आपकी सहायता हेतु वास्तु अनुरूप घर की उर्जा को शुद्ध व कलह हो नियंत्रित करने हेतु कुछ सुझाव :-
- गुग्गुल युक्त धूप व अगरवत्ती प्रज्वलित करें वेदमंत्र का उच्चारण करते हुए समस्त गृह में घुमाएं।
- जब भी किसी महत्व्यपूर्ण कार्य हेतु निकले तो कुछ कदम शुभ दिशा अर्थात उत्तर पूर्व की तरफ चल कर कार्य पर जाये |
- घर के मुख्य द्वार पर गणपति को स्थापित कर सिंदूर चढ़ाए फिर उसी सिंदूर से दायीं तरफ स्वास्तिक व बाई तरफ ॐ बनाएं।
- घर में झाड़ू को उत्तर पूर्व में खुले में या खड़ा करके नहीं रखना चाहिए उसे पैर नहीं लगना चाहिए, न ही लांघा जाना चाहिए, ऐसा रखे की आगंतुक को दिखाई न दे |
I,Vaibhava Nath Sharma wish to act as a Catalyst in attainment of your peace in life through my humble Suggestions and Vedic Remedies. I am by profession an Astrologer and Vastu Consultant.I aspire to be of assistance in various challenges related to your Personal, Career, Financial, Health, Educational and Family Matters. I therefore invite you all to share your Miseries/ Worries/ Tensions and be lifted of it through easy and simple solutions that account for a happier and Prosperous Life.
Sunday, July 17, 2011
वास्तु के मूलभूत व सामान्य नियम
वास्तु शास्त्र एक ऐसी विद्या है जो हमे स्वस्थ्य जीवन जीने का मार्गदर्शन करती है | जब आप घर से निकले तो किस मुह निकले, किस मुह भोजन करे, किस दिशा में बैठ कर किसी बड़ी योजना को मूर्तरूप दे, या किस दिशा की तरफ सर रख कर सोये जिससे आपको सौभाग्य व आरोग्यता मिले | ऐसे में जीवनशैली व दिनचर्या को कुछ ऐसा बनाये की स्वत: वास्तु के मूलभूत व सामान्य नियमों का पालन होता रहे |
- घर में जूते-चप्पल प्रवेश द्वार पर या अव्यवस्थित कही भी इधर-उधर बिखरे हुए या उल्टे पड़े हुए न हो |
- घर में दरवाजे अपने आप खुलने व बंद होने वाले तथा कर्कश ध्वनि उत्पन्न करने वाले नहीं होने चाहिए।
- प्रवेश द्वार पर कीचड़, पानी का रुकना, गन्दी नाली या नाली में पानी जमा होना घोर अशुभता का लक्षण है |
- घर के मंदिर में तीन गणेश, देवी की तीन मूर्ति तथा विष्णु सूचक दो शंखों का एक साथ पूजन भी वर्जित है।
- घर के मध्य भाग (ब्रह्मस्थान) में जूठे बर्तन, गंदे कपडे, साफ करने का या स्थान शौचालय नहीं होना चाहिए।
- घर में जूते-चप्पल प्रवेश द्वार पर या अव्यवस्थित कही भी इधर-उधर बिखरे हुए या उल्टे पड़े हुए न हो |
- घर में दरवाजे अपने आप खुलने व बंद होने वाले तथा कर्कश ध्वनि उत्पन्न करने वाले नहीं होने चाहिए।
- प्रवेश द्वार पर कीचड़, पानी का रुकना, गन्दी नाली या नाली में पानी जमा होना घोर अशुभता का लक्षण है |
- घर के मंदिर में तीन गणेश, देवी की तीन मूर्ति तथा विष्णु सूचक दो शंखों का एक साथ पूजन भी वर्जित है।
- घर के मध्य भाग (ब्रह्मस्थान) में जूठे बर्तन, गंदे कपडे, साफ करने का या स्थान शौचालय नहीं होना चाहिए।
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वैभव नाथ शर्मा
वास्तु सिधांत द्वारा सफलता प्राप्त करने के कुछ सूत्र
व्यक्ति जीवन में संघर्ष करता है सफलता प्राप्त करने हेतु और अपनी जिम्मेदारी को भली भांति पूरा करने हेतु..उसमे जीवन यात्रा में कई ऐसे पड़ाव आते है जब व्यक्ति बहुत ही असहाय हो जाता है.....और यदि कुछ छोटी छोटी बातो का ध्यान दे दिया जाये तो शयद यह जीवन यात्रा बहुत ही सहज और रोचक हो जाये तो आइये आज कुछ ऐसे ही सरल उपाय...जिनसे मिलेगा जीवन में लाभ-
- भोजन यथासंभव आग्नेय कोण में पूर्व की ओर मुंह करके बनाये |
- मुकदमे आदि से संबंधित कागजात धन रखने के स्थान पर न रखें |
- पूजा कक्ष में, धूप, अगरबत्ती व हवन कुंड हमेशा दक्षिण पूर्व में रखें।
- सम्पूर्ण भवन में व प्रवेश द्वार पर जल या गंगाजल से नित्य सिंचन करे |
- रात्रिकाल में शयन से पूर्व कुछ समय अपने इष्टदेव का ध्यान अवश्य करे |
- भोजन यथासंभव आग्नेय कोण में पूर्व की ओर मुंह करके बनाये |
- मुकदमे आदि से संबंधित कागजात धन रखने के स्थान पर न रखें |
- पूजा कक्ष में, धूप, अगरबत्ती व हवन कुंड हमेशा दक्षिण पूर्व में रखें।
- सम्पूर्ण भवन में व प्रवेश द्वार पर जल या गंगाजल से नित्य सिंचन करे |
- रात्रिकाल में शयन से पूर्व कुछ समय अपने इष्टदेव का ध्यान अवश्य करे |
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वैभव नाथ शर्मा
दैनिक जीवन में लाभ हेतु मुख्य वास्तु सूत्र...!!!
जीवन में सफलता प्राप्त करने का सम्बन्ध कुंडली के बाद आपके निवास व कार्य स्थान की उर्जा पर निर्भर करता है जहा आप अपने जीवन का अधिक से अधिक समय व्यतीत करते है....और यह हमारे दैनिक दिनचर्या से जुड़ा हुआ प्रश्न है तो आइये कुछ ऐसे मुख्य सूत्र है जिनसे आज प्रकाश डालते है जिनका हमारे दैनिक जीवन में बहुत ही महत्व्य है |
- दक्षिण दिशा की तरफ सर रख कर शयन करे |
- घर की परिधि में कंटीले या जहरीले नहीं होने चाहिए |
- पढ़ने वाले बच्चों का मुंह पूर्व उत्तर की ओर होना चाहिए।
- प्रातः काल सूर्य को अर्य देकर सूर्य नमस्कार अवश्य करें।
- पूजा स्थान घर के पूर्व-उत्तर (ईशान कोण) में होना चाहिए |
- भोजन सदैव पूर्व या उत्तर की तरफ मुख करके ही ग्रहण करे |
- दक्षिण दिशा की तरफ सर रख कर शयन करे |
- घर की परिधि में कंटीले या जहरीले नहीं होने चाहिए |
- पढ़ने वाले बच्चों का मुंह पूर्व उत्तर की ओर होना चाहिए।
- प्रातः काल सूर्य को अर्य देकर सूर्य नमस्कार अवश्य करें।
- पूजा स्थान घर के पूर्व-उत्तर (ईशान कोण) में होना चाहिए |
- भोजन सदैव पूर्व या उत्तर की तरफ मुख करके ही ग्रहण करे |
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वैभव नाथ शर्मा
शुभ वास्तु के कुछ सरल सुझाव...!!!
यदि आपके घर की उर्जा शुभ हो तो परिवार का हर सदस्य अपने अपने कार्य क्षेत्र में सफलता की उन्चियो तक जा सकता है और यदि उनमे कुछ दोष रह जाये तो परिवार को किसी भी प्रकार के कष्ट और दुर्दिन देखने पद सकते है जिनका कोई पैमाना नहीं है तो आइये कुछ ऐसे सरल सूत्र पर चर्चा करते है जो बनाये आपके घर को शुभ वास्तु....
शुभ वास्तु के कुछ सुझाव :-
- संध्या काल में शयन न करे |
- घर में मकड़ी का जाल न लगने दें |
- महत्वपूर्ण कागजात सदैव पूर्व में रखें।
- शयनकक्ष में कभी जूठे बर्तन नहीं रखें |
- उत्तर पूर्व दिशा की खिड़कियां खोलकर रखें |
शुभ वास्तु के कुछ सुझाव :-
- संध्या काल में शयन न करे |
- घर में मकड़ी का जाल न लगने दें |
- महत्वपूर्ण कागजात सदैव पूर्व में रखें।
- शयनकक्ष में कभी जूठे बर्तन नहीं रखें |
- उत्तर पूर्व दिशा की खिड़कियां खोलकर रखें |
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शुभ
क्या आप अपने घर से प्यार करते है....? घर से प्यार बढ़ाने के पांच चमत्कारी उपाय....!!!
क्या आप अपने घर से प्यार करते है....? यह प्रश्न इसलिए भी अवश्यक है क्यूंकि जबतक भवन स्वामी अपने भवन से स्नेह, लगाव व प्रेम नहीं रखेगा तब तक वह भवन, वह स्थान या उस स्थान का वास्तु देवता भवन स्वामी को अपना मालिक या स्वामी मानकर कैसे आशीर्वाद देगा....? इसके लिए आपको सबसे पहले अपने निवास स्थान या कर्म स्थान से भावनात्माक लगाव होना आवश्यक है जिस प्रकार एक अभिभावक अपनी संतान के लगाव रखता है और मनन से ह्रदय से उसे निरंतर आशीष ही देता रहता है उसी प्रकार हमारे स्थान के अधिपति देवता का आशीष हमें तब ही मिलेगा जब हम उससे लगाव रखेंगे और उससे प्रेम करेंगे | तो आइये जाने पांच प्रमुख सूत्र जो बढ़ाएंगे भवन स्वामी और उसके अधिपति देवता के मध्य प्यार और स्नेह |
पहला प्यार -
भवन स्वामी का अपने घर के दक्षिण पश्चिम में रहना अनिवार्य है। यह वह स्थान है जहाँ रहने वाले व्यक्ति को वास्तु देवता अर्थात भवन अपना स्वामी मानता है और जीवन में स्थिरता देता कई क्यूंकि यह स्थान पृथ्वी का है |
4. चौथा प्यार
घर की उर्जा को साफ़ सुथरा और सुरक्षित रखने हेतु घर में हमेशा नमक के पानी का पोछा लगाएं और घर का हर एक सदस्य खुद इस प्रक्रिया को सुनिश्चित करें हर दिन।
5. पांचवां प्यार
लाभ- अपना घर से जुड़ाव बढेगा औऱ आपका घर आपको शुभ फल देगा।
2. दूसरा प्यार-
यदि परिवार की सदस्यों के बीच खुशनुमा माहौल बनाये रखना है और साथ ही परिजनों में एक दुसरे के लिए सहियोग, समर्पण का भाव सदा बना रहे, आपस का तनाव दूर रहे, सौहार्द व संबंध बनाएं रखने के लिए परिवार का खुशनुमा चित्र दक्षिण और पश्चिम के कमरे में पूर्व या उत्तर की दीवार पर अवश्य लगाएं।
लाभ- परिवार में सामंजस्य बना रहेगा।
3. तीसरा प्यार
नुणराई- जिस प्रकार एक माँ अपनी संतान की नज़र उतरती है उसी प्रकार आपको भी सपनो के स्वर्ग से सुंदर अपने घर को नमक और राई लेकर उसकी नज़र उतरनी है | किसी अमावस्या को नमक और राइ ले और ईशान कोण से अपनी घर की एक परिक्रमा शुरू करें और ईशान पर ही समाप्त कर घर के बाहर जाकर आग में जला दें। ऐसा छह मॉस में एक बार अवश्य करे |
2. दूसरा प्यार-
यदि परिवार की सदस्यों के बीच खुशनुमा माहौल बनाये रखना है और साथ ही परिजनों में एक दुसरे के लिए सहियोग, समर्पण का भाव सदा बना रहे, आपस का तनाव दूर रहे, सौहार्द व संबंध बनाएं रखने के लिए परिवार का खुशनुमा चित्र दक्षिण और पश्चिम के कमरे में पूर्व या उत्तर की दीवार पर अवश्य लगाएं।
लाभ- परिवार में सामंजस्य बना रहेगा।
3. तीसरा प्यार
नुणराई- जिस प्रकार एक माँ अपनी संतान की नज़र उतरती है उसी प्रकार आपको भी सपनो के स्वर्ग से सुंदर अपने घर को नमक और राई लेकर उसकी नज़र उतरनी है | किसी अमावस्या को नमक और राइ ले और ईशान कोण से अपनी घर की एक परिक्रमा शुरू करें और ईशान पर ही समाप्त कर घर के बाहर जाकर आग में जला दें। ऐसा छह मॉस में एक बार अवश्य करे |
लाभ- किसी भी प्रकार की बुरी नज़र या बाला होगी तो तत्काल उतर जाएगी |
4. चौथा प्यार
घर की उर्जा को साफ़ सुथरा और सुरक्षित रखने हेतु घर में हमेशा नमक के पानी का पोछा लगाएं और घर का हर एक सदस्य खुद इस प्रक्रिया को सुनिश्चित करें हर दिन।
लाभ- घर की उर्जा साफ़, शुद्ध होगी तो शुभ व प्रगति कारक, उन्नति प्रदायक विचार आयेंगे |
5. पांचवां प्यार
प्रात: उठते ही व संध्याकाळ में भवन के प्रवेश द्वार का साफ सुथरा व शुद्ध करें। उसे कभी भी गंदा न रखें। हो सके तो उसे सुसज्जित करें।जिससे गृह स्वामी जब काम पर निकले तो घर व द्वार उसे शुभ के साथ विदा दे और संध्याकाळ में उसका शुभ उर्जा के साथ स्वागत करे |
लाभ- ऐसे में घर से जाने वाले का और फिर घर वापिस आने वाले व्यक्ति का मन, मिज़ाज उत्साहवर्धक बना रहता है | दिन भर की थकान, तनाव घर में वापिस आते ही दूर हो जाते है |
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Saturday, July 16, 2011
कलियुग में अमोघ, विलक्षण तथा राम बाण है बजरंग बाण का नित्य प्रयोग...!!!
कलियुग के प्रत्यक्ष व साक्षात् देवता श्री हनुमान जी के चमत्कार से कौन परिचित नहीं है | जीवन के समस्त दुःख, संताप को मिटाने के लिए यूँ तो हनुमान जी के कई सारे प्रयोग प्रचलित है लेकिन कुछ ऐसे अनुभूत अनुष्ठान है जिनका प्रयोग आज तक कभी भी खाली नहीं गया, बजरंग बाण भी उन्ही में से एक है | मनुष्य जीवन के समस्त भौतिक मनोकामनाओं की पूर्ति के लिये, दुखो, कष्टों, बाधाओ के निवारण हेतु बजरंग बाण का प्रयोग अमोघ व विलक्षण प्रभाव से युक्त पाया गया है जो समय समय पर आजमाया और अनुभूत है | जिस भी घर, परिवार में बजरंग बाण का नियमित पाठ, अनुष्ठान होता है वहाँ दुर्भाग्य, दारिद्रय, भूत-प्रेत का प्रकोप और असाध्य रोग, शारीरिक कष्ट कभी नहीं सताते | समयाभाव में जो व्यक्ति नित्य पाठ करने में असमर्थ हो, उन्हें कम से कम प्रत्येक मंगलवार को यह पाठ अवश्य करना चाहिए। बजरंग बाण का नियमित सम्पूर्ण पाठ किसी भी जातक के जीवन में व्याप्त सम्पूर्ण कष्ट, घोर संताप को हरने में सक्षम है जो लोग समयाभाव के कारण सम्पूर्ण पाठ ना कर सके उनके लिए बजरंग बाण का शुक्ष्म अमोघ, विलक्षण व महाकल्याणकारी प्रयोग प्रस्तुत है | ध्यान रहे की अनुष्ठान के लिये शुद्ध स्थान तथा शान्त वातावरण परम आवश्यक है जहाँ कोई आपको टोके ना और आपकी साधना निर्बाध्य, अखंड रूप से पूरी हो जाये | यदि घर में यह संभव और सुलभ न हो तो कहीं एकान्त स्थान अथवा आस पास स्थित हनुमानजी के मन्दिर के एकांत, सुरम्य प्रागड़ का प्रयोग करें।
अनुष्ठान प्रक्रिया-
किसी भी अभीष्ट कार्य की सिद्धि हेतु शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार से प्रारंभ कर चालीस दिन इसका अनुष्ठान कर सकते है | साधना काल में कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करे व स्वयं धारण हेतु लाल वस्त्र तथा बैठने हेतु ऊनी अथवा कुशासन प्रयोग करें | सर्वप्रथम हनुमानजी व श्रीसीता राम दरबार का एक चित्र या मूर्ति लाल वस्त्र पर अपने समक्ष स्थापित करे | महावीर हनुमान जी के किसी भी अनुष्ठान मे अथवा पूजा आदि में अखंड दीप और दीपदान का विशेष महत्त्व होता है। इसके लिए पांच प्रकार के अनाज अर्थात - गेहूँ, चावल, मूँग, उड़द और काले तिल को अनुष्ठान से पूर्व एक-एक मुट्ठी प्रमाण में लेकर शुद्ध गंगाजल में भिगो दें, जिसका प्रयोग अनुष्ठान हेतु अखंड दीप बनाने में करेंगे | अनुष्ठान वाले दिन इन अनाजों को पीसकर उस का एक बड़ा दीया बनाएँ | दिए की बत्ती के लिए साधक लाल कच्चे सूत का कलावा प्रयोग करे | उस कलावे को अपने सर से लेकर पाँव तक की लम्बाई के बराबर पाँच बार नाप ले और फिर इसकी बत्ती बना कर दीपक में प्रयुक्त करे | अखंड दीप हेतु तिल का तेल या चमेली के तेल का प्रयोग कर सकते है | हनुमानजी के अनुष्ठान के लिये गूगुल की सुगन्धित धुनी या धुप भी एक आवश्यक अवयव है अत: गूगुल की धूनी या धुप की भी व्यवस्था रखें।
अनुष्ठान प्रक्रिया-
किसी भी अभीष्ट कार्य की सिद्धि हेतु शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार से प्रारंभ कर चालीस दिन इसका अनुष्ठान कर सकते है | साधना काल में कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करे व स्वयं धारण हेतु लाल वस्त्र तथा बैठने हेतु ऊनी अथवा कुशासन प्रयोग करें | सर्वप्रथम हनुमानजी व श्रीसीता राम दरबार का एक चित्र या मूर्ति लाल वस्त्र पर अपने समक्ष स्थापित करे | महावीर हनुमान जी के किसी भी अनुष्ठान मे अथवा पूजा आदि में अखंड दीप और दीपदान का विशेष महत्त्व होता है। इसके लिए पांच प्रकार के अनाज अर्थात - गेहूँ, चावल, मूँग, उड़द और काले तिल को अनुष्ठान से पूर्व एक-एक मुट्ठी प्रमाण में लेकर शुद्ध गंगाजल में भिगो दें, जिसका प्रयोग अनुष्ठान हेतु अखंड दीप बनाने में करेंगे | अनुष्ठान वाले दिन इन अनाजों को पीसकर उस का एक बड़ा दीया बनाएँ | दिए की बत्ती के लिए साधक लाल कच्चे सूत का कलावा प्रयोग करे | उस कलावे को अपने सर से लेकर पाँव तक की लम्बाई के बराबर पाँच बार नाप ले और फिर इसकी बत्ती बना कर दीपक में प्रयुक्त करे | अखंड दीप हेतु तिल का तेल या चमेली के तेल का प्रयोग कर सकते है | हनुमानजी के अनुष्ठान के लिये गूगुल की सुगन्धित धुनी या धुप भी एक आवश्यक अवयव है अत: गूगुल की धूनी या धुप की भी व्यवस्था रखें।
सम्पूर्ण साधना के चालीस दिन में हनुमान जी को गुड चने, मधु - मुनक्का, बेसन के मोदक, केले आदि का भोग अर्पित करे और साधना उपरांत प्रसाद वितरण कर स्वयं ग्रहण करे तथा आपका प्रयास यह होना चाहिए की आप एक समय गुड और गेहू से बने पदार्थ ही ग्रहण करे और एक समय फलाहार करे | जप के प्रारम्भ में यह संकल्प अवश्य लें कि हनुमान जी की कृपा से आपका कार्य जब भी होगा, उससे जो भी धन लाभ होगा उसमे से हनुमानजी के निमित्त कुछ नियमित अंश दान, अनुष्ठान, पूजा पाठ आदि आप अवश्य करते रहेंगे। अब शुद्ध उच्चारण के साथ ह्रदय में हनुमान जी व सीता राम जी की दिव्य छवि का ध्यान कर बजरंग बाण का सम्पूर्ण पाठ प्रारम्भ करें। यदि सम्पूर्ण पाठ संभव ना हो तो बजरंग बाण के निम्न दोहे का जाप निरंतर करते रहे |
|| चरण शरण कर जोरी मानवों | एहि अवसर अब केही गोहरावो ||
|| उठु-उठु चल तोहि राम दुहाई। पाँय परौं कर जोरि मनाई ||
|| चरण शरण कर जोरी मानवों | एहि अवसर अब केही गोहरावो ||
|| उठु-उठु चल तोहि राम दुहाई। पाँय परौं कर जोरि मनाई ||
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कैसे और क्यूँ करें श्रावण में सोमवार व्रत, पूजा व कथा.....?
परम पुण्य श्रावण मॉस में सोमवार के व्रत का विशेष महात्यम है | पुराणों व प्राचीन शास्त्रों के अनुसार सोमवार के व्रत तीन प्रकार के बताये गए है। पहला तो है की सिर्फ सावन में जितने भी सोमवार पड़े उन समस्त सोमवार पर व्रत कर उमा - महेश्वर की आराधना करना, दूसरा सोलह सोमवार का सांकल ले कर सावन के सोमवार से प्रारंभ कर सोलह सोमवार व्रत करना तथा तीसरा है सोम प्रदोष, प्रदोष तिथि मॉस में दो बार आनेवाली तिथि है जो भगवान् शिव को अतिप्रिय है और जब वह तिथि सोमवार को आ जाये तो फिर क्या कहना, इस कारण सोम प्रदोष को व्रत का भी विशेष महात्यम वर्णित है । तीनो में से किसी भी तरह के सोमवार व्रत की विधि सभी व्रतों में समान होती है। जिनमे उमा - महेश्वर अर्थात भगवान शिव तथा देवी माँ पार्वती की विशेष पूजा आराधना की जाती है। और यदि इनमे से किसी भी व्रत को श्रावण मॉस में प्रारंभ करे तो और भी शुभ है | सभी सोमवार व्रत विशेषकर श्रावण में किये जाने वाले सोमवार व्रत सूर्योदय से प्रारंभ कर तीसरे प्रहर तक अर्थात संध्याकाळ, गोधुली बेला तक किया जाता है उसके उपरांत सविधि शिव - पार्वती पूजन पश्चात सोमवार व्रत की कथा सुननी आवश्यक है। व्रत करने वाले साधक को दिन में एक समय ही भोजन करना चाहिए।
कैसे करे सावन व्रत व पूजा -
व्रत की पूर्व रात्रि को हल्का व सात्विक भोजन करे तत्पचात ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पूरे घर की सफाई कर्म व स्नानादि से निवृत्त हो यदि गंगाजल हो तो गंगा जल या किसी पवित्र तीर्थ के जल का पूरे घर में छिडकाव व सिंचन करे जिससे स्थान शुद्धि हो जाये। पूजा स्थान पर लाल वस्त्र बिछाकर शिव परिवार का चित्र या मूर्ति स्थापित करें।
निम्न मंत्र से संकल्प लें-
'मम क्षेमस्थैर्यविजयारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमव्रतं करिष्ये'
शिव का ध्यान मंत्र -
'ध्यायेन्नित्यंमहेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्।
पद्मासीनं समंतात्स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्ववंद्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्॥
'मम क्षेमस्थैर्यविजयारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमव्रतं करिष्ये'
शिव का ध्यान मंत्र -
'ध्यायेन्नित्यंमहेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्।
पद्मासीनं समंतात्स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्ववंद्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्॥
ध्यान के पश्चात पूजा के मंत्र -
'ऊँ नमः शिवाय' से शिवजी का तथा 'ऊँ नमः शिवायै' से पार्वतीजी का षोडशोपचार पूजन करें। पूजन के पश्चात व्रत कथा अवश्य सुनें। तत्पश्चात सपरिवार आरती कर प्रसाद वितरण करें। इसकें बाद भोजन या फलाहार ग्रहण करें।
श्रावण मॉस में सोमवार व्रत - कथा करने के फल-
सोमवार व्रत नियमित रूप से करने पर भगवान शिव तथा माँ पार्वती की कृपा, अनुकम्पा बनी रहती है तथा सभी अनिष्टों, अकाल मृत्यु व बाधाओ से न ही सिर्फ मुक्ति मिलती है बल्कि अपने भक्तो पर आने वाले किसी भी कष्ट को स्वयं महाकाल शिव हर लेते है तथा जीवन - कुटुंब धन-धान्य, समस्त सुख - समृद्धि, ऐश्वर्य से परिपूर्ण रहता है।
Wednesday, July 13, 2011
गुरु बिना ज्ञान पथ की परिकल्पना असंभव है....
|| गुरुब्रम्हा गुरु विष्णु गुरुदेवों महेश्वर :
गुरु साक्षात् परं ब्रम्ह तस्मै श्रीगुरवे नमः ||
|| सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार
लोचन अनंत उघाडिया, अनंत दिखावन्हार ||
महात्मा कबीर सच्चे गुरु की महत्ता को प्रतिष्ठित करते हुए यहाँ तक कहते है …
गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागू पाँव ,
बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय...
कृष्ण द्वैपायन व्यास (वेदव्यास जी) का अवतरण आषाढ़ मॉस की पूर्णिमा को हुआ था इसलिए आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को व्यास पूजन के बाद अपने-अपने गुरु की पूजा विशेष रूप से की जाती है। सदगुरु परमात्मा का साक्षात्कार करवाकर शिष्य को जन्म-मरण के बंधन से मुक्त कर देते है, अतएव संसार में गुरु का स्थान विशेष महत्व का है।समस्त वेदों, "ब्रह्मसूत्र" की रचना व्यासजी ने की। पांचवां वेद "महाभारत" व्यासजी ने लिखा भक्ति-ग्रन्थ भागवतपुराण भी व्यासजी की रचना है एवं अन्य 18 पुराणों का प्रतिपादन भी भगवान वेदव्यास जी ने ही किया है। व्यासजी ने पूरी मानव-जाति को सच्चे कल्याण का खुला रास्ता बता दिया है। व्यासदेव जी गुरुओं के भी गुरु माने जाते हैं। ज्ञान के असीम सागर, भक्ति के आचार्य, विद्वत्ता की पराकाष्ठा और अथाह कवित्व शक्ति अतः इनसे बड़ा कोई कवि मिलना असंभव है। गुरू पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है। इसी दिन से वर्षाकालीन चातुर्मास का प्रारंभ होता है जिसमे साधु-संत, गुरु एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं और विद्यार्थी उसे ग्रहण करते है | शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है - अंधकार या मूल अज्ञान और रु का अर्थ किया गया है - उसका निरोधक।
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानांजनशलाकया |
चक्षुरुन्मीलितम येन तस्मै श्री गुरुवै नम : ||
अर्थात अज्ञान रूपी अंधकार की अन्धता को ज्ञान रूपी काजल की शलाका से हमारे नेत्रों को खोलने वाले श्री गुरु को नमन है, गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है अथवा अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को 'गुरु' कहा जाता है। गुरु एक वैदिक परंपरा है और कम से कम भारतीय परिवेश में इसका महत्त्व कभी कम नहीं हो सकता है | गुरु शिष्य परंपरा हमारे देश में सदैव ही समृद्ध रही है | गुरु सदैव अपने ज्ञान दीप से जीवन में प्रगति के मार्ग को प्रशस्त करने का गुर सिखाने वाले और हमारी आभा की पहचान करने वाले और हमारे मनोविकारों को दूर करने में सहायक सिद्ध होते हैं | हमारी संस्कृति में गुरु को उच्चतम स्थान दिया गया है और उनकी आज्ञा को सर्वोपरि मानकर उनके आदेश का अक्षरश: पालन किया जाता है | गुरु बिना करोड़ों पुण्य भी व्यर्थ हैं | रामायण के प्रसंग अनुसार भगवान् श्रीराम भी गुरुद्वार पर जाते थे और माता-पिता तथा गुरुदेव के चरणों में विनयपूर्वक नमन करते थे - प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा॥
व्यास जी की साधना कथा -
वसिष्ठ जी महाराज के पौत्र पराशर ऋषि के पुत्र वेदव्यास जी जन्म के कुछ समय बाद ही अपनी मां से कहने लगे-"अब हम जाते हैं तपस्या के लिए।" मां बोली-"बेटा! पुत्र तो माता-पिता की सेवा के लिए होता है। माता-पिता के अधूरे कार्य को पूर्ण करने के लिए होता है और तुम अभी से जा रहे हो?" व्यास जी ने कहा-"मां! जब तुम याद करोगी और जरूरी काम होगा, तब मैं तुम्हारे आगे प्रकट हो जाऊंगा।" मां से आज्ञा लेकर व्यासजी तप के लिए चल दिए। वे बदरिकाश्रम गए। वहां एकांत में समाधि लगाकर रहने लगे। बदरिकाश्रम में बेर पर जीवनयापन करने के कारण उनका एक नाम " बादरायण" भी पड़ा।
गुरु कैसा हो...? गुरु बनाने के शास्त्रीय आधार व सुझाव -
गुरु साक्षात् परं ब्रम्ह तस्मै श्रीगुरवे नमः ||
|| सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार
लोचन अनंत उघाडिया, अनंत दिखावन्हार ||
महात्मा कबीर सच्चे गुरु की महत्ता को प्रतिष्ठित करते हुए यहाँ तक कहते है …
गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागू पाँव ,
बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय...
कृष्ण द्वैपायन व्यास (वेदव्यास जी) का अवतरण आषाढ़ मॉस की पूर्णिमा को हुआ था इसलिए आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को व्यास पूजन के बाद अपने-अपने गुरु की पूजा विशेष रूप से की जाती है। सदगुरु परमात्मा का साक्षात्कार करवाकर शिष्य को जन्म-मरण के बंधन से मुक्त कर देते है, अतएव संसार में गुरु का स्थान विशेष महत्व का है।समस्त वेदों, "ब्रह्मसूत्र" की रचना व्यासजी ने की। पांचवां वेद "महाभारत" व्यासजी ने लिखा भक्ति-ग्रन्थ भागवतपुराण भी व्यासजी की रचना है एवं अन्य 18 पुराणों का प्रतिपादन भी भगवान वेदव्यास जी ने ही किया है। व्यासजी ने पूरी मानव-जाति को सच्चे कल्याण का खुला रास्ता बता दिया है। व्यासदेव जी गुरुओं के भी गुरु माने जाते हैं। ज्ञान के असीम सागर, भक्ति के आचार्य, विद्वत्ता की पराकाष्ठा और अथाह कवित्व शक्ति अतः इनसे बड़ा कोई कवि मिलना असंभव है। गुरू पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है। इसी दिन से वर्षाकालीन चातुर्मास का प्रारंभ होता है जिसमे साधु-संत, गुरु एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं और विद्यार्थी उसे ग्रहण करते है | शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है - अंधकार या मूल अज्ञान और रु का अर्थ किया गया है - उसका निरोधक।
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानांजनशलाकया |
चक्षुरुन्मीलितम येन तस्मै श्री गुरुवै नम : ||
अर्थात अज्ञान रूपी अंधकार की अन्धता को ज्ञान रूपी काजल की शलाका से हमारे नेत्रों को खोलने वाले श्री गुरु को नमन है, गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है अथवा अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को 'गुरु' कहा जाता है। गुरु एक वैदिक परंपरा है और कम से कम भारतीय परिवेश में इसका महत्त्व कभी कम नहीं हो सकता है | गुरु शिष्य परंपरा हमारे देश में सदैव ही समृद्ध रही है | गुरु सदैव अपने ज्ञान दीप से जीवन में प्रगति के मार्ग को प्रशस्त करने का गुर सिखाने वाले और हमारी आभा की पहचान करने वाले और हमारे मनोविकारों को दूर करने में सहायक सिद्ध होते हैं | हमारी संस्कृति में गुरु को उच्चतम स्थान दिया गया है और उनकी आज्ञा को सर्वोपरि मानकर उनके आदेश का अक्षरश: पालन किया जाता है | गुरु बिना करोड़ों पुण्य भी व्यर्थ हैं | रामायण के प्रसंग अनुसार भगवान् श्रीराम भी गुरुद्वार पर जाते थे और माता-पिता तथा गुरुदेव के चरणों में विनयपूर्वक नमन करते थे - प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा॥
व्यास जी की साधना कथा -
वसिष्ठ जी महाराज के पौत्र पराशर ऋषि के पुत्र वेदव्यास जी जन्म के कुछ समय बाद ही अपनी मां से कहने लगे-"अब हम जाते हैं तपस्या के लिए।" मां बोली-"बेटा! पुत्र तो माता-पिता की सेवा के लिए होता है। माता-पिता के अधूरे कार्य को पूर्ण करने के लिए होता है और तुम अभी से जा रहे हो?" व्यास जी ने कहा-"मां! जब तुम याद करोगी और जरूरी काम होगा, तब मैं तुम्हारे आगे प्रकट हो जाऊंगा।" मां से आज्ञा लेकर व्यासजी तप के लिए चल दिए। वे बदरिकाश्रम गए। वहां एकांत में समाधि लगाकर रहने लगे। बदरिकाश्रम में बेर पर जीवनयापन करने के कारण उनका एक नाम " बादरायण" भी पड़ा।
गुरु कैसा हो...? गुरु बनाने के शास्त्रीय आधार व सुझाव -
गुरु वही होता है जो वेद शास्त्रो का ज्ञाता अथवा वेदांती हो स्वभाव से सरल, उदार हो जिसके आचार विचार मे अदभुत आकर्षण हो और जिसके व्यक्तित्व को याद करते ही मानसिक संतोष की अनुभूति हो वही सच्चा गुरु है | सदगूरू शास्त्रो का ज्ञानी, साधना के धर्म को जानने वाला, सदाचारी और शिष्य के प्रति वात्सल्य रखने वाला ही सच्चा सदगूरू है | श्री रामचरित मानस के अनुसार भारत जी कहते है के जीवन में गुरु बनाने की कोई सीमा निर्धारित नहीं है, जिससे जो कुछ अच्छी सीख मिले वह गुरु है |
गुरु पूर्णिमा पर जपा जाने वाला मंत्र -
गुरु पूर्णिमा पर जपा जाने वाला मंत्र -
|| ॐ निं निखिलेश्वरायै ब्रह्म ब्रह्माण्ड वै नमः ||
गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरु का ध्यान व चरण वंदन कर इस मंत्र को मुंगे की माला से १०१ माला जप करें |
गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरु का ध्यान व चरण वंदन कर इस मंत्र को मुंगे की माला से १०१ माला जप करें |
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वैभव नाथ शर्मा
Tuesday, July 12, 2011
महादेव है यत्र - तत्र - सर्वत्र - शिव आराधना मुक्ति का मार्ग....!!!
भगवान शिव सौम्य प्रकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से शिव को भिन्न माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदिस्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। शिव में परस्पर विरोधी भावों का सामंजस्य देखने को मिलता है। शिव के मस्तक पर एक ओर चंद्र है, तो दूसरी ओर महाविषधर सर्प भी उनके गले का हार है। वे अर्धनारीश्वर होते हुए भी कामजित हैं। गृहस्थ होते हुए भी श्मशानवासी, वीतरागी हैं। सौम्य, आशुतोष होते हुए भी भयंकर रुद्र हैं। शिव परिवार भी इससे अछूता नहीं हैं। उनके परिवार में भूत-प्रेत, नंदी, सिंह, सर्प, मयूर व मूषक सभी का समभाव देखने को मिलता है। वे स्वयं द्वंद्वों से रहित सह-अस्तित्व के महान विचार का परिचायक हैं। श्रावण मास में ॐ नम: शिवाय या शिव मात्र स्मरण से समस्त पापों का नाश होता है। इस मास में मन, कर्म, वचन से शुद्ध होकर शिव पुराण का पठन-पाठन, शिवलिंग पूजन का विशेष महत्व है। शिव की उपासना मनुष्य के लिए कल्पवृक्ष की प्राप्ति के समान है। भगवान शिव से जिसने जो चाहा उसे प्राप्त हुआ। महामृत्युंजय शिव की कृपा से मार्कण्डेय ऋषि ने अमरत्व प्राप्त किया और महाप्रलय को देखने का अवसर प्राप्त किया। शिव के अनेक रूप हैं। शिव की आराधना करने से आपकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। वेद एवं पूराण ३३ करोड देवी देवतों का साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं जो कि मानव, पशू, नरपशु, ग्रह, नक्षत्र, वनस्पति तथा जलाशय इत्यादि हर रूप में व्याप्त हैं | पर इनके शिखर पर हैं त्रिदेव … ब्रह्मा, विष्णु एवं सदाशिव | इनमे शापित होने के कारण ब्रह्मा की पुजा नहीं होती तथा जगत में विष्णु तथा सदाशिव ही पूजे जाते हैं | शिव सबसे सरल स्वभाव के देवता है...जब समुद्र मंथन हुआ...तब लक्ष्मी....अमृत..व ना ना प्रकार के रत्ना आभूषण आदि की उत्पत्ति हुई और देवताओ व असुरो में उनको बाँटने के लिए कोहराम मच गया | वही.....जब गरल (विष) पात्र निकला तो किसी ने भी आगे बढ़कर थमा नहीं....? बल्कि सब सोचने लगे की यह कौन लेगा....? तब वहां स्वयं शिव ने उस गरल पात्र को इस सृष्टि की सुरक्षा व जगत के कल्याण हेतु अपने कंठ में स्थापित कर लिया अर्थात समस्त भोग...विलास...ऐश्वर्य...के साधन, वस्तु व पदार्थ अन्य देवताओ तथा असुरो के लिए छोड़ दिया...इस सृष्टि में जितनी भी अतृप्त, शापित आत्माए थी...जिनका कोई वरण नहीं करना चाहता...जो मोक्ष प्राप्ति के लिए भटक रही थी ...शिव ने उन्हें अपना गण बनाकर उन्हें शिवशायुज्ज दे मोक्ष का मार्ग दिया...|
भगवान् शिव की आराधना में क्या चाहिए...?
सिर्फ एक लोटा जल....भंग....धतुरा....जिसे कोई नहीं पूछता....मदार की माला, फूल...जो कही भी अर्थात यत्र तत्र सर्वत्र सुलभ हो जाते है....? इससे यह स्पष्ट होता है के शिव ही एकमात्र ऐसे देवता है जो बहुत ही सहज स्वरुप में प्रसन्न होते है और साथ ही यह सन्देश देते है के यदि किसी व्यक्ति में कोई दुर्गुण है तो उससे दुर्भाव मत रखो...उससे प्रेम करो और उसके दुर्गुणों को दूर करो...शिव की आराधना में चाहिए सच्चे शुद्ध ह्रदय के भाव...|
ॐ नमः शिवाय का महत्व
शिव भक्तों का सर्वाधिक लोग प्रिय मंत्र है "ॐ नमः शिवाय"। नमः शिवाय अर्थात शिव जी को नमस्कारपाँचअक्षर का मंत्र है "न", "म", "शि", "व" और "य" । प्रस्तुत मंत्र इन्ही पाँच अक्षरों की व्याख्या करता है। स्तोत्र के पाँच छंद पाँच अक्षरों की व्याख्या करते हैं। अतः यह स्तोत्र पंचाक्षर स्तोत्र कहलाता है। "ॐ" के प्रयोग से यह मंत्र छः अक्षर का हो जाता है। एक दूसरा स्तोत्र "शिव षडक्षर स्तोत्र इन छः अक्षरों पर आधारित है |
भगवान् शिव की आराधना में क्या चाहिए...?
सिर्फ एक लोटा जल....भंग....धतुरा....जिसे कोई नहीं पूछता....मदार की माला, फूल...जो कही भी अर्थात यत्र तत्र सर्वत्र सुलभ हो जाते है....? इससे यह स्पष्ट होता है के शिव ही एकमात्र ऐसे देवता है जो बहुत ही सहज स्वरुप में प्रसन्न होते है और साथ ही यह सन्देश देते है के यदि किसी व्यक्ति में कोई दुर्गुण है तो उससे दुर्भाव मत रखो...उससे प्रेम करो और उसके दुर्गुणों को दूर करो...शिव की आराधना में चाहिए सच्चे शुद्ध ह्रदय के भाव...|
ॐ नमः शिवाय का महत्व
शिव भक्तों का सर्वाधिक लोग प्रिय मंत्र है "ॐ नमः शिवाय"। नमः शिवाय अर्थात शिव जी को नमस्कारपाँचअक्षर का मंत्र है "न", "म", "शि", "व" और "य" । प्रस्तुत मंत्र इन्ही पाँच अक्षरों की व्याख्या करता है। स्तोत्र के पाँच छंद पाँच अक्षरों की व्याख्या करते हैं। अतः यह स्तोत्र पंचाक्षर स्तोत्र कहलाता है। "ॐ" के प्रयोग से यह मंत्र छः अक्षर का हो जाता है। एक दूसरा स्तोत्र "शिव षडक्षर स्तोत्र इन छः अक्षरों पर आधारित है |
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Wednesday, July 6, 2011
कैसे मिले अर्घ्य का सही फल....? अर्घ्य देने के हानि - लाभ व आधार...
आनादीकाल से ही सत्य सनातन परम्परा में देवी देवताओं, ग्रहों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपनी श्रद्धांजली या कृतज्ञता स्वरुप अर्घ्य देने की परम्परा चली आई है | एक तरफ यह आरोग्यता दायक है और वाही दूसरी तरफ मनुष्य के अंदर की छठी इन्द्रिय को जागृत करने में सहायक भी | इस कारण इससे जुड़े कई सारे पर्व भी हमारी सभ्यता के अंग है और सूर्य को जल देना तो एक दैनिक जीवनचर्या का हिस्सा ही है | जहाँ एक ओर अर्घ्य देना अध्यात्मिक प्रक्रिया है तो वही दूसरी ओर यह पूर्णत: वैज्ञानिक भी | तो आइये जानते है भिन्न भिन्न अर्घ के क्या लाभ है और किस विशेष समस्या के लिए कौन सा अर्घ्य लाभकारी है और यह धयान रखे की किसी भी निमित्त जब अर्घ्य दे तो कम से कम पैतालीस दिन का नियमित प्रयोग अवश्य करे |
सूर्य को अर्घ्य दें
सूर्य को नित्य अर्घ्य देना किसी भी व्यक्ति के लिए आरोग्यता व सौभाग्य प्रदायक माना गया है | यह अर्घ्य तांबे के पात्र में जल भरकर उसमे एक चुटकी रोली या लाल चंदन का चूर्ण, हल्दी, अक्षत, एक लाल पुष्प डालकर लाल वस्त्र धारणकर गायत्री मंत्र के सात बार उच्चारण के साथ साथ चरणों में सात बार दें ।चंद्रमा को पूर्णिमा को दिन दूध का अर्घ्य देंयदि मन में बहुत जादा चंचलता हो...कही मन न लगे...बार बार उल्टे सीधे विचार आये तो चांदी के पात्र में थोड़ा सा दूध लेकर के चंद्र उदय होने के बाद संध्याकाल में अर्घ्य दें, विशेषकर पूर्णिमा के दिन तो अवश्य दे । चंद्र को अर्घ्य देना मन में आ रहे समस्त बुरे विचार, दुर्भावना, असुरक्षा की भावना व माता के ख़राब स्वास्थ्य को तत्काल नियंत्रित कर लेता तथा आपके मन को संतुष्टि देता है |
भगवान गणेश को विशेष अर्घ्य दें
जब भी कोई नया काम शुरू करे या किसी विशेष व आवश्यक कार्य पर जा रहे है और कोई विधि न मालूम हो तो भगवान गणेश को मिट्टी या धातु (तांबा, पीतल) के पात्र से जल में दूर्वा, अक्षत, रोली, हल्दी चूर्ण, इत्र, कुमकुम, चंदन का चूर्ण, एक रुपए का सिक्का और एक खड़ी सुपारी डालकर अर्घ्य देने के बाद अपना कार्य निश्चिंत होकर प्रारंभ करदे , हर कार्य में सफलता ही हाथ आएगी | ग्रह बाधा दूर करने के लिए अर्घ्य दें
ग्रह बाधा दूर करने के लिए नियमित स्नान ध्यान से निर्वित हो कर पीपल के वृक्ष में अर्घ्य देना शास्त्रिय मान्यता में विशेष स्थान रखता है।माँ शीतला व माँ संकठा को अर्घ्य दें
जब घर में कोई दैवीय प्रकोप हो, घर के किसी सदस्य को ज्वर या गंभीर रोग हो जाए तो लगातार चिकित्सको की परामर्श देख रेख के बाद भी ठीक न हो, सभी जांच परिणाम सामान्य निकले तो ऐसी स्थिती में नियमित नीम के वृक्ष में माँ शीतला व माँ संकठा का ध्यान कर अर्घ्य देना दो धूप बत्तियां जलाना और कुछ मीठा भोग लगाने से तत्काल लाभ होता है।पारिवारिक क्लेश निवारण हेतु तुलसी माँ को अर्घ्य
यदि किसी परिवार में बहुत जादा ही कलह क्लेश का वातावरण हो तो ऐसी स्थिती में घर के मध्य भाग (ब्रह्म स्थान) या इशान कोण में एक तुलसी का पौधा लगाकर उसमे नियमित दूध का अर्घ्य देना और देसी घी के दीपक से आरती करना कितने भी कठिन से कठिन वातावरण को तत्काल नियंत्रित कर उर्जा को शुद्ध करता है तथा घर के सभी सदस्यों में उच्च संस्कार को संचारित करता है |
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Saturday, July 2, 2011
मासिक राशी फल जुलाई 2011
वृषभ - इस मॉस में कार्य, परिवार, व्यापार का दबाव अधिक होने से आपके स्वभाव में चिड़चिडा़पन सम्मिलित और परिलिक्षित होगा | जल्दीबाजी व बिना परिणाम सोचे कार्य करने से किसी भी कार्य में सफलता हासिल नहीं कर पाएंगें | मानसिक कष्ट, तनाव व परेशानियाँ अधिक होंगी | आप अपने खान-पान व दिनचर्या पर सम्पूर्ण ध्यान दें इसमें लापरवाही आपको स्वस्थ्य समस्या विशेषकर उदार कास्ट, मस्तिष्क पीड़ा, त्वचा विकार तथा तेज ज्वर दे सकती है | आपको अपनी व परिवार की महत्वाकांशाओ, उम्मीदों को पूरा करने के लिए जहा कार्यरत है वही अधिक परिश्रम तथा प्रयासों को दुगुना करना पड़ेगा या फिर व्यापार में रोज़ से अधिक परिश्रम करना पड़ेगा |
मिथुन - यह माह आपके लिए विशेष उपलब्धियों से परिपूर्ण होगा | कठोर परिश्रम वाला समय व्यापार में शुभ साबित होगा | आपकी आय के स्त्रोतों में वृद्धि होगी | सोचे कार्य समय पर पूर्ण होंगे | रुके व बाधित कार्यो में आपको प्रयास करने से कामयाबी प्राप्त होगी | बेरोजगार व्यक्तियों को कार्य मिलेगा | आपके उच्चाधिकारी आप से प्रसन्न रहेगें, उनके सहियोग करने से आपके आत्मविश्वास में वृद्धि होगी | आप अपनी क्षमता का भरपूर उपयोग कर सफलता के नए स्तर पर पहुंच सकते है | इस माह के अंत तक कार्य व्यवसाय के सन्दर्भ में विदेश यात्रा के योग भी बनेंगे |
कर्क - यह माह आपके लिए व आपकी योजनाओं के लिए अनुकूल है किन्तु कुछ बातो का ध्यान रखना होगा | स्वास्थ्य के प्रति लापवाही ना बरतें | बच्चों का अपने परिवार व अभिभावकों से संबंधों में कटुता हो सकती है | भू निवेश से लाभ प्राप्त होने का योग है | थोडे़ से ही अधिक प्रयास तथा मेहनत से सफलता प्राप्त होगी, नौकरी, व्यापारिक लाभ, उत्तम होगा | बकाये धन तथा अन्य कई स्रोतों से लाभ की प्राप्ति व वृद्धि हो सकती है | नया व्यापार, व्यवसाय, कार्यक्षेत्र का विस्तार करने वालों के लिए यह माह खासी उपलब्धियों से परिपूर्ण होगा | उदर कष्ट से सावधान रहे गंभीर वात समस्या परेशान करेगी |
सिंह - इस मॉस में आपको अपने पुराने निवेश का लाभ मिलेगा | किसी को दिए हुए धन अर्थात बकाये धन अथवा कोई पुराना भुला हुआ मुनाफा या गुप्त धन की प्राप्ति हो सकती है | आय के स्त्रोत एक से अधिक हो सकते हैं | व्यापारिक, आर्थिक परिस्थितियाँ आपके पक्ष में रहेगीं | संतान के व्यहार से अभिभावक असंतुष्ट रहेंगे | गुप्त शत्रु पीड़ा देंगे जिसके कारण आप मानसिक रुप से परेशानी का अनुभव करेगें तथा इस कारण भी आप चिन्तातुर हो सकते हैं | विदेश से सम्बंधित कार्य करने वालो के लिए यह मॉस सर्वोत्तम सिद्ध हो सकता है |
कन्या - आपके कार्यक्षेत्र में अपने उच्चाधिकारियों व सहकर्मियों से संबंधों में मधुरता तथा तालमेल का अभाव रहेगा | आपकी हर प्रकार से जिम्मेदारी बढ़ेगी जिसके चलते मानसिक तनाव, थकान व व्यर्थ की भाग दौड़ जादा होगी, व्ययभार बढेगा, खर्चा अधिक होगा, जिसके परिणाम स्वरुप उच्च रक्तचाप की समस्या या शिकायत हो सकती है | आय के साधन बढ़ाने की चिंता व प्रयास होंगे | संतान पक्ष से आपको संतुष्टि रहेगी तथा आपको लाभ और सहयोग, मानसिक संबल प्राप्त होगा | परिवार में छोटे बच्चो का स्वास्थ्य भी बहुत अच्छा नहीं रहेगा जो एक और चिंता का विषय होगा |
तुला - इस माह आप आधिक आय कमाने के लोभ में आकर आप गलत तरीकों में ना पडे़ | परिवार की जिम्मेदारियो का ध्यान दे उनसे मुँह ना मोडे़ | नई नौकरी मिलने या कार्यक्षेत्र में बदलाव अथवा विस्तार की पूर्ण व मजबूत संभावना है | क्रोध, उत्तेत्जना, तनाव को कम व नियंत्रित करे अन्यथा उच्च रक्तचाप की समस्या का सामना करना पड़ सकता है | कार्यों में विघ्न आने पर आपको क्रोध अधिक आएगा, बने कार्य प्रभावित होंगे | विद्यार्थियों के लिए यह माह उनकी योग्यता के आधार पर फल देने वाला रहेगा, अत: पूरी महेनत व एकाग्रता के साथ अध्ययन में लगे |
वृश्चिक - नौकरी पेशा व्यक्ति तथा आय में वृद्धि चाहने वाले कर्मचारियों के लिए इस माह में नौकरी में परिवर्तन व आय में वृद्धि के संकेत है | लेकिन आपको गलत तरीकों से धनोपार्जन की लालच, प्रलोभन भी दिए जा सकते है जिनसे आपको स्वयं को बचाना होगा अन्यथा न्यायिक बाधा समक्ष उत्पन्न होगी | इस माह आप अपनी मनमानी अधिक करेगें जिसके प्रतिफल आपके सभी करीबी आपसे दुरी बना लेंगे | आपके सहयोगी तथा परिजन आपसे नाराज भी रह सकते हैं | अपने व्यहार तथा कर्मों को सुधार कर सबको साथ लेकर चलेंगे तो लाभ व उन्नति प्राप्त होगी | क्रोध को नियंत्रित रखे |
वृश्चिक - नौकरी पेशा व्यक्ति तथा आय में वृद्धि चाहने वाले कर्मचारियों के लिए इस माह में नौकरी में परिवर्तन व आय में वृद्धि के संकेत है | लेकिन आपको गलत तरीकों से धनोपार्जन की लालच, प्रलोभन भी दिए जा सकते है जिनसे आपको स्वयं को बचाना होगा अन्यथा न्यायिक बाधा समक्ष उत्पन्न होगी | इस माह आप अपनी मनमानी अधिक करेगें जिसके प्रतिफल आपके सभी करीबी आपसे दुरी बना लेंगे | आपके सहयोगी तथा परिजन आपसे नाराज भी रह सकते हैं | अपने व्यहार तथा कर्मों को सुधार कर सबको साथ लेकर चलेंगे तो लाभ व उन्नति प्राप्त होगी | क्रोध को नियंत्रित रखे |
धनु - इस माह में किसी गंभीर, कठिन व काफी समय से बाधित, अपूर्ण कार्य के आपके द्वारा पूर्ण होने से सामाजिक इस्थिति, मान सम्मान में वृद्धि, कीर्ति तथा सुयश की प्राप्ति होगी | आपको उपहार,सामाजिक प्रतिष्ठा, यश मिलने की संभावनाएँ बनती हैं | लेकिन किसी घनिष्ट मित्र से आपकी अनबन भी काफी समय चल सकती है | बेरोजगार, नौकरी तलाश रहे लोगो के लिए स्थितियाँ पहले से अधिक अनुकूल रहेगी़ | विद्यार्थियों के लिए संघर्ष का समय हो सकता है | अपेक्षा से अधिक परिश्रम करना होगा | आपने यदि किसी अन्य स्थान पर नई नौकरी के लिए आवेदन कर रखा है तो धैर्य के साथ परिणाम आने तक इंतज़ार करे |
मकर - व्यर्थ की भागदौड़, तनाव अधिक होगा जिसके फल स्वरुप आपकी सेहत पर कुप्रभाव पड़ सकता है | दिनचर्या अस्त व्यस्त होने से आपको उदर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है | क्रोध अधिक होगा जिसके कारण कोई भी आपके समक्ष अपनी भावनाओं तथा अपने विचार प्रकट नहीं कर पाएगा | पारीवारिक वातावरण को अनुकूल अथवा प्रतिकूल बनाना आपके व्यवहार पर निर्भर करेगा | मधुमेह के रोगियों को अपने खान-पान पर अत्यधिक ध्यान देंने की आवश्यकता है |
कुम्भ - आप यदि नौकरी में परिवर्तन चाहते है तो यह समय अनुकूल है यदि नौकरी परिवर्त्तित नहीं होती है तब इससे अच्छा यही है कि आप अपनी रूचि व प्रतिभा अनुरूप व्यापार की शुरुआत भी कर सकते है | जो व्यक्ति क्रोधी है उन्हें अपने क्रोध पर नियंत्रण रखना अनिवार्य है अन्यथा बने काम बिगड़ेंगे तथा आपसे बात करने में परिवार के सदस्यों को झिझक भी होगी | विद्यार्थी वर्ग को इस माह मेहनत का फल उनके मनोनुकूल व योग्यतानुसार प्राप्त होगा | जो व्यक्ति अपनी नौकरी से असंतुष्ट हैं और नई नौकरी के लिए आवेदन करना चाहते हैं वह अवश्य प्रयास करें |
मीन - परिवार में परिजनों और कार्यक्षेत्र में सहियोगियो का दुर्व्यहार आपको मानसिक परेशानी का अनुभव कराएगा | आय में वृद्धि पाने के लिए निरंतर प्रयासरत रहे | कुटुंब में वैचारिक मतभेद होने से परिवार में कलह का वातावरण होगा | ऐसी विषम परिस्थितियों के अनुसार सोच समझ कार्य करें और धैर्य से निर्णय लें | परिवार तथा व्यापार में आपका कार्यभार व भूमिका बढ़ेगी | इस माह आपका दांपत्य जीवन सामान्य या उससे भी कुछ कम होगा | क्रोध पर नियंत्रण रखें व वाणी को सैयमित रखना अनिवार्य है | अपनी जिम्मेदारियों को पूर्ण गंभीरता और से निभाएँ |
मकर - व्यर्थ की भागदौड़, तनाव अधिक होगा जिसके फल स्वरुप आपकी सेहत पर कुप्रभाव पड़ सकता है | दिनचर्या अस्त व्यस्त होने से आपको उदर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है | क्रोध अधिक होगा जिसके कारण कोई भी आपके समक्ष अपनी भावनाओं तथा अपने विचार प्रकट नहीं कर पाएगा | पारीवारिक वातावरण को अनुकूल अथवा प्रतिकूल बनाना आपके व्यवहार पर निर्भर करेगा | मधुमेह के रोगियों को अपने खान-पान पर अत्यधिक ध्यान देंने की आवश्यकता है |
कुम्भ - आप यदि नौकरी में परिवर्तन चाहते है तो यह समय अनुकूल है यदि नौकरी परिवर्त्तित नहीं होती है तब इससे अच्छा यही है कि आप अपनी रूचि व प्रतिभा अनुरूप व्यापार की शुरुआत भी कर सकते है | जो व्यक्ति क्रोधी है उन्हें अपने क्रोध पर नियंत्रण रखना अनिवार्य है अन्यथा बने काम बिगड़ेंगे तथा आपसे बात करने में परिवार के सदस्यों को झिझक भी होगी | विद्यार्थी वर्ग को इस माह मेहनत का फल उनके मनोनुकूल व योग्यतानुसार प्राप्त होगा | जो व्यक्ति अपनी नौकरी से असंतुष्ट हैं और नई नौकरी के लिए आवेदन करना चाहते हैं वह अवश्य प्रयास करें |
मीन - परिवार में परिजनों और कार्यक्षेत्र में सहियोगियो का दुर्व्यहार आपको मानसिक परेशानी का अनुभव कराएगा | आय में वृद्धि पाने के लिए निरंतर प्रयासरत रहे | कुटुंब में वैचारिक मतभेद होने से परिवार में कलह का वातावरण होगा | ऐसी विषम परिस्थितियों के अनुसार सोच समझ कार्य करें और धैर्य से निर्णय लें | परिवार तथा व्यापार में आपका कार्यभार व भूमिका बढ़ेगी | इस माह आपका दांपत्य जीवन सामान्य या उससे भी कुछ कम होगा | क्रोध पर नियंत्रण रखें व वाणी को सैयमित रखना अनिवार्य है | अपनी जिम्मेदारियों को पूर्ण गंभीरता और से निभाएँ |
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