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Sunday, August 14, 2011

बहुला चतुर्थी व्रत, संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत

भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्ट चतुर्थी या विनायक चतुर्थी का व्रत किया जाता है। इस दिन चन्द्रमा के उदय होने तक संकष्ट चतुर्थी का व्रत करने का महत्व है। महिलाएं इस दिन सुबह स्नान कर पवित्रता के साथ भगवान गणेश की आराधना आरंभ करें। भगवान गणेश की प्रतिमा के समक्ष व्रत का संकल्प लें। इसके बाद धूप, दीप, गंध, पुष्प, प्रसाद आदि सोलह उपचारों से श्री गणेश का पूजन संपन्न करें।

इसके बाद सायं चन्द्र उदय होने तक मौन व्रत रखें। इसके बाद शाम होने पर फिर से स्नान कर इसी पूजा विधि से भगवान गणेश की उपासना करें। इसके बाद चन्द्रमा के उदय होने पर शंख में दूध, दुर्वा, सुपारी, गंध, अक्षत रख कर भगवान श्री गणेश, चन्द्रदेव और चतुर्थी तिथि को अघ्र्य दें। चतुर्थी के दिन एक समय रात्री को चंद्र उदय होने के पश्च्यात चंद्र दर्शन करके भोजन करे तो अति उत्तम रेहता हैं। इस प्रकार संकष्ट चतुर्थी व्रत के पालन से सभी मनोकामनाएं पूरी होने के साथ ही व्रती के व्यावहारिक, मानसिक जीवन से जुड़े सभी संकट, विघ्न और बाधाएं समूल नष्ट हो जाते हैं। 

अर्घ्य के समय गणेश, चन्द्र व चतुर्थी प्रार्थना :-
हे सब सिद्धियों के प्रदाता श्रीगणेश जी ! आपको मेरा नमस्कार है। संकटों का हरण करने वाले देव! आप मेरे द्वारा अ‌र्घ्यग्रहण कीजिए, आपको मेरा नमस्कार है। कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चन्द्रोदय होने पर पूजित देवेश! आप मेरे द्वारा अ‌र्घ्य ग्रहण कीजिए, आपको मेरे नमस्कार है। तिथियों में गणेश जी को सर्वाधिक प्रिय देवि! आपको मेरा नमस्कार है। आप मेरे समस्त संकटों को नष्ट करने के लिए अ‌र्घ्य स्विकार करें। 

श्रीगणेश चतुर्थी व्रत के क्या है लाभ और क्या करे.....क्या न करे....
भगवान श्रीगणेश जी को प्रसन्न करने का साधन बहुत ही सरल और सुगम है। इसे गरीब या अमीर मनुष्य कर सकता है। इसमें न विशेष व्यय की, न विशेष दान-पुण्य की, न विशेष योग्यता की और न विशेष समय की ही आवश्यकता है। भगवान श्रीगणेशजी की पूजा करते समय इन बातों पर विशेष ध्यान दें। भगवान श्रीगणेशजी की प्रतिदिन पूजा करे और प्रात:काल उठकर सबसे पहले इनके चित्र या मूर्ति के दर्शन करे। किसी काम के प्रारम्भ से पहले भगवान श्रीगणेशजी का स्मरण करना कभी न भूलो। अपने निवास, मकान, महल बनाते समय द्वार पर आले में भगवान श्रीगणेशजी की सुंदर मूर्ति लगाना न भूलो। इससे आपको हर समय दर्शन-स्मरण करने का सौभाग्य मिलेगा। भगवान श्रीगणेशजी को प्रसन्न करने के लिए स्वयं भी सात्विक बनो। तामसिक वस्तुओं का सेवन मत करो। पूज्य ब्राह्मणों द्वारा श्रीगणेश पुराण की कथा का श्रवण करे। मंदिर में श्री गणेशजी का दर्शन-पूजा करो। गणेशजी के मंत्र का जप तथा इनके नाम का संकीर्तन करे। भगवान श्रीगणेशजी प्रसन्न होंगे और आपकी विघ्न-बाधाओं को दूर कर देंगे |

बहुला व्रत का महत्व 
इस व्रत को स्त्रियाँ अपने पुत्रों की रक्षा के लिए मनाती हैं. इस व्रत को रखने से संतान का सुख बढ़ता है. संतान की लम्बी आयु की कामना की जाती है.  इस दिन गाय माता की पूजा की जाती है. इस व्रत में गेंहू चावल से निर्मित वस्तुयें तथा दूध व दूध से बने पदार्थों का उपयोग नहीं किया जाता है. इस दिन गाय के दूध पर केवल उसके बछडे़ का अधिकार माना जाता है.,गाय और शेर की प्रतिमा मिट्टी से बनाकर उनका पूजन किया जाता है,गाय जमीन जायदाद और घर की महिलाओं से सम्बन्धित है, और शेर परिवार की शक्ति और रक्षा का प्रतीक माना जाता है।

व्रत रखने की विधि 
इस दिन सुबह सवेरे स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र पहने जाते है. पूरा दिन निराहार रहते हैं. संध्या समय में गाय माता तथा उसके बछडे़ की पूजा की जाती है. भोजन में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं. जिन खाद्य पदार्थों को बनाया जाता है उन्हीं का संध्या समय में गाय माता को भोग लगाया जाता है. देश के कुछ भागों में जौ तथा सत्तू का भी भोग लगाया जाता है. बाद में इसी भोग लगे भोजन को स्त्रियाँ ग्रहण करती हैं. इस दिन गाय तथा सिंह की मिट्टी की मूर्ति का पूजन किया जाता है.

बहुला चतुर्थी व्रत कथा
द्वापरयुग में भगवान्‌ श्रीकृष्ण द्वारा जंगल में सिंह के रुप में कामधेनु के अंश से उत्पन्‍न गाय, जो नन्दकुल की सभी गायों में सर्वश्रेष्ठ गाय थी.जिसका नाम बहुला था, की परीक्षा ली और बहुला द्वारा बछडे को दूध पिलाकर सिंह के पास वापस लौट कर आने का वचन निभाना और अपने वचन एवं सत्य धर्म का पालन करने की कथा है। जिसकी वचन निष्ठा देख कृष्ण भगवान ने कहा कि बहुला तुम्हारे प्रभाव से और सत्य के कारण कलयुग में घर-घर में तुम्हारा पूजन किया जाएगा. इसलिए आज भी गायों की पूजा की जाती है और गौ मता के नाम से पुकारी जाती हैं. इस दिन श्री विघ्नेश्वर गणेश जी की पूजा-अर्चना और व्रत करने से व्यक्ति के समस्त संकट दूर होते हैं, इस लिये इसे संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। 

Sunday, July 17, 2011

घर की उर्जा को शुद्ध व कलह हो नियंत्रित करने हेतु कुछ सुझाव

आपकी सहायता हेतु वास्तु अनुरूप घर की उर्जा को शुद्ध व कलह हो नियंत्रित करने हेतु कुछ सुझाव :-

- गुग्गुल युक्त धूप व अगरवत्ती प्रज्वलित करें वेदमंत्र का उच्चारण करते हुए समस्त गृह में घुमाएं।
- जब भी किसी महत्व्यपूर्ण कार्य हेतु निकले तो कुछ कदम शुभ दिशा अर्थात उत्तर पूर्व की तरफ चल कर कार्य पर जाये |
- घर के मुख्य द्वार पर गणपति को स्थापित कर सिंदूर चढ़ाए फिर उसी सिंदूर से दायीं तरफ स्वास्तिक व बाई तरफ ॐ बनाएं।
- घर में झाड़ू को उत्तर पूर्व में खुले में या खड़ा करके नहीं रखना चाहिए उसे पैर नहीं लगना चाहिए, न ही लांघा जाना चाहिए, ऐसा रखे की आगंतुक को दिखाई न दे |

वास्तु के मूलभूत व सामान्य नियम

वास्तु शास्त्र एक ऐसी विद्या है जो हमे स्वस्थ्य जीवन जीने का मार्गदर्शन करती है | जब आप घर से निकले तो किस मुह निकले, किस मुह भोजन करे, किस दिशा में बैठ कर किसी बड़ी योजना को मूर्तरूप दे, या किस दिशा की तरफ सर रख कर सोये जिससे आपको सौभाग्य व आरोग्यता मिले | ऐसे में जीवनशैली व दिनचर्या को कुछ ऐसा बनाये की स्वत: वास्तु के मूलभूत व सामान्य नियमों का पालन होता रहे |

- घर में जूते-चप्पल प्रवेश द्वार पर या अव्यवस्थित कही भी इधर-उधर बिखरे हुए या उल्टे पड़े हुए न हो |
- घर में दरवाजे अपने आप खुलने व बंद होने वाले तथा कर्कश ध्वनि उत्पन्न करने वाले नहीं होने चाहिए।
- प्रवेश द्वार पर कीचड़, पानी का रुकना, गन्दी नाली या नाली में पानी जमा होना घोर अशुभता का लक्षण है |
- घर के मंदिर में तीन गणेश, देवी की तीन मूर्ति तथा विष्णु सूचक दो शंखों का एक साथ पूजन भी वर्जित है।
- घर के मध्य भाग (ब्रह्मस्थान) में जूठे बर्तन, गंदे कपडे, साफ करने का या स्थान शौचालय नहीं होना चाहिए।

वास्तु सिधांत द्वारा सफलता प्राप्त करने के कुछ सूत्र

व्यक्ति जीवन में संघर्ष करता है सफलता प्राप्त करने हेतु और अपनी जिम्मेदारी को भली भांति पूरा करने हेतु..उसमे जीवन यात्रा में कई ऐसे पड़ाव आते है जब व्यक्ति बहुत ही असहाय हो जाता है.....और यदि कुछ छोटी छोटी बातो का ध्यान दे दिया जाये तो शयद यह जीवन यात्रा बहुत ही सहज और रोचक हो जाये तो आइये आज कुछ ऐसे ही सरल उपाय...जिनसे मिलेगा जीवन में लाभ-

- भोजन यथासंभव आग्नेय कोण में पूर्व की ओर मुंह करके बनाये |
- मुकदमे आदि से संबंधित कागजात धन रखने के स्थान पर न रखें |
- पूजा कक्ष में, धूप, अगरबत्ती व हवन कुंड हमेशा दक्षिण पूर्व में रखें।
- सम्पूर्ण भवन में व प्रवेश द्वार पर जल या गंगाजल से नित्य सिंचन करे |
- रात्रिकाल में शयन से पूर्व कुछ समय अपने इष्टदेव का ध्यान अवश्य करे |


दैनिक जीवन में लाभ हेतु मुख्य वास्तु सूत्र...!!!

जीवन में सफलता प्राप्त करने का सम्बन्ध कुंडली के बाद आपके निवास व कार्य स्थान की उर्जा पर निर्भर करता है जहा आप अपने जीवन का अधिक से अधिक समय व्यतीत करते है....और यह हमारे दैनिक दिनचर्या से जुड़ा हुआ प्रश्न है तो आइये कुछ ऐसे मुख्य सूत्र है जिनसे आज प्रकाश डालते है जिनका हमारे दैनिक जीवन में बहुत ही महत्व्य है |

- दक्षिण दिशा की तरफ सर रख कर शयन करे |
- घर की परिधि में कंटीले या जहरीले नहीं होने चाहिए |
- पढ़ने वाले बच्चों का मुंह पूर्व उत्तर की ओर होना चाहिए।
- प्रातः काल सूर्य को अर्य देकर सूर्य नमस्कार अवश्य करें।
- पूजा स्थान घर के पूर्व-उत्तर (ईशान कोण) में होना चाहिए |
- भोजन सदैव पूर्व या उत्तर की तरफ मुख करके ही ग्रहण करे |

शुभ वास्तु के कुछ सरल सुझाव...!!!

यदि आपके घर की उर्जा शुभ हो तो परिवार का हर सदस्य अपने अपने कार्य क्षेत्र में सफलता की उन्चियो तक जा सकता है और यदि उनमे कुछ दोष रह जाये तो परिवार को किसी भी प्रकार के कष्ट और दुर्दिन देखने पद सकते है जिनका कोई पैमाना नहीं है तो आइये कुछ ऐसे सरल सूत्र पर चर्चा करते है जो बनाये आपके घर को शुभ वास्तु....

 शुभ वास्तु के कुछ सुझाव :- 
- संध्या काल में शयन न करे |
- घर में मकड़ी का जाल न लगने दें |
- महत्वपूर्ण कागजात सदैव पूर्व में रखें। 
- शयनकक्ष में कभी जूठे बर्तन नहीं रखें |
- उत्तर पूर्व दिशा की खिड़कियां खोलकर रखें |

क्या आप अपने घर से प्यार करते है....? घर से प्यार बढ़ाने के पांच चमत्कारी उपाय....!!!

क्या आप अपने घर से प्यार करते है....? यह प्रश्न इसलिए भी अवश्यक है क्यूंकि जबतक भवन स्वामी अपने भवन से स्नेह, लगाव व प्रेम नहीं रखेगा तब तक वह भवन, वह स्थान या उस स्थान का वास्तु देवता भवन स्वामी को अपना मालिक या स्वामी मानकर कैसे आशीर्वाद देगा....? इसके लिए आपको सबसे पहले अपने निवास स्थान या कर्म स्थान से भावनात्माक लगाव होना आवश्यक है जिस प्रकार एक अभिभावक अपनी संतान के लगाव रखता है और मनन से ह्रदय से उसे निरंतर आशीष ही देता रहता है उसी प्रकार हमारे स्थान के अधिपति देवता का आशीष हमें तब ही मिलेगा जब हम उससे लगाव रखेंगे और उससे प्रेम करेंगे | तो आइये जाने पांच प्रमुख सूत्र जो बढ़ाएंगे भवन स्वामी और उसके अधिपति देवता के मध्य प्यार और स्नेह |

पहला प्यार -   
भवन स्वामी का अपने घर के दक्षिण पश्चिम में रहना अनिवार्य है। यह वह स्थान है जहाँ रहने वाले व्यक्ति को वास्तु देवता अर्थात भवन अपना स्वामी मानता है और जीवन में स्थिरता देता कई क्यूंकि यह स्थान पृथ्वी का है |
लाभ- अपना घर से जुड़ाव बढेगा औऱ आपका घर आपको शुभ फल देगा।

2. दूसरा प्यार-
यदि परिवार की सदस्यों के बीच खुशनुमा माहौल बनाये रखना है और साथ ही परिजनों में एक दुसरे के लिए सहियोग, समर्पण का भाव सदा बना रहे, आपस का तनाव दूर रहे, सौहार्द व संबंध बनाएं रखने के लिए परिवार का खुशनुमा चित्र दक्षिण और पश्चिम के कमरे में पूर्व या उत्तर की दीवार पर अवश्य लगाएं।
लाभ- परिवार में सामंजस्य बना रहेगा।

3. तीसरा प्यार
नुणराई- जिस प्रकार एक माँ अपनी संतान की नज़र उतरती है उसी प्रकार आपको भी सपनो के स्वर्ग से सुंदर अपने घर को नमक और राई लेकर उसकी नज़र उतरनी है | किसी अमावस्या को नमक और राइ ले और ईशान कोण से अपनी घर की एक परिक्रमा शुरू करें और ईशान पर ही समाप्त कर घर के बाहर जाकर आग में जला दें। ऐसा छह मॉस में एक बार अवश्य करे | 
लाभ- किसी भी प्रकार की बुरी नज़र या बाला होगी तो तत्काल उतर जाएगी |

4. चौथा प्यार
घर की उर्जा को साफ़ सुथरा और सुरक्षित रखने हेतु घर में हमेशा नमक के पानी का पोछा लगाएं और घर का हर एक सदस्य खुद इस प्रक्रिया को सुनिश्चित करें हर दिन।
लाभ- घर की उर्जा साफ़, शुद्ध होगी तो शुभ व प्रगति कारक, उन्नति प्रदायक विचार आयेंगे |

5. पांचवां प्यार
प्रात: उठते ही व संध्याकाळ में भवन के प्रवेश द्वार का साफ सुथरा व शुद्ध करें। उसे कभी भी गंदा न रखें। हो सके तो उसे सुसज्जित करें।जिससे गृह स्वामी जब काम पर निकले तो घर व द्वार उसे शुभ के साथ विदा दे और संध्याकाळ में उसका शुभ उर्जा के साथ स्वागत करे |
लाभ- ऐसे में घर से जाने वाले का और फिर घर वापिस आने वाले व्यक्ति का मन, मिज़ाज उत्साहवर्धक बना रहता है | दिन भर की थकान, तनाव घर में वापिस आते ही दूर हो जाते है |  

Wednesday, July 13, 2011

गुरु बिना ज्ञान पथ की परिकल्पना असंभव है....

|| गुरुब्रम्हा गुरु विष्णु गुरुदेवों महेश्वर :
गुरु साक्षात् परं ब्रम्ह तस्मै श्रीगुरवे नमः ||


|| सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार
लोचन अनंत उघाडिया, अनंत दिखावन्हार ||


महात्मा कबीर सच्चे गुरु की महत्ता को प्रतिष्ठित करते हुए यहाँ तक कहते है …
गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागू पाँव ,
बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय...


कृष्ण द्वैपायन व्यास (वेदव्यास जी) का अवतरण आषाढ़ मॉस की पूर्णिमा को हुआ था इसलिए आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को व्यास पूजन के बाद अपने-अपने गुरु की पूजा विशेष रूप से की जाती है। सदगुरु परमात्मा का साक्षात्कार करवाकर शिष्य को जन्म-मरण के बंधन से मुक्त कर देते है, अतएव संसार में गुरु का स्थान विशेष महत्व का है।समस्त वेदों, "ब्रह्मसूत्र" की रचना व्यासजी ने की। पांचवां वेद "महाभारत" व्यासजी ने लिखा भक्ति-ग्रन्थ भागवतपुराण भी व्यासजी की रचना है एवं अन्य 18 पुराणों का प्रतिपादन भी भगवान वेदव्यास जी ने ही किया है। व्यासजी ने पूरी मानव-जाति को सच्चे कल्याण का खुला रास्ता बता दिया है। व्यासदेव जी गुरुओं के भी गुरु माने जाते हैं। ज्ञान के असीम सागर, भक्ति के आचार्य, विद्वत्ता की पराकाष्ठा और अथाह कवित्व शक्ति अतः इनसे बड़ा कोई कवि मिलना असंभव है। गुरू पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है। इसी दिन से वर्षाकालीन चातुर्मास का प्रारंभ होता है जिसमे साधु-संत, गुरु एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं और विद्यार्थी उसे ग्रहण करते है | शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है - अंधकार या मूल अज्ञान और रु का अर्थ किया गया है - उसका निरोधक।

अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानांजनशलाकया |
चक्षुरुन्मीलितम येन तस्मै श्री गुरुवै नम : ||


अर्थात अज्ञान रूपी अंधकार की अन्धता को ज्ञान रूपी काजल की शलाका से हमारे नेत्रों को खोलने वाले श्री गुरु को नमन है, गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है अथवा अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को 'गुरु' कहा जाता है। गुरु एक वैदिक परंपरा है और कम से कम भारतीय परिवेश में इसका महत्त्व कभी कम नहीं हो सकता है | गुरु शिष्य परंपरा हमारे देश में सदैव ही समृद्ध रही है | गुरु सदैव अपने ज्ञान दीप से जीवन में प्रगति के मार्ग को प्रशस्त करने का गुर सिखाने वाले और हमारी आभा की पहचान करने वाले और हमारे मनोविकारों को दूर करने में सहायक सिद्ध होते हैं | हमारी संस्कृति में गुरु को उच्चतम स्थान दिया गया है और उनकी आज्ञा को सर्वोपरि मानकर उनके आदेश का अक्षरश: पालन किया जाता है | गुरु बिना करोड़ों पुण्य भी व्यर्थ हैं | रामायण के प्रसंग अनुसार भगवान्‌ श्रीराम भी गुरुद्वार पर जाते थे और माता-पिता तथा गुरुदेव के चरणों में विनयपूर्वक नमन करते थे - प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा॥

व्यास जी की साधना कथा -
वसिष्ठ जी महाराज के पौत्र पराशर ऋषि के पुत्र वेदव्यास जी जन्म के कुछ समय बाद ही अपनी मां से कहने लगे-"अब हम जाते हैं तपस्या के लिए।" मां बोली-"बेटा! पुत्र तो माता-पिता की सेवा के लिए होता है। माता-पिता के अधूरे कार्य को पूर्ण करने के लिए होता है और तुम अभी से जा रहे हो?" व्यास जी ने कहा-"मां! जब तुम याद करोगी और जरूरी काम होगा, तब मैं तुम्हारे आगे प्रकट हो जाऊंगा।" मां से आज्ञा लेकर व्यासजी तप के लिए चल दिए। वे बदरिकाश्रम गए। वहां एकांत में समाधि लगाकर रहने लगे। बदरिकाश्रम में बेर पर जीवनयापन करने के कारण उनका एक नाम " बादरायण" भी पड़ा।


गुरु कैसा हो...? गुरु बनाने के शास्त्रीय आधार व सुझाव -
गुरु वही होता है जो वेद शास्त्रो का ज्ञाता अथवा वेदांती हो स्वभाव से सरल, उदार हो जिसके आचार विचार मे अदभुत आकर्षण हो और जिसके व्यक्तित्व को याद करते ही मानसिक संतोष की अनुभूति हो वही सच्चा गुरु है | सदगूरू शास्त्रो का ज्ञानी, साधना के धर्म को जानने वाला, सदाचारी और शिष्य के प्रति वात्सल्य रखने वाला ही सच्चा सदगूरू है | श्री रामचरित मानस के अनुसार भारत जी कहते है के जीवन में गुरु बनाने की कोई सीमा निर्धारित नहीं है, जिससे जो कुछ अच्छी सीख मिले वह गुरु है |


गुरु पूर्णिमा पर जपा जाने वाला मंत्र -

|| ॐ निं निखिलेश्वरायै ब्रह्म ब्रह्माण्ड वै नमः ||

गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरु का ध्यान व चरण वंदन कर इस मंत्र 
को मुंगे की माला से १०१ माला जप करें |

Tuesday, July 12, 2011

महादेव है यत्र - तत्र - सर्वत्र - शिव आराधना मुक्ति का मार्ग....!!!

भगवान शिव सौम्य प्रकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से शिव को भिन्न माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदिस्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। शिव में परस्पर विरोधी भावों का सामंजस्य देखने को मिलता है। शिव के मस्तक पर एक ओर चंद्र है, तो दूसरी ओर महाविषधर सर्प भी उनके गले का हार है। वे अर्धनारीश्वर होते हुए भी कामजित हैं। गृहस्थ होते हुए भी श्मशानवासी, वीतरागी हैं। सौम्य, आशुतोष होते हुए भी भयंकर रुद्र हैं। शिव परिवार भी इससे अछूता नहीं हैं। उनके परिवार में भूत-प्रेत, नंदी, सिंह, सर्प, मयूर व मूषक सभी का समभाव देखने को मिलता है। वे स्वयं द्वंद्वों से रहित सह-अस्तित्व के महान विचार का परिचायक हैं। श्रावण मास में ॐ नम: शिवाय या शिव मात्र स्मरण से समस्त पापों का नाश होता है। इस मास में मन, कर्म, वचन से शुद्ध होकर शिव पुराण का पठन-पाठन, शिवलिंग पूजन का विशेष महत्व है। शिव की उपासना मनुष्य के लिए कल्पवृक्ष की प्राप्ति के समान है। भगवान शिव से जिसने जो चाहा उसे प्राप्त हुआ। महामृत्युंजय शिव की कृपा से मार्कण्डेय ऋषि ने अमरत्व प्राप्त किया और महाप्रलय को देखने का अवसर प्राप्त किया। शिव के अनेक रूप हैं। शिव की आराधना करने से आपकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। वेद एवं पूराण ३३ करोड देवी देवतों का साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं जो कि मानव, पशू, नरपशु, ग्रह, नक्षत्र, वनस्पति तथा जलाशय इत्यादि हर रूप में व्याप्त हैं | पर इनके शिखर पर हैं त्रिदेव … ब्रह्मा, विष्णु एवं सदाशिव | इनमे शापित होने के कारण ब्रह्मा की पुजा नहीं होती तथा जगत में विष्णु तथा सदाशिव ही पूजे जाते हैं | शिव सबसे सरल स्वभाव के देवता है...जब समुद्र मंथन हुआ...तब लक्ष्मी....अमृत..व ना ना प्रकार के रत्ना आभूषण आदि की उत्पत्ति हुई और देवताओ व असुरो में उनको बाँटने के लिए कोहराम मच गया | वही.....जब गरल (विष) पात्र निकला तो किसी ने भी आगे बढ़कर थमा नहीं....? बल्कि सब सोचने लगे की यह कौन लेगा....? तब वहां स्वयं शिव ने उस गरल पात्र को इस सृष्टि की सुरक्षा व जगत के कल्याण हेतु अपने कंठ में स्थापित कर लिया अर्थात समस्त भोग...विलास...ऐश्वर्य...के साधन, वस्तु व पदार्थ अन्य देवताओ तथा असुरो के लिए छोड़ दिया...इस सृष्टि में जितनी भी अतृप्त, शापित आत्माए थी...जिनका कोई वरण नहीं करना चाहता...जो मोक्ष प्राप्ति के लिए भटक रही थी ...शिव ने उन्हें अपना गण बनाकर उन्हें शिवशायुज्ज दे मोक्ष का मार्ग दिया...| 

भगवान् शिव की आराधना में क्या चाहिए...? 
सिर्फ एक लोटा जल....भंग....धतुरा....जिसे कोई नहीं पूछता....मदार की माला, फूल...जो कही भी अर्थात यत्र तत्र सर्वत्र सुलभ हो जाते है....? इससे यह स्पष्ट होता है के शिव ही एकमात्र ऐसे देवता है जो बहुत ही सहज स्वरुप में प्रसन्न होते है और साथ ही यह सन्देश देते है के यदि किसी व्यक्ति में कोई दुर्गुण है तो उससे दुर्भाव मत रखो...उससे प्रेम करो और उसके दुर्गुणों को दूर करो...शिव की आराधना में चाहिए सच्चे शुद्ध ह्रदय के भाव...| 

ॐ नमः शिवाय का महत्व
शिव भक्तों का सर्वाधिक लोग प्रिय मंत्र है "ॐ नमः शिवाय"। नमः शिवाय अर्थात शिव जी को नमस्कारपाँचअक्षर का मंत्र है "न", "म", "शि", "व" और "य" । प्रस्तुत मंत्र इन्ही पाँच अक्षरों की व्याख्या करता है। स्तोत्र के पाँच छंद पाँच अक्षरों की व्याख्या करते हैं। अतः यह स्तोत्र पंचाक्षर स्तोत्र कहलाता है। "ॐ" के प्रयोग से यह मंत्र छः अक्षर का हो जाता है। एक दूसरा स्तोत्र "शिव षडक्षर स्तोत्र इन छः अक्षरों पर आधारित है |

Wednesday, July 6, 2011

कैसे मिले अर्घ्य का सही फल....? अर्घ्य देने के हानि - लाभ व आधार...

आनादीकाल से ही सत्य सनातन परम्परा में देवी देवताओं, ग्रहों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपनी श्रद्धांजली या कृतज्ञता स्वरुप अर्घ्य देने की परम्परा चली आई है | एक तरफ यह आरोग्यता दायक है और वाही दूसरी तरफ मनुष्य के अंदर की छठी इन्द्रिय को जागृत करने में सहायक भी | इस कारण इससे जुड़े कई सारे पर्व भी हमारी सभ्यता के अंग है और सूर्य को जल देना तो एक दैनिक जीवनचर्या का हिस्सा ही है | जहाँ एक ओर अर्घ्य देना अध्यात्मिक प्रक्रिया है तो वही दूसरी ओर यह पूर्णत: वैज्ञानिक भी | तो आइये जानते है भिन्न भिन्न अर्घ के क्या लाभ है और किस विशेष समस्या के लिए कौन सा अर्घ्य लाभकारी है और यह धयान रखे की किसी भी निमित्त जब अर्घ्य दे तो कम से कम पैतालीस दिन का नियमित प्रयोग अवश्य करे |

सूर्य को अर्घ्य दें
सूर्य को नित्य अर्घ्य देना किसी भी व्यक्ति के लिए आरोग्यता व सौभाग्य प्रदायक माना गया है | यह अर्घ्य तांबे के पात्र में जल भरकर उसमे एक चुटकी रोली या लाल चंदन का चूर्ण, हल्दी, अक्षत, एक लाल पुष्प डालकर लाल वस्त्र धारणकर गायत्री मंत्र के सात बार उच्चारण के साथ साथ चरणों में सात बार दें ।

चंद्रमा को पूर्णिमा को दिन दूध का अर्घ्य दें
यदि मन में बहुत जादा चंचलता हो...कही मन न लगे...बार बार उल्टे सीधे विचार आये तो चांदी के पात्र में थोड़ा सा दूध लेकर के चंद्र उदय होने के बाद संध्याकाल में अर्घ्य दें, विशेषकर पूर्णिमा के दिन तो अवश्य दे । चंद्र को अर्घ्य देना मन में आ रहे समस्त बुरे विचार, दुर्भावना, असुरक्षा की भावना व माता के ख़राब स्वास्थ्य को तत्काल नियंत्रित कर लेता तथा आपके मन को संतुष्टि देता है |

भगवान गणेश को विशेष अर्घ्य दें
जब भी कोई नया काम शुरू करे या किसी विशेष व आवश्यक कार्य पर जा रहे है और कोई विधि न मालूम हो तो भगवान गणेश को मिट्टी या धातु (तांबा, पीतल) के पात्र से जल में दूर्वा, अक्षत, रोली, हल्दी चूर्ण, इत्र, कुमकुम, चंदन का चूर्ण, एक रुपए का सिक्का और एक खड़ी सुपारी डालकर अर्घ्य देने के बाद अपना कार्य निश्चिंत होकर प्रारंभ करदे , हर कार्य में सफलता ही हाथ आएगी | 

ग्रह बाधा दूर करने के लिए अर्घ्य दें
ग्रह बाधा दूर करने के लिए नियमित स्नान ध्यान से निर्वित हो कर पीपल के वृक्ष में अर्घ्य देना शास्त्रिय मान्यता में विशेष स्थान रखता है।

माँ शीतला व माँ संकठा को अर्घ्य दें
जब घर में कोई दैवीय प्रकोप हो, घर के किसी सदस्य को ज्वर या गंभीर रोग हो जाए तो लगातार चिकित्सको की परामर्श देख रेख के बाद भी ठीक न हो, सभी जांच परिणाम सामान्य निकले तो ऐसी स्थिती में नियमित नीम के वृक्ष में माँ शीतला व माँ संकठा का ध्यान कर अर्घ्य देना दो धूप बत्तियां जलाना और कुछ मीठा भोग लगाने से तत्काल लाभ होता है।

पारिवारिक क्लेश निवारण हेतु तुलसी माँ को अर्घ्य 
यदि किसी परिवार में बहुत जादा ही कलह क्लेश का वातावरण हो तो ऐसी स्थिती में घर के मध्य भाग (ब्रह्म स्थान) या इशान कोण में एक तुलसी का पौधा लगाकर उसमे नियमित दूध का अर्घ्य देना और देसी घी के दीपक से आरती करना कितने भी कठिन से कठिन वातावरण को तत्काल नियंत्रित कर उर्जा को शुद्ध करता है तथा घर के सभी सदस्यों में उच्च संस्कार को संचारित करता है |

Friday, June 24, 2011

दक्षिण दिशा में क्या हो, क्या न हो....?


दक्षिण दिशा पर मुख्यत: मंगल देव का अधिपत्य है उनके साथ ही इस स्थान पर यम तथा राहु - केतु का भी प्रभाव व नियंत्रण वास्तुशास्त्र में माना गया है | यदि यह स्थान जादा खुला हो तो राहु केतु तथा यम का प्रकोप परिवार पर ज्यादा बढ़ जाता है जिसके प्रभाव से जीवन में पग पग विघ्न - बाधा का सामना करना पड़ता है |

क्या हो-
- किसी भी व्यक्ति के जीवन में इस्थाय्त्व के लिए इस स्थान का घर में सबसे ऊँचा व भारी होना अनिवार्य है | 
- घर के वृद्ध व वरिस्थ सदस्यों का कमरा यहाँ बनाये |
- घर में या व्यापारिक स्थान में मालिक की जगह यहाँ लाभ देती है व उपयुक्त होती है |
- घर की सभी बड़ी व भारी वस्तु यहाँ रखे | 
- यह स्थान स्टोर व शौचालय के लिए भी उपयुक्त माना गया है | 
- यह स्थान धन रखने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है |

क्या न हो- 
- यह स्थान ज्यादा खुला नहीं होना चाहिए |
- दक्षिण क्षेत्र का बढ़ा होना भी अशुभ होता है |
- इस स्थान में घर के छोटे बच्चो को कमरा न दे, उनका स्वाभाव व प्रकर्ति जिद्दी हो जाती है | 
- पूजा स्थान यहाँ न बनाये |
- किरायेदारो व मेहमानों को यहाँ कभी भी स्थान न दे | 

ईशान कोण में क्या हो, क्या न हो.....?

वास्तु शास्त्र में ईशान कोण का वृहद् महत्व्य बताया गया है | यह वह स्थान है जिस पर गुरु ग्रह व्र्हस्पति का अधिपत्य है | साथ ही यहाँ वास्तु पुरुष का मस्तक भी है जिसे महादेव शिव का शीश होने की संज्ञा भी दी जाती है | शायद ऐसा इसलिए है क्यूंकि उत्तर और पूर्व दोनों ही शुभ उर्जा के विशेष महत्व्यपूर्ण स्रोत है | इसलिए इसका शुद्ध, साफ़ सुथरा होना आवश्यक है | यदि ईशान में दोष हो जाये तो उस घर के सभी सदस्यों का विकास अवरुद्ध हो जाता है, विवाह योग्य कन्या हो तो विवाह में बाधा आती है | सामाजिक अपयश, गंभीर रोग आदि घर कर जाते है | हर प्रकार की समृद्धि के लिए इस स्थान का जागृत होना बेहद अनिवार्य है | यदि ईशान कोण में मंदिर, साधना कक्ष, अध्यन कक्ष, भूगर्भ जल स्थान घर के अन्य स्थान से अधिक खुला स्थान नहीं है तो यह दोष है | वही अक्सर लोग यहाँ जैसे शौचालय, स्टोर आदि बना कर इस स्थान को दूषित, अपवित्र अनदेखा कर देते है | यह क्षेत्र जलकुंड, कुआं अथवा पेयजल के किसी अन्य स्रोत हेतु सर्वोत्तम स्थान है।


क्या हो-

- यहाँ तुलसी का पौधा लगा कर, सालिगराम व शिव को रख कर पूजा करने से सम्पन्नता आती है |
- इस स्थान पर यदि प्रवेश द्वार हो तो माँ लक्ष्मी की निरंतर कृपा बनी रहती है |
- इस स्थान को साफ़ सुथरा रखना घर के हर सदस्य की नैतिक ज़िम्मेदारी है |
- इस स्थान पर जल क्षेत्र होना बेहद लाभ देता है |
- यह स्थान पूजा पाठ का सबसे उपयुक्त स्थान है |
- इस स्थान को कभी भूल से भी बंद न करे |

क्या न हो-
- यहाँ कभी गन्दगी न करे |
- इस स्थान को बंद न करे और न ही रखे |
-  यहाँ कभी अग्नि का स्थान न रखे |
- यहाँ कभी भी शौचालय न बनाये |
- यहाँ पर भारी सामान व विद्युत् उपकरण न रखे |
- यहाँ किसी भी परिस्थति में गंदे कपडे, जूठे बर्तन, जूते, न हो |
- यदि जब तक अनिवार्य न हो तब तक घर के बड़े बुजुर्गो का स्थान यहाँ न बनाये |

पूर्व दिशा में क्या हो, क्या ना हो

वास्तु शास्त्र का आधार क्या : हमारे महान ऋषि-मुनियों ने बिना तोड़-फोड़ किए गंभीर वास्तु दोषों को दूर करने के लिए कुछ सरल व अत्यंत चमत्कारिक उपाय बताए हैं जो पूर्णत: प्राकर्तिक, ब्रह्मांडीय व पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति तथा सृष्टि की अनमोल धरोहर सूर्य की प्राणदायक किरणों, वायु आदि पर आधारित है। आज से हम अगले कुछ एपिसोदेस में यह जानकारी देगें की किस दिशा में क्या होना चाहिए और क्या नहीं |


क्या हो-
- घर में पूर्व दिशा का शुद्ध होना घर, परवारिक तनाव, विवाद निवारण हेतु व परिवार, सदस्यों की वृद्धि हेतु बहुत ही अनिवार्य है | 
- प्रत्येक कक्ष के पूर्व में प्रातःकालीन सूर्य की प्रथम किरणों के प्रवेश हेतु खुला स्थान या खिड़की अवश्य होनी चाहिए। 
- पूर्व में लाल, हरे, सुनहरे और पीले रंग का प्रयोग करें। 
- पूर्वी क्षेत्र में जलस्थान, बोरिंग, भूमिगत टेंक बनाएं |
- इस स्थान में घर के बच्चो कमरा एवं अध्यन कक्ष या घर के बड़े बेटे का कमरा उचित है |
- यह स्थान पूजा के कमरे के लिए उपयुक्त होता है |
- इस स्थान पर अधिक से अधिक जल स्थान, बोरिंग बनाये |
- पूर्व दिशा की तरफ अधिक से अधिक खुला स्थान व ढाल होनी चाहिए |

क्या ना हो-
- पूर्व दिशा का कटना अशुभ माना जाता है को भाग्य में कमी का सूचक है, 
- इस स्थान पर स्टोर, शौचालय, गन्दगी कदापि ना हो |
- इस स्थान पर घर के वरिष्ट सदस्य का कमरा ना बनाये, उससे घर की वृद्धि प्रभावित होगी |
- इस स्थान को बंद व ऊँचा किसी भी परिस्थति में ना करे |  
- इस स्थान को सीढ़ीयां बनाकर भारी ना करे |