Tuesday, July 12, 2011

महादेव है यत्र - तत्र - सर्वत्र - शिव आराधना मुक्ति का मार्ग....!!!

भगवान शिव सौम्य प्रकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से शिव को भिन्न माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदिस्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। शिव में परस्पर विरोधी भावों का सामंजस्य देखने को मिलता है। शिव के मस्तक पर एक ओर चंद्र है, तो दूसरी ओर महाविषधर सर्प भी उनके गले का हार है। वे अर्धनारीश्वर होते हुए भी कामजित हैं। गृहस्थ होते हुए भी श्मशानवासी, वीतरागी हैं। सौम्य, आशुतोष होते हुए भी भयंकर रुद्र हैं। शिव परिवार भी इससे अछूता नहीं हैं। उनके परिवार में भूत-प्रेत, नंदी, सिंह, सर्प, मयूर व मूषक सभी का समभाव देखने को मिलता है। वे स्वयं द्वंद्वों से रहित सह-अस्तित्व के महान विचार का परिचायक हैं। श्रावण मास में ॐ नम: शिवाय या शिव मात्र स्मरण से समस्त पापों का नाश होता है। इस मास में मन, कर्म, वचन से शुद्ध होकर शिव पुराण का पठन-पाठन, शिवलिंग पूजन का विशेष महत्व है। शिव की उपासना मनुष्य के लिए कल्पवृक्ष की प्राप्ति के समान है। भगवान शिव से जिसने जो चाहा उसे प्राप्त हुआ। महामृत्युंजय शिव की कृपा से मार्कण्डेय ऋषि ने अमरत्व प्राप्त किया और महाप्रलय को देखने का अवसर प्राप्त किया। शिव के अनेक रूप हैं। शिव की आराधना करने से आपकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। वेद एवं पूराण ३३ करोड देवी देवतों का साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं जो कि मानव, पशू, नरपशु, ग्रह, नक्षत्र, वनस्पति तथा जलाशय इत्यादि हर रूप में व्याप्त हैं | पर इनके शिखर पर हैं त्रिदेव … ब्रह्मा, विष्णु एवं सदाशिव | इनमे शापित होने के कारण ब्रह्मा की पुजा नहीं होती तथा जगत में विष्णु तथा सदाशिव ही पूजे जाते हैं | शिव सबसे सरल स्वभाव के देवता है...जब समुद्र मंथन हुआ...तब लक्ष्मी....अमृत..व ना ना प्रकार के रत्ना आभूषण आदि की उत्पत्ति हुई और देवताओ व असुरो में उनको बाँटने के लिए कोहराम मच गया | वही.....जब गरल (विष) पात्र निकला तो किसी ने भी आगे बढ़कर थमा नहीं....? बल्कि सब सोचने लगे की यह कौन लेगा....? तब वहां स्वयं शिव ने उस गरल पात्र को इस सृष्टि की सुरक्षा व जगत के कल्याण हेतु अपने कंठ में स्थापित कर लिया अर्थात समस्त भोग...विलास...ऐश्वर्य...के साधन, वस्तु व पदार्थ अन्य देवताओ तथा असुरो के लिए छोड़ दिया...इस सृष्टि में जितनी भी अतृप्त, शापित आत्माए थी...जिनका कोई वरण नहीं करना चाहता...जो मोक्ष प्राप्ति के लिए भटक रही थी ...शिव ने उन्हें अपना गण बनाकर उन्हें शिवशायुज्ज दे मोक्ष का मार्ग दिया...| 

भगवान् शिव की आराधना में क्या चाहिए...? 
सिर्फ एक लोटा जल....भंग....धतुरा....जिसे कोई नहीं पूछता....मदार की माला, फूल...जो कही भी अर्थात यत्र तत्र सर्वत्र सुलभ हो जाते है....? इससे यह स्पष्ट होता है के शिव ही एकमात्र ऐसे देवता है जो बहुत ही सहज स्वरुप में प्रसन्न होते है और साथ ही यह सन्देश देते है के यदि किसी व्यक्ति में कोई दुर्गुण है तो उससे दुर्भाव मत रखो...उससे प्रेम करो और उसके दुर्गुणों को दूर करो...शिव की आराधना में चाहिए सच्चे शुद्ध ह्रदय के भाव...| 

ॐ नमः शिवाय का महत्व
शिव भक्तों का सर्वाधिक लोग प्रिय मंत्र है "ॐ नमः शिवाय"। नमः शिवाय अर्थात शिव जी को नमस्कारपाँचअक्षर का मंत्र है "न", "म", "शि", "व" और "य" । प्रस्तुत मंत्र इन्ही पाँच अक्षरों की व्याख्या करता है। स्तोत्र के पाँच छंद पाँच अक्षरों की व्याख्या करते हैं। अतः यह स्तोत्र पंचाक्षर स्तोत्र कहलाता है। "ॐ" के प्रयोग से यह मंत्र छः अक्षर का हो जाता है। एक दूसरा स्तोत्र "शिव षडक्षर स्तोत्र इन छः अक्षरों पर आधारित है |

No comments: