाण है बजरंग बाण का नित्य प्रयोग...!!!

कलियुग के प्रत्यक्ष व साक्षात् देवता श्री हनुमान जी के चमत्कार से कौन परिचित नहीं है | जीवन के समस्त दुःख, संताप को मिटाने के लिए यूँ तो हनुमान जी के कई सारे प्रयोग प्रचलित है लेकिन कुछ ऐसे अनुभूत अनुष्ठान है जिनका प्रयोग आज तक कभी भी खाली नहीं गया, बजरंग बाण भी उन्ही में से एक है | मनुष्य जीवन के समस्त भौतिक मनोकामनाओं की पूर्ति के लिये, दुखो, कष्टों, बाधाओ के निवारण हेतु बजरंग बाण का प्रयोग अमोघ व विलक्षण प्रभाव से युक्त पाया गया है जो समय समय पर आजमाया और अनुभूत है | जिस भी घर, परिवार में बजरंग बाण का नियमित पाठ, अनुष्ठान होता है वहाँ दुर्भाग्य, दारिद्रय, भूत-प्रेत का प्रकोप और असाध्य रोग, शारीरिक कष्ट कभी नहीं सताते | समयाभाव में जो व्यक्ति नित्य पाठ करने में असमर्थ हो, उन्हें कम से कम प्रत्येक मंगलवार को यह पाठ अवश्य करना चाहिए। बजरंग बाण का नियमित सम्पूर्ण पाठ किसी भी जातक के जीवन में व्याप्त सम्पूर्ण कष्ट, घोर संताप को हरने में सक्षम है जो लोग समयाभाव के कारण सम्पूर्ण पाठ ना कर सके उनके लिए बजरंग बाण का शुक्ष्म अमोघ, विलक्षण व महाकल्याणकारी प्रयोग प्रस्तुत है | ध्यान रहे की अनुष्ठान के लिये शुद्ध स्थान तथा शान्त वातावरण परम आवश्यक है जहाँ कोई आपको टोके ना और आपकी साधना निर्बाध्य, अखंड रूप से पूरी हो जाये | यदि घर में यह संभव और सुलभ न हो तो कहीं एकान्त स्थान अथवा आस पास स्थित हनुमानजी के मन्दिर के एकांत, सुरम्य प्रागड़ का प्रयोग करें।

अनुष्ठान प्रक्रिया-
किसी भी अभीष्ट कार्य की सिद्धि हेतु शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार से प्रारंभ कर चालीस दिन इसका अनुष्ठान कर सकते है | साधना काल में कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करे व स्वयं धारण हेतु लाल वस्त्र तथा बैठने हेतु ऊनी अथवा कुशासन प्रयोग करें | सर्वप्रथम हनुमानजी व श्रीसीता राम दरबार का एक चित्र या मूर्ति लाल वस्त्र पर अपने समक्ष स्थापित करे | महावीर हनुमान जी के किसी भी अनुष्ठान मे अथवा पूजा आदि में अखंड दीप और दीपदान का विशेष महत्त्व होता है। इसके लिए पांच प्रकार के अनाज अर्थात - गेहूँ, चावल, मूँग, उड़द और काले तिल को अनुष्ठान से पूर्व एक-एक मुट्ठी प्रमाण में लेकर शुद्ध गंगाजल में भिगो दें, जिसका प्रयोग अनुष्ठान हेतु अखंड दीप बनाने में करेंगे | अनुष्ठान वाले दिन इन अनाजों को पीसकर उस का एक बड़ा दीया बनाएँ | दिए की बत्ती के लिए साधक लाल कच्चे सूत का कलावा प्रयोग करे | उस कलावे को अपने सर से लेकर पाँव तक की लम्बाई के बराबर पाँच बार नाप ले और फिर इसकी बत्ती बना कर दीपक में प्रयुक्त करे | अखंड दीप हेतु तिल का तेल या चमेली के तेल का प्रयोग कर सकते है | हनुमानजी के अनुष्ठान के लिये गूगुल की सुगन्धित धुनी या धुप भी एक आवश्यक अवयव है अत: गूगुल की धूनी या धुप की भी व्यवस्था रखें। 

सम्पूर्ण साधना के चालीस दिन में हनुमान जी को गुड चने, मधु - मुनक्का, बेसन के मोदक, केले आदि का भोग अर्पित करे और साधना उपरांत प्रसाद वितरण कर स्वयं ग्रहण करे तथा आपका प्रयास यह होना चाहिए की आप एक समय गुड और गेहू से बने पदार्थ ही ग्रहण करे और एक समय फलाहार करे | जप के प्रारम्भ में यह संकल्प अवश्य लें कि हनुमान जी की कृपा से आपका कार्य जब भी होगा, उससे जो भी धन लाभ होगा उसमे से हनुमानजी के निमित्त कुछ नियमित अंश दान, अनुष्ठान, पूजा पाठ आदि आप अवश्य करते रहेंगे। अब शुद्ध उच्चारण के साथ ह्रदय में हनुमान जी व सीता राम जी की दिव्य छवि का ध्यान कर बजरंग बाण का सम्पूर्ण पाठ प्रारम्भ करें। यदि सम्पूर्ण पाठ संभव ना हो तो बजरंग बाण के निम्न दोहे का जाप निरंतर करते रहे |

|| चरण शरण कर जोरी मानवों | एहि अवसर अब केही गोहरावो ||
|| उठु-उठु चल तोहि राम दुहाई। पाँय परौं कर जोरि मनाई ||

कैसे और क्यूँ करें श्रावण में सोमवार व्रत, पूजा व कथा.....?


परम पुण्य श्रावण मॉस में सोमवार के व्रत का विशेष महात्यम है | पुराणों व प्राचीन शास्त्रों के अनुसार सोमवार के व्रत तीन प्रकार के बताये गए है। पहला तो है की सिर्फ सावन में जितने भी सोमवार पड़े उन समस्त सोमवार पर व्रत कर उमा - महेश्वर की आराधना करना, दूसरा सोलह सोमवार का सांकल ले कर सावन के सोमवार से प्रारंभ कर सोलह सोमवार व्रत करना तथा तीसरा है सोम प्रदोष, प्रदोष तिथि मॉस में दो बार आनेवाली तिथि है जो भगवान् शिव को अतिप्रिय है और जब वह तिथि सोमवार को आ जाये तो फिर क्या कहना, इस कारण सोम प्रदोष को व्रत का भी विशेष महात्यम वर्णित है । तीनो में से किसी भी तरह के सोमवार व्रत की विधि सभी व्रतों में समान होती है। जिनमे उमा - महेश्वर अर्थात भगवान शिव तथा देवी माँ पार्वती की विशेष पूजा आराधना की जाती है। और यदि इनमे से किसी भी व्रत को श्रावण मॉस में प्रारंभ करे तो और भी शुभ है | सभी सोमवार व्रत विशेषकर श्रावण में किये जाने वाले सोमवार व्रत सूर्योदय से प्रारंभ कर तीसरे प्रहर तक अर्थात संध्याकाळ, गोधुली बेला तक किया जाता है उसके उपरांत सविधि शिव - पार्वती पूजन पश्चात सोमवार व्रत की कथा सुननी आवश्यक है। व्रत करने वाले साधक को दिन में एक समय ही भोजन करना चाहिए।

कैसे करे सावन व्रत व पूजा -
व्रत की पूर्व रात्रि को हल्का व सात्विक भोजन करे तत्पचात ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पूरे घर की सफाई कर्म व स्नानादि से निवृत्त हो यदि गंगाजल हो तो गंगा जल या किसी पवित्र तीर्थ के जल का पूरे घर में छिडकाव व सिंचन करे जिससे स्थान शुद्धि हो जाये। पूजा स्थान पर लाल वस्त्र बिछाकर शिव परिवार का चित्र या मूर्ति स्थापित करें।

निम्न मंत्र से संकल्प लें- 
'मम क्षेमस्थैर्यविजयारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमव्रतं करिष्ये'

शिव का ध्यान मंत्र - 
'ध्यायेन्नित्यंमहेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्‌।
पद्मासीनं समंतात्स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्ववंद्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्‌॥


ध्यान के पश्चात पूजा के मंत्र -
'ऊँ नमः शिवाय' से शिवजी का तथा 'ऊँ नमः शिवायै' से पार्वतीजी का षोडशोपचार पूजन करें। पूजन के पश्चात व्रत कथा अवश्य सुनें। तत्पश्चात सपरिवार आरती कर प्रसाद वितरण करें। इसकें बाद भोजन या फलाहार ग्रहण करें।

श्रावण मॉस में सोमवार व्रत - कथा करने के फल- 
सोमवार व्रत नियमित रूप से करने पर भगवान शिव तथा माँ पार्वती की कृपा, अनुकम्पा बनी रहती है तथा सभी अनिष्टों, अकाल मृत्यु व बाधाओ से न ही सिर्फ मुक्ति मिलती है बल्कि अपने भक्तो पर आने वाले किसी भी कष्ट को स्वयं महाकाल शिव हर लेते है तथा जीवन - कुटुंब धन-धान्य, समस्त सुख - समृद्धि, ऐश्वर्य से परिपूर्ण रहता है। 

Wednesday, July 13, 2011

गुरु बिना ज्ञान पथ की परिकल्पना असंभव है....

|| गुरुब्रम्हा गुरु विष्णु गुरुदेवों महेश्वर :
गुरु साक्षात् परं ब्रम्ह तस्मै श्रीगुरवे नमः ||


|| सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार
लोचन अनंत उघाडिया, अनंत दिखावन्हार ||


महात्मा कबीर सच्चे गुरु की महत्ता को प्रतिष्ठित करते हुए यहाँ तक कहते है …
गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागू पाँव ,
बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय...


कृष्ण द्वैपायन व्यास (वेदव्यास जी) का अवतरण आषाढ़ मॉस की पूर्णिमा को हुआ था इसलिए आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को व्यास पूजन के बाद अपने-अपने गुरु की पूजा विशेष रूप से की जाती है। सदगुरु परमात्मा का साक्षात्कार करवाकर शिष्य को जन्म-मरण के बंधन से मुक्त कर देते है, अतएव संसार में गुरु का स्थान विशेष महत्व का है।समस्त वेदों, "ब्रह्मसूत्र" की रचना व्यासजी ने की। पांचवां वेद "महाभारत" व्यासजी ने लिखा भक्ति-ग्रन्थ भागवतपुराण भी व्यासजी की रचना है एवं अन्य 18 पुराणों का प्रतिपादन भी भगवान वेदव्यास जी ने ही किया है। व्यासजी ने पूरी मानव-जाति को सच्चे कल्याण का खुला रास्ता बता दिया है। व्यासदेव जी गुरुओं के भी गुरु माने जाते हैं। ज्ञान के असीम सागर, भक्ति के आचार्य, विद्वत्ता की पराकाष्ठा और अथाह कवित्व शक्ति अतः इनसे बड़ा कोई कवि मिलना असंभव है। गुरू पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है। इसी दिन से वर्षाकालीन चातुर्मास का प्रारंभ होता है जिसमे साधु-संत, गुरु एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं और विद्यार्थी उसे ग्रहण करते है | शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है - अंधकार या मूल अज्ञान और रु का अर्थ किया गया है - उसका निरोधक।

अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानांजनशलाकया |
चक्षुरुन्मीलितम येन तस्मै श्री गुरुवै नम : ||


अर्थात अज्ञान रूपी अंधकार की अन्धता को ज्ञान रूपी काजल की शलाका से हमारे नेत्रों को खोलने वाले श्री गुरु को नमन है, गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है अथवा अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को 'गुरु' कहा जाता है। गुरु एक वैदिक परंपरा है और कम से कम भारतीय परिवेश में इसका महत्त्व कभी कम नहीं हो सकता है | गुरु शिष्य परंपरा हमारे देश में सदैव ही समृद्ध रही है | गुरु सदैव अपने ज्ञान दीप से जीवन में प्रगति के मार्ग को प्रशस्त करने का गुर सिखाने वाले और हमारी आभा की पहचान करने वाले और हमारे मनोविकारों को दूर करने में सहायक सिद्ध होते हैं | हमारी संस्कृति में गुरु को उच्चतम स्थान दिया गया है और उनकी आज्ञा को सर्वोपरि मानकर उनके आदेश का अक्षरश: पालन किया जाता है | गुरु बिना करोड़ों पुण्य भी व्यर्थ हैं | रामायण के प्रसंग अनुसार भगवान्‌ श्रीराम भी गुरुद्वार पर जाते थे और माता-पिता तथा गुरुदेव के चरणों में विनयपूर्वक नमन करते थे - प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा॥

व्यास जी की साधना कथा -
वसिष्ठ जी महाराज के पौत्र पराशर ऋषि के पुत्र वेदव्यास जी जन्म के कुछ समय बाद ही अपनी मां से कहने लगे-"अब हम जाते हैं तपस्या के लिए।" मां बोली-"बेटा! पुत्र तो माता-पिता की सेवा के लिए होता है। माता-पिता के अधूरे कार्य को पूर्ण करने के लिए होता है और तुम अभी से जा रहे हो?" व्यास जी ने कहा-"मां! जब तुम याद करोगी और जरूरी काम होगा, तब मैं तुम्हारे आगे प्रकट हो जाऊंगा।" मां से आज्ञा लेकर व्यासजी तप के लिए चल दिए। वे बदरिकाश्रम गए। वहां एकांत में समाधि लगाकर रहने लगे। बदरिकाश्रम में बेर पर जीवनयापन करने के कारण उनका एक नाम " बादरायण" भी पड़ा।


गुरु कैसा हो...? गुरु बनाने के शास्त्रीय आधार व सुझाव -
गुरु वही होता है जो वेद शास्त्रो का ज्ञाता अथवा वेदांती हो स्वभाव से सरल, उदार हो जिसके आचार विचार मे अदभुत आकर्षण हो और जिसके व्यक्तित्व को याद करते ही मानसिक संतोष की अनुभूति हो वही सच्चा गुरु है | सदगूरू शास्त्रो का ज्ञानी, साधना के धर्म को जानने वाला, सदाचारी और शिष्य के प्रति वात्सल्य रखने वाला ही सच्चा सदगूरू है | श्री रामचरित मानस के अनुसार भारत जी कहते है के जीवन में गुरु बनाने की कोई सीमा निर्धारित नहीं है, जिससे जो कुछ अच्छी सीख मिले वह गुरु है |


गुरु पूर्णिमा पर जपा जाने वाला मंत्र -

|| ॐ निं निखिलेश्वरायै ब्रह्म ब्रह्माण्ड वै नमः ||

गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरु का ध्यान व चरण वंदन कर इस मंत्र 
को मुंगे की माला से १०१ माला जप करें |

Wednesday, July 6, 2011

कैसे मिले अर्घ्य का सही फल....? अर्घ्य देने के हानि - लाभ व आधार...

आनादीकाल से ही सत्य सनातन परम्परा में देवी देवताओं, ग्रहों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपनी श्रद्धांजली या कृतज्ञता स्वरुप अर्घ्य देने की परम्परा चली आई है | एक तरफ यह आरोग्यता दायक है और वाही दूसरी तरफ मनुष्य के अंदर की छठी इन्द्रिय को जागृत करने में सहायक भी | इस कारण इससे जुड़े कई सारे पर्व भी हमारी सभ्यता के अंग है और सूर्य को जल देना तो एक दैनिक जीवनचर्या का हिस्सा ही है | जहाँ एक ओर अर्घ्य देना अध्यात्मिक प्रक्रिया है तो वही दूसरी ओर यह पूर्णत: वैज्ञानिक भी | तो आइये जानते है भिन्न भिन्न अर्घ के क्या लाभ है और किस विशेष समस्या के लिए कौन सा अर्घ्य लाभकारी है और यह धयान रखे की किसी भी निमित्त जब अर्घ्य दे तो कम से कम पैतालीस दिन का नियमित प्रयोग अवश्य करे |

सूर्य को अर्घ्य दें
सूर्य को नित्य अर्घ्य देना किसी भी व्यक्ति के लिए आरोग्यता व सौभाग्य प्रदायक माना गया है | यह अर्घ्य तांबे के पात्र में जल भरकर उसमे एक चुटकी रोली या लाल चंदन का चूर्ण, हल्दी, अक्षत, एक लाल पुष्प डालकर लाल वस्त्र धारणकर गायत्री मंत्र के सात बार उच्चारण के साथ साथ चरणों में सात बार दें ।

चंद्रमा को पूर्णिमा को दिन दूध का अर्घ्य दें
यदि मन में बहुत जादा चंचलता हो...कही मन न लगे...बार बार उल्टे सीधे विचार आये तो चांदी के पात्र में थोड़ा सा दूध लेकर के चंद्र उदय होने के बाद संध्याकाल में अर्घ्य दें, विशेषकर पूर्णिमा के दिन तो अवश्य दे । चंद्र को अर्घ्य देना मन में आ रहे समस्त बुरे विचार, दुर्भावना, असुरक्षा की भावना व माता के ख़राब स्वास्थ्य को तत्काल नियंत्रित कर लेता तथा आपके मन को संतुष्टि देता है |

भगवान गणेश को विशेष अर्घ्य दें
जब भी कोई नया काम शुरू करे या किसी विशेष व आवश्यक कार्य पर जा रहे है और कोई विधि न मालूम हो तो भगवान गणेश को मिट्टी या धातु (तांबा, पीतल) के पात्र से जल में दूर्वा, अक्षत, रोली, हल्दी चूर्ण, इत्र, कुमकुम, चंदन का चूर्ण, एक रुपए का सिक्का और एक खड़ी सुपारी डालकर अर्घ्य देने के बाद अपना कार्य निश्चिंत होकर प्रारंभ करदे , हर कार्य में सफलता ही हाथ आएगी | 

ग्रह बाधा दूर करने के लिए अर्घ्य दें
ग्रह बाधा दूर करने के लिए नियमित स्नान ध्यान से निर्वित हो कर पीपल के वृक्ष में अर्घ्य देना शास्त्रिय मान्यता में विशेष स्थान रखता है।

माँ शीतला व माँ संकठा को अर्घ्य दें
जब घर में कोई दैवीय प्रकोप हो, घर के किसी सदस्य को ज्वर या गंभीर रोग हो जाए तो लगातार चिकित्सको की परामर्श देख रेख के बाद भी ठीक न हो, सभी जांच परिणाम सामान्य निकले तो ऐसी स्थिती में नियमित नीम के वृक्ष में माँ शीतला व माँ संकठा का ध्यान कर अर्घ्य देना दो धूप बत्तियां जलाना और कुछ मीठा भोग लगाने से तत्काल लाभ होता है।

पारिवारिक क्लेश निवारण हेतु तुलसी माँ को अर्घ्य 
यदि किसी परिवार में बहुत जादा ही कलह क्लेश का वातावरण हो तो ऐसी स्थिती में घर के मध्य भाग (ब्रह्म स्थान) या इशान कोण में एक तुलसी का पौधा लगाकर उसमे नियमित दूध का अर्घ्य देना और देसी घी के दीपक से आरती करना कितने भी कठिन से कठिन वातावरण को तत्काल नियंत्रित कर उर्जा को शुद्ध करता है तथा घर के सभी सदस्यों में उच्च संस्कार को संचारित करता है |

Saturday, July 2, 2011

मासिक राशी फल जुलाई 2011



मेष -
इस मास आप अपनी वाणी से बने काम ख़राब कर सकते है अत: वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए | आपके कार्यक्षेत्र में व्यवधान वाला समय है तो अधिक आतुर न हो या जल्दीबाजी में बिना सोचे समझे निवेश अथवा आर्थिक निर्णय न करे | स्वास्थ्य के सन्दर्भ में उतर चढाव को अनदेखा करने पर मिश्रित फल मिलेंगे | परिवार का माहौल ठीक रहेगा, आपके प्रयास करने पर कुटुंब में जो कुछ भी तनाव है वह शांत और समाप्त हो सकता है | आपके सतत प्रयासरत रहने व सौम्य व्यहार रखने से आपकी आमदनी बढ़ने की सम्भावनाएँ हैं | आपका कार्यभार व जिम्मेदारियां अधिक हो सकती है जिसके लिए आपको सदैव तैयार रहना चाहिए |


वृषभ - इस मॉस में कार्य, परिवार, व्यापार का दबाव अधिक होने से आपके स्वभाव में चिड़चिडा़पन सम्मिलित और परिलिक्षित होगा | जल्दीबाजी व बिना परिणाम सोचे कार्य करने से किसी भी कार्य में सफलता हासिल नहीं कर पाएंगें | मानसिक कष्ट, तनाव व परेशानियाँ अधिक होंगी | आप अपने खान-पान व दिनचर्या पर सम्पूर्ण ध्यान दें इसमें लापरवाही आपको स्वस्थ्य समस्या विशेषकर उदार कास्ट, मस्तिष्क पीड़ा, त्वचा विकार तथा तेज ज्वर दे सकती है | आपको अपनी व परिवार की महत्वाकांशाओ, उम्मीदों को पूरा करने के लिए जहा कार्यरत है वही अधिक परिश्रम तथा प्रयासों को दुगुना करना पड़ेगा या फिर व्यापार में रोज़ से अधिक परिश्रम करना पड़ेगा |


मिथुन - यह माह आपके लिए विशेष उपलब्धियों से परिपूर्ण होगा | कठोर परिश्रम वाला समय व्यापार में शुभ साबित होगा | आपकी आय के स्त्रोतों में वृद्धि होगी | सोचे कार्य समय पर पूर्ण होंगे | रुके व बाधित कार्यो में आपको प्रयास करने से कामयाबी प्राप्त होगी | बेरोजगार व्यक्तियों को कार्य मिलेगा | आपके उच्चाधिकारी आप से प्रसन्न रहेगें, उनके सहियोग करने से आपके आत्मविश्वास में वृद्धि होगी | आप अपनी क्षमता का भरपूर उपयोग कर सफलता के नए स्तर पर पहुंच सकते है | इस माह के अंत तक कार्य व्यवसाय के सन्दर्भ में विदेश यात्रा के योग भी बनेंगे |


कर्क - यह माह आपके लिए व आपकी योजनाओं के लिए अनुकूल है किन्तु कुछ बातो का ध्यान रखना होगा | स्वास्थ्य के प्रति लापवाही ना बरतें | बच्चों का अपने परिवार व अभिभावकों से संबंधों में कटुता हो सकती है | भू निवेश से लाभ प्राप्त होने का योग है | थोडे़ से ही अधिक प्रयास तथा मेहनत से सफलता प्राप्त होगी, नौकरी, व्यापारिक लाभ, उत्तम होगा | बकाये धन तथा अन्य कई स्रोतों से लाभ की प्राप्ति व वृद्धि हो सकती है | नया व्यापार, व्यवसाय, कार्यक्षेत्र का विस्तार करने वालों के लिए यह माह खासी उपलब्धियों से परिपूर्ण होगा | उदर कष्ट से सावधान रहे गंभीर वात समस्या परेशान करेगी |


सिंह - इस मॉस में आपको अपने पुराने निवेश का लाभ मिलेगा | किसी को दिए हुए धन अर्थात बकाये धन अथवा कोई पुराना भुला हुआ मुनाफा या गुप्त धन की प्राप्ति हो सकती है | आय के स्त्रोत एक से अधिक हो सकते हैं | व्यापारिक, आर्थिक परिस्थितियाँ आपके पक्ष में रहेगीं | संतान के व्यहार से अभिभावक असंतुष्ट रहेंगे | गुप्त शत्रु पीड़ा देंगे जिसके कारण आप मानसिक रुप से परेशानी का अनुभव करेगें तथा इस कारण भी आप चिन्तातुर हो सकते हैं | विदेश से सम्बंधित कार्य करने वालो के लिए यह मॉस सर्वोत्तम सिद्ध हो सकता है |


कन्या - आपके कार्यक्षेत्र में अपने उच्चाधिकारियों व सहकर्मियों से संबंधों में मधुरता तथा तालमेल का अभाव रहेगा | आपकी हर प्रकार से जिम्मेदारी बढ़ेगी जिसके चलते मानसिक तनाव, थकान व व्यर्थ की भाग दौड़ जादा होगी, व्ययभार बढेगा, खर्चा अधिक होगा, जिसके परिणाम स्वरुप उच्च रक्तचाप की समस्या या शिकायत हो सकती है | आय के साधन बढ़ाने की चिंता व प्रयास होंगे | संतान पक्ष से आपको संतुष्टि रहेगी तथा आपको लाभ और सहयोग, मानसिक संबल प्राप्त होगा | परिवार में छोटे बच्चो का स्वास्थ्य भी बहुत अच्छा नहीं रहेगा जो एक और चिंता का विषय होगा |

तुला - इस माह आप आधिक आय कमाने के लोभ में आकर आप गलत तरीकों में ना पडे़ | परिवार की जिम्मेदारियो का ध्यान दे उनसे मुँह ना मोडे़ | नई नौकरी मिलने या कार्यक्षेत्र में बदलाव अथवा विस्तार की पूर्ण व मजबूत संभावना है | क्रोध, उत्तेत्जना, तनाव को कम व नियंत्रित करे अन्यथा उच्च रक्तचाप की समस्या का सामना करना पड़ सकता है | कार्यों में विघ्न आने पर आपको क्रोध अधिक आएगा, बने कार्य प्रभावित होंगे | विद्यार्थियों के लिए यह माह उनकी योग्यता के आधार पर फल देने वाला रहेगा, अत: पूरी महेनत व एकाग्रता के साथ अध्ययन में लगे |


वृश्चिक - नौकरी पेशा व्यक्ति तथा आय में वृद्धि चाहने वाले कर्मचारियों के लिए इस माह में नौकरी में परिवर्तन व आय में वृद्धि के संकेत है | लेकिन आपको गलत तरीकों से धनोपार्जन की लालच, प्रलोभन भी दिए जा सकते है जिनसे आपको स्वयं को बचाना होगा अन्यथा न्यायिक बाधा समक्ष उत्पन्न होगी | इस माह आप अपनी मनमानी अधिक करेगें जिसके प्रतिफल आपके सभी करीबी आपसे दुरी बना लेंगे | आपके सहयोगी तथा परिजन आपसे नाराज भी रह सकते हैं | अपने व्यहार तथा कर्मों को सुधार कर सबको साथ लेकर चलेंगे तो लाभ व उन्नति प्राप्त होगी | क्रोध को नियंत्रित रखे |

धनु - इस माह में किसी गंभीर, कठिन व काफी समय से बाधित, अपूर्ण कार्य के आपके द्वारा पूर्ण होने से सामाजिक इस्थिति, मान सम्मान में वृद्धि, कीर्ति तथा सुयश की प्राप्ति होगी | आपको उपहार,सामाजिक प्रतिष्ठा, यश मिलने की संभावनाएँ बनती हैं | लेकिन किसी घनिष्ट मित्र से आपकी अनबन भी काफी समय चल सकती है | बेरोजगार, नौकरी तलाश रहे लोगो के लिए स्थितियाँ पहले से अधिक अनुकूल रहेगी़ | विद्यार्थियों के लिए संघर्ष का समय हो सकता है | अपेक्षा से अधिक परिश्रम करना होगा | आपने यदि किसी अन्य स्थान पर नई नौकरी के लिए आवेदन कर रखा है तो धैर्य के साथ परिणाम आने तक इंतज़ार करे |


मकर - व्यर्थ की भागदौड़, तनाव अधिक होगा जिसके फल स्वरुप आपकी सेहत पर कुप्रभाव पड़ सकता है | दिनचर्या अस्त व्यस्त होने से आपको उदर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है | क्रोध अधिक होगा जिसके कारण कोई भी आपके समक्ष अपनी भावनाओं तथा अपने विचार प्रकट नहीं कर पाएगा | पारीवारिक वातावरण को अनुकूल अथवा प्रतिकूल बनाना आपके व्यवहार पर निर्भर करेगा | मधुमेह के रोगियों को अपने खान-पान पर अत्यधिक ध्यान देंने की आवश्यकता है |


कुम्भ - आप यदि नौकरी में परिवर्तन चाहते है तो यह समय अनुकूल है यदि नौकरी परिवर्त्तित नहीं होती है तब इससे अच्छा यही है कि आप अपनी रूचि व प्रतिभा अनुरूप व्यापार की शुरुआत भी कर सकते है | जो व्यक्ति क्रोधी है उन्हें अपने क्रोध पर नियंत्रण रखना अनिवार्य है अन्यथा बने काम बिगड़ेंगे तथा आपसे बात करने में परिवार के सदस्यों को झिझक भी होगी | विद्यार्थी वर्ग को इस माह मेहनत का फल उनके मनोनुकूल व योग्यतानुसार प्राप्त होगा | जो व्यक्ति अपनी नौकरी से असंतुष्ट हैं और नई नौकरी के लिए आवेदन करना चाहते हैं वह अवश्य प्रयास करें |


मीन - परिवार में परिजनों और कार्यक्षेत्र में सहियोगियो का दुर्व्यहार आपको मानसिक परेशानी का अनुभव कराएगा | आय में वृद्धि पाने के लिए निरंतर प्रयासरत रहे | कुटुंब में वैचारिक मतभेद होने से परिवार में कलह का वातावरण होगा | ऐसी विषम परिस्थितियों के अनुसार सोच समझ कार्य करें और धैर्य से निर्णय लें | परिवार तथा व्यापार में आपका कार्यभार व भूमिका बढ़ेगी | इस माह आपका दांपत्य जीवन सामान्य या उससे भी कुछ कम होगा | क्रोध पर नियंत्रण रखें व वाणी को सैयमित रखना अनिवार्य है | अपनी जिम्मेदारियों को पूर्ण गंभीरता और से निभाएँ |

Friday, June 24, 2011

दक्षिण दिशा में क्या हो, क्या न हो....?


दक्षिण दिशा पर मुख्यत: मंगल देव का अधिपत्य है उनके साथ ही इस स्थान पर यम तथा राहु - केतु का भी प्रभाव व नियंत्रण वास्तुशास्त्र में माना गया है | यदि यह स्थान जादा खुला हो तो राहु केतु तथा यम का प्रकोप परिवार पर ज्यादा बढ़ जाता है जिसके प्रभाव से जीवन में पग पग विघ्न - बाधा का सामना करना पड़ता है |

क्या हो-
- किसी भी व्यक्ति के जीवन में इस्थाय्त्व के लिए इस स्थान का घर में सबसे ऊँचा व भारी होना अनिवार्य है | 
- घर के वृद्ध व वरिस्थ सदस्यों का कमरा यहाँ बनाये |
- घर में या व्यापारिक स्थान में मालिक की जगह यहाँ लाभ देती है व उपयुक्त होती है |
- घर की सभी बड़ी व भारी वस्तु यहाँ रखे | 
- यह स्थान स्टोर व शौचालय के लिए भी उपयुक्त माना गया है | 
- यह स्थान धन रखने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है |

क्या न हो- 
- यह स्थान ज्यादा खुला नहीं होना चाहिए |
- दक्षिण क्षेत्र का बढ़ा होना भी अशुभ होता है |
- इस स्थान में घर के छोटे बच्चो को कमरा न दे, उनका स्वाभाव व प्रकर्ति जिद्दी हो जाती है | 
- पूजा स्थान यहाँ न बनाये |
- किरायेदारो व मेहमानों को यहाँ कभी भी स्थान न दे | 

ईशान कोण में क्या हो, क्या न हो.....?

वास्तु शास्त्र में ईशान कोण का वृहद् महत्व्य बताया गया है | यह वह स्थान है जिस पर गुरु ग्रह व्र्हस्पति का अधिपत्य है | साथ ही यहाँ वास्तु पुरुष का मस्तक भी है जिसे महादेव शिव का शीश होने की संज्ञा भी दी जाती है | शायद ऐसा इसलिए है क्यूंकि उत्तर और पूर्व दोनों ही शुभ उर्जा के विशेष महत्व्यपूर्ण स्रोत है | इसलिए इसका शुद्ध, साफ़ सुथरा होना आवश्यक है | यदि ईशान में दोष हो जाये तो उस घर के सभी सदस्यों का विकास अवरुद्ध हो जाता है, विवाह योग्य कन्या हो तो विवाह में बाधा आती है | सामाजिक अपयश, गंभीर रोग आदि घर कर जाते है | हर प्रकार की समृद्धि के लिए इस स्थान का जागृत होना बेहद अनिवार्य है | यदि ईशान कोण में मंदिर, साधना कक्ष, अध्यन कक्ष, भूगर्भ जल स्थान घर के अन्य स्थान से अधिक खुला स्थान नहीं है तो यह दोष है | वही अक्सर लोग यहाँ जैसे शौचालय, स्टोर आदि बना कर इस स्थान को दूषित, अपवित्र अनदेखा कर देते है | यह क्षेत्र जलकुंड, कुआं अथवा पेयजल के किसी अन्य स्रोत हेतु सर्वोत्तम स्थान है।


क्या हो-

- यहाँ तुलसी का पौधा लगा कर, सालिगराम व शिव को रख कर पूजा करने से सम्पन्नता आती है |
- इस स्थान पर यदि प्रवेश द्वार हो तो माँ लक्ष्मी की निरंतर कृपा बनी रहती है |
- इस स्थान को साफ़ सुथरा रखना घर के हर सदस्य की नैतिक ज़िम्मेदारी है |
- इस स्थान पर जल क्षेत्र होना बेहद लाभ देता है |
- यह स्थान पूजा पाठ का सबसे उपयुक्त स्थान है |
- इस स्थान को कभी भूल से भी बंद न करे |

क्या न हो-
- यहाँ कभी गन्दगी न करे |
- इस स्थान को बंद न करे और न ही रखे |
-  यहाँ कभी अग्नि का स्थान न रखे |
- यहाँ कभी भी शौचालय न बनाये |
- यहाँ पर भारी सामान व विद्युत् उपकरण न रखे |
- यहाँ किसी भी परिस्थति में गंदे कपडे, जूठे बर्तन, जूते, न हो |
- यदि जब तक अनिवार्य न हो तब तक घर के बड़े बुजुर्गो का स्थान यहाँ न बनाये |

पूर्व दिशा में क्या हो, क्या ना हो

वास्तु शास्त्र का आधार क्या : हमारे महान ऋषि-मुनियों ने बिना तोड़-फोड़ किए गंभीर वास्तु दोषों को दूर करने के लिए कुछ सरल व अत्यंत चमत्कारिक उपाय बताए हैं जो पूर्णत: प्राकर्तिक, ब्रह्मांडीय व पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति तथा सृष्टि की अनमोल धरोहर सूर्य की प्राणदायक किरणों, वायु आदि पर आधारित है। आज से हम अगले कुछ एपिसोदेस में यह जानकारी देगें की किस दिशा में क्या होना चाहिए और क्या नहीं |


क्या हो-
- घर में पूर्व दिशा का शुद्ध होना घर, परवारिक तनाव, विवाद निवारण हेतु व परिवार, सदस्यों की वृद्धि हेतु बहुत ही अनिवार्य है | 
- प्रत्येक कक्ष के पूर्व में प्रातःकालीन सूर्य की प्रथम किरणों के प्रवेश हेतु खुला स्थान या खिड़की अवश्य होनी चाहिए। 
- पूर्व में लाल, हरे, सुनहरे और पीले रंग का प्रयोग करें। 
- पूर्वी क्षेत्र में जलस्थान, बोरिंग, भूमिगत टेंक बनाएं |
- इस स्थान में घर के बच्चो कमरा एवं अध्यन कक्ष या घर के बड़े बेटे का कमरा उचित है |
- यह स्थान पूजा के कमरे के लिए उपयुक्त होता है |
- इस स्थान पर अधिक से अधिक जल स्थान, बोरिंग बनाये |
- पूर्व दिशा की तरफ अधिक से अधिक खुला स्थान व ढाल होनी चाहिए |

क्या ना हो-
- पूर्व दिशा का कटना अशुभ माना जाता है को भाग्य में कमी का सूचक है, 
- इस स्थान पर स्टोर, शौचालय, गन्दगी कदापि ना हो |
- इस स्थान पर घर के वरिष्ट सदस्य का कमरा ना बनाये, उससे घर की वृद्धि प्रभावित होगी |
- इस स्थान को बंद व ऊँचा किसी भी परिस्थति में ना करे |  
- इस स्थान को सीढ़ीयां बनाकर भारी ना करे |

Monday, June 20, 2011

क्या फल देगा राहु - केतु का राशी परिवर्तन...?

विगत 6 जुन 2011को राहु और केतु ने अपना स्थान बदला जिसे राशी परिवर्तन कहते है | राहु और केतु किसी भी राशी में 18 महीने तक रहते है | यह दोनों ग्रह वक्री अवस्था में चलते है और दोनों अपनी नीच राशी से निकल कर राहु धनु से वृश्चिक में व केतु मिथुन से वृषभ में आये | यही कुछ लोगो ने इसे 18 वर्ष बाद हुए एक विशेष खगोलीय व ज्योतिषीय घटना का नाम दिया किन्तु ऐसा नहीं है, ग्रहों का यह राशी संक्रमण एक अनवरत प्रक्रिया है | मैं उनलोगों से पूछना चाहता हूँ जिन्होंने ने इसे 18 वर्ष बाद हुए एक विशेष खगोलीय व ज्योतिषीय घटना का नाम दिया की क्या 18 वर्ष तक राहु केतु एक ही राशी में रहे ? ऐसा संभव ही नहीं और ऐसा सृष्टि के विनाश का सूचक है | यदि वह यह कहे की राहु 18 वर्ष बाद पुन: वृश्चिक में आया तो यह बात मानी जा सकती है व न्याय सूचक व तर्क संगत है | अत: समस्त ज्योतिषी व ज्योतिष कार्य में संलग्न बंधुओ से अनुरोध है के ऐसी भ्रामक बातो का प्रचार न करे या कही सुने तो जनता का भ्रम दूर कर सत्य ज्ञान का बोध कराये |

आइये अब जानते है की इस परिवर्तन का राशियो पर क्या प्रभाव होगा ?


मेष - यह समय धननाश करने वाला होगा अत: निवेश बहुत ही सोच समझ कर करे |
क्या करे- हनुमद आराधना से लाभ संभव |
क्या न करे- निवेश न करे |


वृषभ - राजभय की स्थति बनती दिखाई देती है | किसी के कहे में आकर गलती से भी गलत कार्य में संलग्न न हो न ही सहियोग करे |
क्या करे- शिव आराधना करे |
क्या न करे- किसी के विवाद में न पड़े |


मिथुन - महासुख की प्राप्ति व परिवार का पूरा सहियोग व सानिध्य प्राप्त होगा |
क्या करे- श्री राम की अर्धना करे |
क्या न करे- परिश्रम से पीछे न हटे |


कर्क - धननाश के योग है तो व्यापार वृद्धि व निवेश में सतर्क रहे |
क्या करे- माँ दुर्गा की आराधना से लाभ होगा |
क्या न करे- लालच में न पड़े |


सिंह - सामाजिक प्रतिष्ठा की हानि व अपमान के योग बनते है, सैयम रखे |
क्या करे- विष्णु आराधना फलित होगी |
क्या न करे- कोर्ट कचहरी के विवाद से बचे |


कन्या - सौभाग्य में वृद्धि व धन की प्राप्ति होगी |
क्या करे- माँ लक्ष्मी किया आराधना लाभ देगी |
क्या न करे- निवेश से बचे |


तुला - तुला राशी वालो के लिए यह संक्रमण कलह की परिस्थति ले कर आया है | अत: पारिवारिक विवाद या अन्य किसी भी विवाद से स्वयं को दूर रखे |
क्या करे- वाणी पर नियंत्रण रखे |
क्या न करे- आपा न खोये |


वृश्चिक - अनजाने भय की स्थति बनी रहेगी |
क्या करे- ऐसी परिस्थति में माँ दुर्गा, भैरव की आराधना फलित होगी |
क्या न करे- सोचे बिना कार्य न करे |


धनु - स्वास्थ्य समस्या व भरी कष्ट की स्थति बनती है |
क्या करे- महामृतुन्जय मंत्र का जाप करे |
क्या न करे- स्वास्थ्य की अनदेखी न करे |


मकर - धनलाभ के विशेष योग है | आर्थिक पक्ष मजबूत होगा |
क्या करे- निवेश हेतु उत्तम समय |
क्या न करे- समय व्यर्थ न करे |


कुम्भ - कलहपूर्ण वातावरण बना रहेगा अत: क्रोध व तनाव पर नियंत्रण रखे |
क्या करे- माँ संकठा की आराधना से उत्तम फल मिलेगा |
क्या न करे- विवाद को बढ़ावा न दे |


मीन - दुःख व कष्ट की परिस्थति का सामना हो सकता है |
क्या करे- धीरज से काम ले |
क्या न करे- जल्दीबाजी न करे |

Thursday, June 16, 2011

पशु पक्षी और वास्तु दोष....?

प्राणियों और पक्षियों में अनिष्ट तत्वों को पहचान  कर उन्हें समाप्त करने की अद्भुत शक्तियाँ व क्षमता होती हैं। इस ब्रह्मांड में व्याप्त नकारात्मक शक्तियों को निष्क्रिय बनाने की ताकत इन पालतू प्राणियों में होती है। हमारे शास्त्रों में गाय के संबंध में अनेक बातें लिखी हुई हैं जैसे- शुक्र की तुलना सुंदर स्त्री से की जाती है। इसे गाय के साथ भी जोड़ते हैं। अतः शुक्र के अनिष्ट से बचने के लिए गौदान का प्रावधान है।यदि वास्तु में उत्तर पश्चिम में कोई विशेष दोष हो और ऐसा दोष हो जिसे ठीक न किया जा सकता हो तो गौ सेवा लाभ देती है | जिस भू-भाग पर मकान बनाना हो तो पंद्रह दिन तक गाय-बछड़ा बाँधने से वह जगह पवित्र हो जाती है। भू-भाग से बहुत सी आसुरी शक्तियों का नाश हो जाता है। मछलियों को पालने व आटे की गोलियाँ खिलाने से अनेक दोष दूर होते हैं। इसके लिए सात प्रकार के अनाज के आटे का पिंड बना लें।फिर अपनी आयु जितनी गोलियाँ बनाकर मछलियों को खिलाएँ। घर में फिश-पॉट (मछली पात्र) रखना भी लाभकारी जो सुख-समृद्धिदायक है। जब घर में मछली रखे तो आठ सुनहेरी और एक काली ही रखे | मछली पलना वास्तु के इशान कोण के दोष को दूर करता है | तोते का हरा रंग बुध ग्रह के साथ जोड़कर देखा जाता है। अतः घर में तोता पालने से बुध की कुदृष्टि का प्रभाव दूर होता है। यदि घर की उत्तर दिशा में दोष हो तो भी तोता पलना लाभ देता है | घोड़ा पालना भी शुभ है। सभी लोग घोड़ा पाल नहीं सकते फिर काले घोड़े की नाल को घर में रखने से शनि के कोप से बचा जा सकता है। शनि को प्रसन्न करना हो तो कौवों को भोजन कराना चाहिए। तद्नुसार काले कौवे को भोजन कराने से अनिष्ट व शत्रु का नाश होता हैतथा वास्तु में दक्षिण पश्चिम के वास्तु दोषों में भी रहत मिलती है | मनुष्य का सबसे वफादार माना जाने वाला मित्र कुत्ता भी नकारात्मक शक्तियों को नियंत्रित कर सकता है। उसमें भी काला कुत्ता सबसे ज्यादा उपयोगी सिद्ध होता है। 

कैसी हो अध्ययन टेबल की व्यस्था व संयोजना कुछ प्रमुख सूत्र


1- अध्यन की टेबल पर अपने आराध्य देव, गुरु या जिस किसी देवी देवता को आप मानते हो अथवा विद्या के अधिपति देवी व देवता जैसे माँ सरस्वती, गणेश जी को अपने सामने उनकी निरंतर कृपा प्राप्ति हेतु रख सकते है |

2- टेबल हमेशा आयताकार होना चाहिए, गोलाकार या अंडाकार नहीं होना चाहिए।

3- टेबल के कोने कटे न हो और वह टूटी न हो, कर्कश आवाज़ न करती हो यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए |

4- टेबल का रंग सफेद, पीला या उससे सम्बंधित रंग उत्तम होता है।

5- कम्प्यूटर टेबल पूर्व मध्य या उत्तर मध्य में रखें। ईशान में न रखें। पश्चिम दिशा में भी रख सकते है |

6- अध्ययन टेबल व कुर्सी के ऊपर सीढ़ियाँ, बीम, कॉलम ना हों।

7- अध्यन टेबल सदैव साफ़ सुथरी हो, धुल धूसरित कभी भी ना हो उससे पढाई में मनं नहीं लगता और एकाग्रता भंग होती है |

12 राशियों के स्वभाव, प्रकृति व् लक्षण ....|


मेष 
 मेष राशी के जातक की आखे गोल, घुटने कमजोर, उग्र प्रकृति किन्तु जल से डरने वाले होते है | ऐसे व्यक्ति चपल, चालक, घुमने फिरने के शौकीन और कामी होते है |

वृषभ 
वृषभ राशि के जातक का चेहरा व् जांघे बड़ी होती है | जातक कृषि कर्म करने वाले होते है | यदि उसके जीवन को तीन भागो में बांटा जाये तो अंतिम दो भाग सुख देने वाले होते है | ऐसा व्यक्ति प्रमदा प्रिय (स्त्रियों का शौक़ीन), त्यागी, क्षमावान, क्लेश सहने वाले, शांतिप्रिय और परिश्रमी होते है |

मिथुन 
मिथुन राशी के जातको के नेत्र काले और बाल घुंघराले होले होते है | ऐसे जातक तीव्र व विलक्षण बुद्धि से युक्त और विलक्षण प्रतिभा से परिपूर्ण होते है तथा स्त्री विलास प्रिय होते है | इनकी नाक ऊँची होती है और नाच गाना इनको प्रिय होता है | ऐसे लोग एकांत में रहना पसंद करते है | ऐसे लोग दुसरे की मंशा को जल्दी ही समझ लेते है | जादा घुमने फिरने में यकीन नहीं रखते |


कर्क 
कर्क राशी के जातक स्वयं में स्थूल गले वाला, कमर मोटी व कम कद वाला होता है तथा बहु मित्रो का धनि होता है | ऐसे जातक के कई भवनों से परिपूर्ण व धनाढ्य होता है | ऐसे जातक बुद्धिमान व जलविहार का शौक़ीन होता है और तीव्र चाल से अर्थात तेज़ चलने वाला होता है | 

सिंह 
सिंह राशी वालो के नेत्र पीले और ठोड़ी मोटी व चेहरा बड़ा होता है | ऐसे व्यक्ति अभिमानी, पराक्रमी, स्थिर बुद्धि वाले और माता के विशेष प्रिय होते है |ऐसे जातक वनों व पहाड़ो में बर्मन के शौक़ीन परन्तु क्रोधी होते है |

कन्या 
कन्या राशी वाले जातक सत्य का पालन करने वाला प्रिय वचन बोलने वाला होता है | ऐसे जातक के इतरो में लज्जा और प्रिय सूरत वाले होते है | जातक शास्त्रों के ज्ञाता होते है | दुसरे को द्रव्य व भवनों का लाभ मिलता है | इनके कंधे व बहु ढीले होते है और पुत्र संतति भी थोड़ी होती है |

तुला 
तुला राशी वाले जातक चंचल व कृष शारीर वाले व देवताओं के भक्त होते है | ऐसे जातक लम्बे, धेर्यवान, न्यायप्रिय, खरीद फ़रोख्त में होशियार होते है | ऐसे जातको के प्राय: दो नाम होते है, संतान थोड़ी व घुमने के शौक़ीन होते है | इनका भाग्योदय विलम्ब से होता है |


वृश्चिक 
वृश्चिक राशी के जातको के छाती व नेत्र विशाल होते है, जांघ व पिंडलिया गोल होती है | ऐसे जातक बाल्यावस्था में बीमार होते है | यह क्रूर, पराक्रमी, संघर्षशील स्वभाव के होते है |  इनको पितः व गुरु का साथ जादा नहीं मिलता | ऐसे लोग राजकुल में उच्चाधिकारी अर्थात ऊँची पदवी प्राप्त होते है |

धनु 
धनु राशी वाले जातको का नाक, कान व चेहरा और कंठ बड़ा होता है | ऐसे व्यक्ति बोलने में चतुर, ज्ञानी व त्यागी और माध्यम कर के होते है | यह साहसी, विद्वान् व रजा के प्रिय होते है  | ऐसे लोगो को समझा कर ही अपने वश में किया जा सकता है | इनको तर्क से नहीं जीता जा सकता | 

मकर 
इनके शरीर से से नीचे का भाग अर्थात कमर से पैर तक का भाग कृश होता है | किन्तु ऐसे व्यक्ति में सत्व ( शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक शक्ति) काफी होती है | ऐसे व्यक्ति दुसरो की बात मानते है किन्तु स्वभाव से आलसी होते है | ऐसे लोगो का सम्बन्ध किसी अधिक व्यय वाली स्त्री से होता है | ऐसे व्यक्ति को धर्म ध्वज अर्थात बाहरी आवरण धार्मिक किन्तु लज्जाहीन होता है | ऐसे लोग भाग्यवान होते है |

कुम्भ 
कुम्भ राशी के जातक लोभी, छिप कर पाप करने वाले, दुसरे के धन के इछुक व दुसरो को चोट पहुचाने में दक्ष होते है | इनका शारीर घड़े के आकर का होता है | पुष्पों और सुगन्धित द्रवों के प्रिय होते है | कभी क्षय को प्राप्त होते है तो कभी वृद्धि को अर्थात इनके आर्थिक पक्ष में उतार चढ़ाव आता रहता है |

मीन 
इनके शरीर के अंग बराबर व सुंदर होते है | ऐसे व्यक्ति की दृष्टि बहुत सुंदर होती है | ये लोग विद्वान्, कृतज्ञ, अपनी स्त्री से संतुष्ट, भाग्यवान होते है | जल से उत्पन पदार्थो से इन्हें धन लाभ होता है | ऐसे जातक शत्रु पर विजय प्राप्त करने वाले होते है | 

गृह निर्माण की उत्तम व निषिद्ध तिथिया, नक्षत्र , मॉस व योग


जब गृह निर्माण की बात आती है तो सबसे पहले यह प्रश्न उठता है के घर बनाना कब प्रारंभ करें? 


हमारे शास्त्रानुसार शुक्ल पक्ष में गृह निर्माण से जुड़ा कार्यारम्भ करना सदैव लाभकारी होता है | उसमे भी कुछ समय विशेष बताया गया है |  
सूर्य हर मॉस में राशी परिवर्तन करता है, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव मानव जीवन या उसके द्वारा किये गए कर्मो पर पड़ता है | इसी प्रकार वास्तु शास्त्र में हमारे प्राचीन ऋषि मनीषियों ने सूर्य के विविध राशियों पर भ्रमण के आधार पर उस माह में घर निर्माण प्रारंभ करने के फलों की ‍विवेचना की है। 

1. मेष राशि में सूर्य होने पर घर बनाना प्रारंभ करना अति लाभदायक होता है। 
2. वृषभ र‍ाशि में सूर्य : संपत्ति बढ़ना, आर्थिक लाभ 
3. मिथुन राशि में सूर्य : गृह स्वामी को कष्ट
4. कर्क राशि में सूर्य : धन-धान्य में वृद्धि
5. सिंह राशि का सूर्य : यश, सेवकों का सुख 
6. कन्या राशि का सूर्य : रोग, बीमारी आना
7. तुला राशि का सूर्य : सौख्‍य, सुखदायक
8. वृश्चिक राशि का सूर्य : धन लाभ
9. धनु राशि का सूर्य : भरपूर हानि, विनाश
10. मकर राशि का सूर्य : धन, संपत्ति वृद्धि
11. कुंभ राशि का सूर्य : रत्न, धातु लाभ
12. मीन राशि का सूर्य : चौतरफा नुकसान

विश्वकर्मा प्रकाश के मतानुसार गृह निर्माण सदैव शुक्ल पक्ष में प्रारंभ करना चाहिए। फाल्गुन, वैशाख, माघ, श्रवण और ‍कार्तिक माहों में शुरू किया गया गृह निर्माण सदैव उत्तम फल देता है।  |
इनमे कुछ निषिद्ध तिथियाँ, योग, नक्षत्र और वार भी है जिनका  गृह निर्माण अथवा जीर्णोद्धार में सदैव त्याग करना चाइये जैसे  : मंगलवार व रविवार, प्रतिपदा, चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या तिथियाँ, जेष्ठा रेवती, मूल नक्षत्र, वज्र, व्याघात, शूल, व्यतिपात, गंड, विषकुंभ, परिध, अतिगंड, योग - इनमें घर का निर्माण या कोई जीर्णोद्धार भूलकर भी नहीं करना चाहिए अन्यथा निर्माण शुभ फलदायक नहीं होता।
विशेष लाभकारी व श्रेष्ठ, अति शुभ योग : शनिवार, स्वाति, नक्षत्र सिंह लग्न, शुक्ल पक्ष, सप्तमी तिथि, शुभ योग और श्रावण मास ये सभी यदि एक ही दिन उपलब्ध हो सके, तो ऐसा घर दिव्य आनंद व हर प्रकार के सुखों की अनुभूति कराने वाला होता है।

क्या आपने भवन निर्माण के दौरान कोई भी वैदिक वास्तु शांति की प्रक्रिया नहीं की....???


क्या आपने भवन निर्माण के दौरान कोई भी वैदिक वास्तु शांति की प्रक्रिया नहीं की....
जिसके फलस्वरूप आपके परिवार में तनाव रहता है....
क्या उपाय करे मकान निर्माण के बाद...
क्या है वास्तु शांति के सरल उपाय....?

नया घर बनाने के पश्चात जब उसमें रहने हेतु प्रवेश किया जाता है तो उसे नूतन गृह प्रवेश कहते हैं। नूतन गृह प्रवेश करते समय शुभ नक्षत्र, वार, तिथि और लग्न का विशेष ध्यान रखना चाहिए और ऐसे समय में जातक सकुटुम्ब वास्तु शांति की प्रक्रिया योग्य ब्राह्मणों द्वारा संपन्न करवाए  तो उसे सम्पूर्ण लाभ मिलता है |

शुभ नक्षत्र- उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा एवं रेवती नक्षत्र नूतन गृह प्रवेश के लिए शुभ हैं।

शुभ तिथि- शुक्लपक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्टी, सप्तमी, दशमी, एकादशी व त्रयोदशी तिथियां भी नूतन गृह प्रवेश के लिए शुभ फलदायक मानी गई  हैं।

शुभ वार- गृह प्रवेश के लिए सोमवार, बुधवार, गुरुवार व शुक्रवार, शनिवार शुभ हैं। 

शुभ लग्न- वृष, सिंह, वृश्चिक व कुंभ राशि का लग्न उत्तम है। मिथुन, कन्या, धनु व मीन राशि का लग्न मध्यम है। लग्नेश बली, केंद्र-त्रिकोण में शुभ ग्रह और 3, 6, 10 व 11वें भाव में पाप ग्रह होने चाहिए।  

अन्य विचार- चंद्रबल, लग्न शुद्धि एवं भद्रादि, पंचक, राहुकाल का विचार कर लेना चाहिए।

जब आप घर का निर्माण पूर्ण कर ले तो प्रवेश के समय वास्तु शांति की वैदिक प्रक्रिया अवश्य करनी चहिये और फिर उसके बाद 5 ब्रह्मण,9 कन्या और तीन वृद्ध को आमंत्रित कर उनका स्वागत सत्कार करे | नवीन भवन में तुलसी का पौधा स्थापित करना शुभ होता है। बिना द्वार व छत रहित, वास्तु शांति के बिना व ब्राह्मण भोजन कराए बिना गृह प्रवेश पूर्णत: वर्जित माना गया है। शुभ मुहूर्त में सपरिवार व परिजनों के साथ मंगलगान करते हुए और मंगल वाध्य यंत्रो शंख आदि की मंगल ध्वनि तथा वेड मंत्रो के उच्चारण के साथ प्रवेश करना चहिये | आप को सभी कष्टों से मुक्ति मिलेगी |

वास्तु में लगाएँ राशि अनुसार लाभकारी वृक्ष....


वृक्षारोपण सदैव ही सनातन परम्परा का एक अभिन्न अंग रहे है | चाहे वह यज्ञ में प्रयुक्त होने वाले वृक्ष हो या धार्मिक मान्यता से जुड़े वनस्पति हो | हमारी भारतीय संस्कृति में वनस्पतियों को देवता के रूप में पूजने की परंपरा शुरु से रही है। ऐसी भी मान्यता है कि प्रत्येक व्यक्ति की राशि, नक्षत्र से जुडी कोई विशेष दिशा होती है और उसका एक प्रतिनिधि वृक्ष अथवा सम्बंधित वनस्पति होता है। इसके सान्निध्य, सेवा और रोपण से शुभफल मिलता है। 

राशि अनुसार लाभकारी वृक्ष :-

मेष - लाल चंदन 
वृष-  सप्तपर्णी 
मिथुन - कटहल 
कर्क  - पलास 
सिंह  - पाकड
कन्या  - आम 
तुला  - मौलसिरी 
वृश्चिक - खैर 
धनु - पीपल 
मकर - शीशम 
कुंभ-  खैर 
मीन - बरगद

Sunday, June 1, 2008

Vastu Shastra,Astrology n Feng-Sui Consultancy Available.

BASICS OF VASTU……

Vastu , is
  the part of  astrology , it is a vast science and its very important for every human being to follow its basic rules for their well being. It starts with the selection of a plot  and continues in every part of life.VASTU is not the thing which we can practise or mind for a day or for a time being,it goes with the daily life as YOGA and other Vedic Sciences.While slecting a plot keep these things in mind. All the four directions , hills (Heavy Surrounded constructed area) , water bodies(Rivers,Ponds etc.) , cremation places , highways,Factroies etc , they all influence the Vastu of the place in one way or other.

There are some important factors that you should always consider while looking for a plot. Whenever possible one should always try to follow the Vastu principles as violation of these principles does destroy the happiness of one’s life.

You should never purchase the land from the following persons as the atmosphere of the particular space depends on the people living there.

  • From people suffering from sickness , lunatics.
  • From people who have become insolvent.
  • Land donated to any religious place.
  • Land without any deed.
  • From people who have left the country.
  • The place where magicians used to live.
  • Land containing ant-hills , bones , skeletons.
  • Houses sold by distressed , unfortunate people.

Considering the color , smell , taste and texture of the soil , it is categorized into following :

  • The soil white in color , having lotus smell and sweet taste and that contain greenery is good for the learned people and teachers.
  • The soil red in color , smelling blood and astringent in taste is good for Warrior class.
  • The soil yellow/pale green in color , grainish smell and sour taste is good for the Business class people.
  • The soil black in color , having pungent small and bitter taste is good for the lower or backward working class.



(3) STUDENTS : TIPS FOR ATTAINING A BETTER RESULT

This is a academic week as now coming the TEACHER’S DAY……. So why not to give some tips to the students who are very bright but are not able to explore themselves fully .Many a times students complain that they are not able to concentrate , learn or retain what they have read .The remedy to these problems was formulated by our ancestors in the form of the directional science of Vaastu Shastra .For students eager to do well , here are a few techniques , following which the students can achieve success in their studies and obviously bring about a positive changes in grade and will come off with flying colors.

  • The room to be chosen for study should be in the east ,North or the North-East direction of the house. These directions improve the absorption power and increase the knowledge content. Along with that if the door of the room is also in either of these directions , the result turns out to be the best.
  • The study room should have images of Lord Ganesha and Goddess Saraswati.
  • The books in the study chamber should be kept in the South-West , South or West direction and not in the North – East .In addition to that if the north – east direction bears heavy weight it shall pressurize the students’ mind.
  • Furthermore , if the student studies on the table and chair , the table should not stick to the wall .It should be at least 3 feet away from it . Along with that unnecessary books should not be piled up on the table . Only the books which are needed should be kept on the table. Load of books on the table create unnecessary mental pressure on the mind .The study books should be placed in the cupboard in the cabinet rather than in the open .And if the shutter of the cupboard is kept shut , the flow of energy is constantly maintained.
  • If the learner makes use of the Table lamp then the lamp should be kept in the South-East corner of the desk. Plus if it is a square table then nothing like it. Further the size of the study table should not be too big nor too small. It should be just the size which is comfortable for the working of the student. A big sized table diminishes the working capacity , whereas the small table gives rise to depression.
  • Moreover , if possible , the walls of the study room should be light orange in color as it is very auspicious and enhances the wishing power as well as supports the speedy progress of mind.
  • Along with that , at the same time of study , the learner should use a pyramid cape as it proves to be extremely beneficial . Not only that it embellishes the remembering power and absorption.
  • The student should ensure that after studying when they go off to sleep , their head is in the South direction . It helps in maintaining the magnetic balance of the body and the earth.
  • And last but not the least , a pendulum watch is a must in each and every study room.